सार
इन दिनों श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksha 2021) चल रहा है, जो 6 अक्टूबर, बुधवार तक रहेगा। इन 16 दिनों में श्राद्ध के लिए प्रमुख तीर्थ स्थानों पर लोगों की भीड़ उमड़ती हैं। हमारे देश में श्राद्ध के लिए अनेक तीर्थ है, ऐसा ही एक स्थान है राजस्थान (Rajasthan) का लोहागर (Lohagar)। कहा जाता है इसका प्राचीन नाम लोहार्गल (Lohargal) है।
उज्जैन. लोहार्गल राजस्थान में शेखावाटी (Shekhawati) इलाके के झुन्झुनू (Jhunjhunu) जिले से 70 किलोमीटर दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी (Udaipurwati) कस्बे से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान की रक्षा स्वयं भगवान ब्रह्मा करते हैं। यहां जिसका भी श्राद्ध किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां एक प्राचीन सूर्य मंदिर भी लोगों का आस्था का केंद्र है।
पांडवों से जुड़ा है यहां का कनेक्शन
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जब पांडव स्वर्गारोहण की यात्रा पर निकले थे, इसी कुंड में उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र डाले थे। पानी में डालते ही उनके सभी शस्त्र गल गए, इसलिए इस जगह का नाम लोहार्गल पड़ा। इस स्थान से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि भगवान परशुराम ने यहां तपस्या की थी।
सूर्यकुंड और सूर्य मंदिर की कहानी
प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने जब पंडितों से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि- पूर्व जन्म में वह लड़की एक बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया था। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से कन्या के रूप में आपके यहां उत्पन्न हुई है। विद्वानों ने राजा से कहा कि आप वहां जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा के ऐसा करते ही उनकी पुत्री का हाथ ठीक हो गया। तब राजा ने सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।
कैसे पहुंचें?
राजस्थान में सवाई माधोपुर से लुहारू तक पश्चिम रेलवे लाइन पर सीकर या नवलगढ़ स्टेशन पड़ता है। यहां पर लोहागर का नजदीक स्टेशन है। यहां से तीर्थ तक पहुंचने के लिए बहुत सारे साधन उपलब्ध हैं।
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