सार

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के कई किस्से हैं जिनसे लाइफ मैनेजमेंट के अनेक सूत्र सीखने को मिलते हैं।

उज्जैन. इस बार 23 अगस्त, शुक्रवार को जन्माष्टमी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हमें जीवन प्रबंधन के अनेक सूत्र सीखने को मिलते हैं। जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर हम आपको कुछ ऐसे ही लाइफ मैनेजमेंट के सूत्रों के बारे में बता रहे हैं-

हमेशा होना चाहिए प्लान बी
एक बार भगवान कृष्ण ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए बहुत दूर निकल गए। उन्हें भूख लगने लगी। उन्होंने ग्वालों से कहा कि पास ही एक यज्ञ का आयोजन हो रहा है, वहां जाओ और भोजन मांग कर ले आओ। ग्वालों ने वैसा ही किया।, लेकिन यज्ञ का आयोजन कर रहे ब्राह्मणों ने भोजन देने से मना कर दिया। ग्वाले लौट आए। ऐसा एक नहीं कई बार हुआ। कृष्ण ने ग्वालों से कहा एक बार फिर जाओ, लेकिन इस बार ब्राह्मणों से नहीं, उनकी पत्नियों से भोजन मांगना। ग्वालों ने जब ब्राह्मण की पत्नियों से कृष्ण के लिए भोजन मांगा तो वे तत्काल उनके साथ भोजन लेकर वहां आ गईं। सबने प्रेम से भोजन किया। 

लाइफ मैनेजमेंट: अगर एक ही दिशा में लगातार प्रयासों में असफलता मिल रही है तो अपने प्रयासों की दिशा भी बदल देनी चाहिए। किसी भी समस्या पर हमेशा दो नजरिये से सोचना चाहिए, अर्थात् आपके पास हमेशा दूसरा प्लान जरूर होना चाहिए।

अपना काम ईमानदारी से करें, भगवान आपका साथ देंगे
महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए सर्प बाण के उपयोग करने का विचार किया। पाताललोक में अश्वसेन नाम का नाग था, जो अर्जुन को अपना शत्रु मानता था। कर्ण को सर्प बाण का संधान करते देख अश्वसेन खुद बाण पर बैठ गया। अर्जुन का रथ चला रहे भगवान कृष्ण ने अश्वसेन को पहचान लिया। उन्होंने अपने पैरों से रथ को दबा दिया। घोड़े बैठ गए और तीर अर्जुन के गले की बजाय उसके मस्तक पर जा लगा। तभी मौका देखकर कर्ण ने अर्जुन पर वार शुरू कर दिया। अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान ने वो तीर भी अपने ऊपर झेल लिए।

लाइफ मैनेजमेंट: जब आप अपना काम ईमानदारी से करते हैं और भगवान पर पूर्णरूप से भरोसा करते हैं तो वो सब तरह से आपकी जिम्मेदारी ले लेते हैं। हर तरह के संकट से आपकी रक्षा करते हैं।

जब अश्वत्थामा ने मांग लिया श्रीकृष्ण से उनका सुदर्शन चक्र
एक बार पांडव और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा द्वारिका पहुंच गया। कुछ दिन वहां रहने के बाद एक दिन अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण से कहा कि वो उसका अजेय ब्रह्मास्त्र लेकर उसे अपना सुदर्शन चक्र दे दें। भगवान ने कहा ठीक है, मेरे किसी भी अस्त्र में से जो तुम चाहो, वो उठा लो। अश्वत्थामा ने भगवान के सुदर्शन चक्र को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ।
भगवान ने उसे समझाया कि अतिथि की अपनी सीमा होती है। उसे कभी वो चीजें नहीं मांगनी चाहिए जो उसके सामर्थ्य से बाहर हो। अश्वत्थामा बहुत शर्मिंदा हुआ। वह बिना किसी शस्त्र-अस्त्र को लिए ही द्वारिका से चला गया।

लाइफ मैनेजमेंट: अपनी कोशिश के अनुपात में ही फल की आशा करनी चाहिए। साथ ही, किसी से कुछ भी मांगते समय भी अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए।

शांति के लिए अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए
जब पांडवों का वनवास खत्म हो गया और वे अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए तो एक दिन उनके सभी मित्र और रिश्तेदार आदि राजा विराट नगर में एकत्रित हुए। सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि हस्तिनापुर पर आक्रमण कर कौरवों का नाश कर देना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि- हमें शांति के लिए एक और प्रयास करना चाहिए, जिससे कि किसी के प्राण न जाएं और पांडवों को उनका अधिकार भी मिल जाए। जब श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिापुर जा रहे थे तो द्रौपदी ने इसका विरोध किया। तब श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि हस्तिनापुर के विनाश से तुम्हारे अपमान का बदला पूरा हो भी जाता है तो भी तुम्हारे हिस्से में सिर्फ कुटुंबियों का रक्त ही आएगा। इसलिए शांति का अंतिम अवसर देना हमारे हाथ में है। युद्ध करना या नहीं, इसका विचार कौरवों को करने दो।

लाइफ मैनेजमेंट: हमें अंतिम समय तक शांति के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि विनाश से किसी का भला नहीं होगा।

श्रीकृष्ण के बचपन से सीखें 3 बातें
भगवान श्रीकृष्ण का बचपन नंद गांव में बीता। यहां बालपन में भगवान श्रीकृष्ण रोज गायों को चराने जंगल में ला जाते थे। जंगल यानी प्रकृति। कृष्ण अपने बचपन में प्रकृति के काफी निकट रहे। श्रीकृष्ण का बचपन से ही संगीत की ओर विशेष रूझान था, इसलिए बांसुरी श्रीकृष्ण का ही पर्याय बन गई। भगवान श्रीकृष्ण को बचपन में मक्खन बहुत पसंद था। आज भी श्रीकृष्ण को मुख्य रूप से मक्खन का ही भोग लगाया जाता है।

लाइफ मैनेजमेंट:
1. हमें भी अपने बच्चों को खुला माहौल देना चाहिए। बच्चों को गार्डनिंग के लिए प्रेरित करें, जिससे वे अपने आस-पास के वातावरण को महसूस करें और समझें। 
2. अपने बच्चों को भी संगीत से जोड़ें। संगीत से मन तो प्रसन्न रहता ही है साथ ही उनका मनोवैज्ञानिक विकास भी होता है। वे भावनाओं को समझने लगते हैं।
3. तीसरी और सबसे अहम बात है भोजन। मक्खन यानी स्वस्थ्य आहार। मन आपका तभी स्वस्थ्य होगा, जब आपका आहार अच्छा हो।

जब श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में कालिया नाग को हराकर दिया नदियों को प्रदूषण से मुक्ति का संदेश
एक बार श्रीकृष्ण मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद से खेल रहे थे। भगवान ने जोर से गेंद फेंकी और वो यमुना में जा गिरी। भारी होने से वो सीधे यमुना के तल पर चली गई। मित्रों ने कृष्ण को कोसना शुरू किया। कहने लगे कि तुमने गेंद को यमुना में फेंका है, तुम ही बाहर लेकर आओ। समस्या यह थी कि उस समय यमुना में कालिया नाग रहता था। पांच फनों वाला नाग बहुत खतरनाक और विषधर था। उसके विष से यमुना काली हो रही थी और उसी जहर के कारण गोकुल के पशु यमुना का पानी पीकर मर रहे थे। कालिया नाग गरूड़ के डर से यमुना में छिपा था।
कान्हा बहुत छोटे थे, लेकिन मित्रों के जोर के कारण उन्होंने तय किया कि गेंद वो ही निकाल कर लाएंगे। कान्हा ने यमुना में छलांग लगा दी। सीधे तल में पहुंच गए। वहां कालिया नाग अपनी पत्नियों के साथ रह रहा था। कान्हा ने उसे यमुना छोड़कर सागर में जाने के लिए कहा, लेकिन वो नहीं माना और अपने विष से उन पर प्रहार करने लगा। कृष्ण ने कालिया नाग की पूंछ पकड़कर उसे मारना शुरू कर दिया। बहुत देर हो गई तो मित्रों को चिंता होने लगी। उन्हें गलती का एहसास हुआ और वे रोने-चिल्लाने लगे। कुछ दौड़ कर नंद-यशोदा और अन्य गोकुलवासियों को बुला लाए। यमुना के किनारे सभी चिल्लाने लगे।

इधर, कृष्ण और कालिया नाग का युद्ध जारी था। भगवान ने उसके फन पर चढ़कर उसका सारा विष निकाल दिया। विषहीन होने और थक जाने पर कालिया नाग ने भगवान से हार मानकर उनसे माफी मांगी। श्रीकृष्ण ने उसे पत्नियों सहित सागर में जाने का आदेश दिया। खुद कालिया नाग भगवान को अपने फन पर सवार करके यमुना के तल से ऊपर लेकर आया। कालिया नाग चला गया। यमुना को उसके विष से मुक्ति मिल गई।

लाइफ मैनेजमेंट: वास्तव में कालिया नाग प्रदूषण का प्रतीक है। हमारे देश की अधिकतर नदियां अभी भी प्रदूषण के जहर से आहत हैं। भगवान कृष्ण इस कथा के जरिए ये संदेश दे रहे हैं कि नदियों को प्रदूषण से मुक्त रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। अगर हम अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो इसका नुकसान भी हमें ही उठाना होगा। जैसे गोकुलवासियों ने विष के डर के कारण कालिया नाग को यमुना से भगाने का प्रयास नहीं किया तो उनके ही पशु उसके विष से मारे गए।

भगवान श्रीकृष्ण ने समुद्र के किनारे ही अलग शहर यानी द्वारिका नगरी बसायी
मथुरा में कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को वसुदेव और देवकी ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवंतिका नगरी (वर्तमान में मध्यप्रदेश के उज्जैन) में गुरु सांदीपनि के पास भेजा। बड़े भाई बलराम के साथ श्रीकृष्ण पढ़ने के लिए आ गए। यहीं पर सुदामा से उनकी मित्रता हुई। शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब गुरुदक्षिणा की बात आई तो ऋषि सांदीपनि ने कृष्ण से कहा कि तुमसे क्या मांगू, संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं जो तुमसे मांगी जाए और तुम न दे सको। कृष्ण ने कहा कि आप मुझसे कुछ भी मांग लीजिए, मैं लाकर दूंगा। तभी गुरु दक्षिणा पूरी हो पाएगी।
ऋषि सांदीपनि ने कहा कि शंखासुर नाम का एक दैत्य मेरे पुत्र को उठाकर ले गया है। उसे लौटा लाओ। कृष्ण ने गुरु पुत्र को लौटा लाने का वचन दे दिया और बलराम के साथ उसे खोजने निकल पड़े। खोजते-खोजते सागर किनारे तक आ गए। यह प्रभास क्षेत्र था। जहां चंद्रमा की प्रभा यानी चमक समान होती थी। समुद्र से पूछने पर उसने भगवान को बताया कि पंचज जाति का दैत्य शंख के रूप में समुद्र में छिपा है। हो सकता है कि उसी ने आपके गुरु पुत्र को खाया हो। भगवान ने समुद्र में जाकर शंखासुर को मारकर उसके पेट में अपने गुरु पुत्र को खोजा, लेकिन वो नहीं मिला। तब श्रीकृष्ण यमलोक गए। 
श्रीकृष्ण ने यमराज से अपने गुरु पुत्र को वापस ले लिया और गुरु सांदीपनि को उनका पुत्र लौटाकर गुरु दक्षिणा पूरी की। भगवान कृष्ण ने तभी प्रभास क्षेत्र को पहचान लिया था। यहां बाद में उन्होंने द्वारिका पुरी का निर्माण किया। भगवान ने प्रभास क्षेत्र की विशेषता देखी। उन्होंने तभी विचार कर लिया था कि समुद्र के बीच में बसाया गया नगर सुरक्षित हो सकता है। जरासंघ ने 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया। उसके बाद कालयवन के साथ मिलकर फिर हमला बोला। तब कृष्ण ने प्रभास क्षेत्र में द्वारिका निर्माण का निर्णय लिया ताकि मथुरावासी आराम से वहां रह सकें। कोई भी राक्षस या राजा उन पर आक्रमण न कर सके।

लाइफ मैनेजमेंट: कई बार वर्तमान में भी भविष्य की समस्याओं का हल छुपा होता है। बस जरूरत होती है सही नजरिये और दूरदृष्टि की।