सार
हिंदू धर्म में कई महान संत और कवि हुए जिन्होंने भक्ति शाखा को ऊंचाई तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं में से एक थे संत सूरदास। सूरदास (Surdas Jayanti 2022) को भक्ति शाखा का प्रमुख कवि माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का सजीव वर्णन है।
उज्जैन. ऐसा कहा जाता है कि संत सूरदास जन्म से अंधे थे, लेकिन उनकी रचनाएं देखकर इस बात पर संदेह होता है। उनके अंधेपन को लेकर और भी कई कथाएं प्रचलित हैं। कोई उन्हें जन्म से अंधा कहता है तो कोई कहता है कि बाद में उनकी आंखें खराब हुई। इनके जन्म स्थान के लेकर भी लोगों में मतभेद है। सूरदास जयंती (6 मई, शुक्रवार) के मौके पर जानिए संत सूरदास से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं…
भगवान श्रीकृष्ण के मांगी थी अंधता
मान्यता के अनुसार, सूरदास जन्म से अंधे थे। एक बार वे कृष्ण भक्ति में डूबे हुए भजन गाते हुए जा रहे थे और एक कुएं में जा गिरे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनके प्राणों की रक्षा की और उनकी आंखों की ज्योति भी लौटा दी। भगवान के दर्शन पाकर सूरदासजी धन्य हो गए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने कहा कि आपको देखने को बाद अब और कुछ देखने की इच्छा मेरे मन में नहीं है और कहकर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से फिर अंधता मांग ली।
अकबर ने भी सुने सूरदास के भजन
मान्यता है कि एक बार जब तानसेन ने सूरदास द्वारा रचित पद गाया तो उसके मन में भी संत सूरदास से मिलने का भाव आया। स्वयं अकबर सूरदास से मिलने मथुरा पहुंचा और सूरदास ने बादशाह को “मना रे माधव सौं करु प्रीती” गाकर सुनाया। ये सुनकर अकबर बड़ा खुश हुआ और उसने सूरदासजी को कुछ चीजें भेंट में देनी चाही, लेकिन सूरदासजी ने इंकार कर दिया और ये कहा कि “आज पीछे हमको कबहूं फेरि मत बुलाइयो और मोको कबहूं लिलियो मती।”
अमेरिका में रखी हैं हस्तलिखित प्रतियां
वैसे तो संत सूरदास की अनेक रचनाएं काफी प्रसिद्ध है लेकिन उन सभी में सूरसागर सबसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ की लोकप्रियता इतनी है कि भारत ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी इसकी कई हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि अमेरीका के ब्रिटिश म्यूजियम लाइब्रेरी में भी सूरसागर की हस्तलिखित प्रतियां सुरक्षित हैं।
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