सार
आज के समय में हर व्यक्ति धन कमाने में जुटा हुआ है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समय पर अपने पैसे का सदुपयोग नहीं करते और सिर्फ इकट्ठा ही करते रहते हैं।
उज्जैन. ऐसी स्थिति में उस पैसा का नाश होने की स्थिति भी बन सकती है। आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र के भाग-1 में धन की 3 गति बताई गई है...
दानं भोगं नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतिया गतिर्भवति ॥
अर्थ- धन का दो प्रकार से उपयोग होना चाहिए। दान और उपयोग। किंतु उसका अधिक संचय नहीं करना चाहिए। ध्यान से देखो कि मधुमक्खियों के द्वारा संचित धन अर्थात् शहद दूसरे हर ले जाते हैं ।
1. दान
पैसा कमाने के बाद धन की पहली गति जो होना चाहिए, वो है दान। यानी हमें अपने कमाए पैसे में से कुछ भाग अवश्य दान करना चाहिए। पुराणों में दान से प्राप्त होने वाले पुण्यों के बारे में भी बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, दान करने से उसी व्यक्ति को फल मिलता है, जो दान करते समय किसी बात का घमंड ना करे।
2. भोग
धन की दूसरी गति है भोग यानी उसका उपयोग करना। हम जो पैसा कमाते हैं उसका स्वयं और परिवार वालों पर खर्च करना भी उतना ही जरूरी है जितना दान करना।
जो लोग जीवन भर पैसा इकट्ठा करते हैं, उनके धन का नाश होने की संभावना अधिक रहती है क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद उस पैसे का उपभोग दूसरे ही लोग करते हैं। इसका अर्थ ये है कि धन का संचय उतना ही करना चाहिए, जितना जरूरी है।