सार
29 अप्रैल, शुक्रवार को शनि ग्रह राशि बदलकर मकर से कुंभ में आ चुका है। इसके अगले ही दिन यानी 30 अप्रैल, शनिवार को वैशाख मास की अमावस्या है। शनिवार को अमावस्या होने से ये शनिश्चरी अमावस्या (Shanishchari Amavasya 2022) कहलाएगी। इस दिन शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है।
उज्जैन. हमारे देश में शनिदेव के अनेक मंदिर हैं। लाखों भक्त यहां रोज आते हैं शनिदेव के दर्शन कर परेशानियां कम करने की प्रार्थना करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनिदेव की पूजा रोम भी की जाती है। यहां चौथी शताब्दी में निर्मित एक शनि मंदिर भी है, हालांकि अब सिर्फ इसके अवशेष ही दिखाई देते हैं। रोम में शनिदेव को कृषि के देवता के रूप में पूजा जाता है। यहां हर साल शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसे सैटर्नालिया कहते हैं। आगे जानिए रोम के इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…
चौथी शताब्दी से मनाया जा रहा है सैटर्नालिया उत्सव
एनशिएंट हिस्ट्री इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, प्राचीन समय से ही शनि को रोमन देवता माना जाता है। अनेक चित्रों में उन्हें कृषि के देवता के रूप में प्रदर्शित किया गया है। सैटर्न यानी शनि के नाम पर ही इस त्योहार का नाम सैटर्नालिया रखा गया था। ये त्योहार रोमन कैलेंडर के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसी पर्व के माध्यम से लोग नई फसल के लिए शनिदेव को धन्यवाद देते थे।
आज भी दिखते हैं मंदिर के अवशेष
शनिदेव का मंदिर रोमन फोरम के उत्तर-पश्चित दिशा में स्थित है। अब यहां सिर्फ इसके अवशेष ही दिखाई देते हैं। मंदिर के मुख्य हिस्से के 8 विशाल स्तंभ यहां आकर्षण का विषय हैं। शनिदेव के सम्मान में ये मंदिर बनवाया गया था। इन स्तंभों के किनारों को मिस्त्र के ग्रेनाइट से बनवाया गया है। ये मंदिर रोमन कला का एक शानदार नमूना है। अलग-अलग शासकों ने इसका कई बार जीर्णोद्धार करवाया था।
ग्रीक देवता क्रोनास और सेटर्न एक ही
प्राप्त जानकारी के अनुसार, ग्रीक देवता क्रोनास और रोम के देवता सेटर्न एक ही हैं। प्राचीन सयम में इन दोनों के सम्मान में कई उत्सव मनाए जाते थे। ये पर्व कई दिनों तक चलता था। इतिहासकारों की मानें तो ग्रीक धर्म का प्रभाव बढ़ने से पहले ही शनि रोम की कथाओं का हिस्सा थे। इसलिए प्राचीन समय की ग्रीक और रोमन कथाओं में काफी समानता पाई जाती है।
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