सार
हिंदू धर्म के उत्कर्ष में आदि शंकराचार्य (Shankaracharya Jayanti 2022) ने महती भूमिका अदा की। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इनकी जयंती मनाई जाती है। इर बार ये तिथि 6 मई, शुक्रवार को है।
उज्जैन. आदि शंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार मठ बनाए। आज भी इन चार मठों को साधु समाज में बड़ी श्रद्धा, आस्था और सम्मान से देखा जाता है। ये चार मठ शंकराचार्यों के हैं। इनके मठाधीश साधु समाज का सबसे श्रेष्ठ पद होता है। ये ही पूरे साधु समाज को नियंत्रित करते हैं। इन चार मठों से ही गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता है। शैव सम्प्रदाय में आज भी चार मठों के संतों को छोड़कर अन्य किसी को गुरु बनाना निषेध है। आदि शंकराचार्य ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में खुद शंकराचार्य कहे जाते हैं। जो व्यक्ति किसी भी मठ के अंतर्गत संन्यास लेता हैं वह दशनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है। आगे जानिए इन 4 मठों के बारे में...
रामेश्वर में है श्रृंगेरी मठ
श्रृंगेरी ज्ञानमठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। आदि शंकराचार्य दक्षिण भारत के ही थे। श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है तथा मठ के अन्तर्गत 'यजुर्वेद' को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था।
उड़ीसा में है गोवर्धन मठ
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित है। भगवान जगन्नाथ के इस दिव्य स्थान पर आदि शंकराचार्य ने बरसों से भूमि में छिपे हुए भगवान जगन्नाथ के विग्रह को खोजा था। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' तथा इस मठ के अंतर्गत 'ऋग्वेद' को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आद्य शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए।
गुजरात में स्थित है शारदा मठ
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' तथा इसके अंतर्गत 'सामवेद' को रखा गया है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे।
उत्तरांचल में स्थित है ज्योतिर्मठ
उत्तरांचल के बद्रिकाश्रम में स्थित है ज्योतिर्मठ। ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे।
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