कहते हैं भारत त्योहारों का देश है और ऐसा है भी सही। हमारे देश में कहीं न कहीं किसी जाति, समुदाय या प्रांत में हर समय कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। इसलिए भारत को अनेकता में एकता वाला देश भी कहा जाता है। यहां हर शहर की अपनी एक अलग ही खासियत है, जो कि त्योहारों में देखने को मिलती है। दीपावली (Diwali 2021) भी एक ऐसा ही त्योहार है।
उज्जैन. दीपावली (Diwali 2021) भारत का सबसे प्रमुख त्योहार है। भारत के हर हिस्से में ये त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन सभी जगहों पर यह त्योहार मनाने का तरीका अलग-अलग होता है। कहीं पूर्वजों को याद किया जाता है तो कहीं धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कहीं गौधन की पूजा की जाती है तो कहीं कुछ अलग परंपराएं हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के विभिन्न शहरों में प्रचलित दीपावली मनाने के तरीकों और मान्यताओं के बारे में-
ओडिसा
ओडिसा में दिवाली पर पूर्वजों को याद किया जाता है और दिवाली की पूजा में शामिल होने के लिए प्रार्थना की जाती है। साथ ही यहां दिवाली पर जूट जलाने की परंपरा है। यहां जूट इसलिए जलाया जाता है ताकि पूर्वजों को स्वर्ग जाते समय किसी प्रकार के अंधेरे का सामना न करना पड़े।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में दिवाली पांच दिनों तक मनाई जाती है। पहले दिन धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। दूसरे दिन यमराज की उपासना की जाती है। तीसरे दिन यानी दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की परंपरा है। इसके अगले दिन बाद गाय-बछड़ों का पूजन किया जाता है। अंतिम दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है।
तमिलनाडु
यहां दिवाली के पहले घर के चूल्हे को अच्छी तरह से साफ करके, उस पर लाल या पीले कुमकुम से चार या पांच बिंदी लगाई जाती है। बाद में दिवाली की पूजा में इसे शामिल किया जाता है। दिवाली पर घर के सभी सदस्य सूर्योदय से पहले उठकर, तेल और पानी में स्नान करके मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं।
आंध्र प्रदेश
यहां मान्यता है कि राक्षस नरकासुर का वध भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने किया था। इसलिए यहां पर दिवाली उत्सव का सबसे खास दिन नरक चतुर्दशी को माना जाता है। इस दिन लोग देवी सत्यभामा की मिट्टी को मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में दीपावली का सेलिब्रेशन चार दिनों का होता है। पहले दिन गाय-बछड़े की पूजा की जाती है। अगले दिन नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले उबटन कर स्नान करने की परंपरा है। इसके अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी पूजा की जाती है।
कोलकाता
कोलकाता में दिवाली पर देवी लक्ष्मी की नहीं बल्कि देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। यहां पर दिवाली तीन दिनों का त्योहार होता है। कई घरों में मां काली की मूर्ति स्थापना दो दिन पहले ही कर ली जाती है।
कर्नाटक
दीपावली उत्सव का पहला और तीसरा दिन यहां के लिए विशेष महत्व रखता है। उत्सव का पहला दिन राक्षस नरकासुर के अंत के रूप में मनाते हैं। मान्यता है कि राक्षस नरकासुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने उसका खून अपने शरीर से हटाने के लिए तेल से स्नान किया था। इसी परंपरा के चलते लोग इस दिन तेल और पानी से स्नान करते हैं। उत्सव का तीसरा दिन जो कि दीपावली होती है, उसे यहां बालि पद्यमी के नाम से जाना जाता है।
वाराणसी
वाराणसी को देवताओं की भूमि कहते हैं। यहां दिवाली के देव दिवाली यानी देवताओं की दिवाली के रूप में मनाया जाता है। यहां दिवाली मुख्य रूप से गंगा नदी के किनारे मनाई जाती है। गंगा नदी के घाट को लाखों दीपकों से सजाया जाता है क्योंकि यहां मान्यता है कि इस दिन सभी देवी-देवता गंगा नदी में स्नान करने आते हैं।
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