सार
आचार्य चाणक्य ने जीवन की परेशानियों से बचने के लिए लाइफ मैनेजमेंट के अनेक सूत्र बताए हैं। ये सूत्र आज के समय में भी हमें सही रास्ता दिखाते हैं।
उज्जैन. आचार्य चाणक्य ने अपने एक सूत्र में बताया है कि हमें अपने पिता के अलावा और किन लोगों को उन्हीं के समान आदर और सम्मान देना चाहिए। यानी इन्हें अपने पिता के समान ही समझना चाहिए। आगे जानिए इस नीति के बारे में…
1. यज्ञोपवित संस्कार कराने वाला पुरोहित
आचार्य चाणक्य के अनुसार जो पुरोहित यानी ब्राह्मण हमारा यज्ञोपवित करता है, उसे अपने पिता के ही समान समझना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि यज्ञोपवित से ही मनुष्य का दोबारा जन्म होता है। इसलिए यज्ञोपवित करने वाला ब्राह्मण हमारे पिता समान होता है।
2. ज्ञान देने वाला आचार्य
जो आचार्य हमें ज्ञान देता है यानी अध्ययन करवाता है, वह भी पितातुल्य ही होता है क्योंकि उसकी सिखाई गई विद्या से ही हमें जीवन भर लाभ मिलता है और सही-गलत की पहचान होती है। इसलिए आचार्य को भी पिता के समान ही समझना चाहिए।
3. अन्न देने वाला
कई बार लोग पढ़ाई या अन्य कामों के लिए दूसरे स्थानों पर अपने रिश्तेदारों के घर पर जाकर रहते हैं। उस समय वही लोग हमारे भोजन का प्रबंध करते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे रिश्तेदारों का भी पिता के समान ही आदर करना चाहिए।
4. रक्षा करने वाला
जो व्यक्ति विपत्ति के समय हमारे प्राणों की रक्षा करता है, उसे भी पिता के जितना ही मान-सम्मान और आदर करना चाहिए। क्योंकि हमारे प्राण बचाकर वे हमें नया जीवन प्रदान करते हैं।
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