सार
दुनिया में जितनी भी बुराई और अवगुण है, उनके पीछे लालच ही सबसे बड़ी वजह होती है। इंसान छोटे-छोटे लालच की वजह से बड़ी मुसीबत में फंस जाता है। उसे ये बात जब तक पता चलती, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
उज्जैन. लालच के मायाजाल में जो एक बार फंसता है, उसका निकलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए लालच ही हर बुराई का गुरु कहा गया है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि लालच में आकर कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए। इससे आप मुसीबत में फंस सकते हैं।
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जवाब के लिए पंडितजी को जाना पड़ा वेश्या के पास
एक पंडितजी कई सालों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे। पूरे गांव में फैल गई कि काशी से पंडितजी काशी से पढ़ाई कर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं। एक किसान उनके पास एक किसान आया और उसने पूछा, “पंडितजी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है?“
प्रश्न सुन कर पंडितजी चकरा गए। उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था। पंडितजी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा रह गया है। वह फिर काशी लौटे। अनेक गुरुओं से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला।
एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हुई। उसने पंडितजी से परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी।
वेश्या बोली “पंडित जी, इसका उत्तर है तो बहुत सरल है, लेकिन इसके लिए आपको कुछ दिन मेरे घर में रहना होगा।”
पंडितजी ने काफी सोच-विचार किया और अंत में कुछ शर्तों के साथ वेश्या के घर में रहने को तैयार हो गए। पंडितजी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे। और भी कई नियमों का पालन पंडितजी वेश्या के घर में रहते हुए करते थे।
वेश्या के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। पंडितजी उत्तर की प्रतीक्षा में रहे।
एक दिन वेश्या बोली “पंडित जी, आपको भोजन पकाने में बड़ी तकलीफ होती है। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो नहा-धोकर मैं आपके लिए भोजन तैयार कर दिया करूं।’’
पंडितजी को राजी करने के लिए वेश्या ने लालच दिया “यदि आप मुझे इस सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन आपको दूंगी।”
स्वर्णमुद्रा का नाम सुनकर पंडितजी विचारने लगे। उन्होंने कहा “तुम्हारी जैसी इच्छा। बस विशेष ध्यान रखना कि मेरे कमरे में आते-जाते तुम्हें कोई नहीं देखे।
पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर वेश्या ने पंडितजी के सामने परोस दिया। जैसे ही पंडितजी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। ये देखकर पंडितजी क्रोधित हो गए और बोले “यह क्या मजाक है?”
वेश्या ने कहा, “यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। इसलिए यह लालच ही पाप का गुरु है।”
पंडितजी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया।
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निष्कर्ष ये है कि…
लालच एक ऐसा अवगुण है, जो आपके सोचने-समझने की ताकत को समाप्त कर देता है। आप ये समझ नहीं पाते कि कब आप सही रास्ते पर चलते-चलते गलत पर आ गए हैं। इसलिए हमारे बुजुर्ग कह गए हैं, लालच बुरी बला। इससे बचकर ही रहना चाहिए।
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