गुप्त नवरात्रि: खुदाई में निकला था ये देवी मंदिर, तंत्र सिद्धि पाने यहां दूर-दूर से आते हैं तांत्रिक

11 जुलाई, रविवार से आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि शुरू हो चुकी है। इस नवरात्रि में तंत्र सिद्धि पाने के लिए देवी की उपासना विशेष रूप से की जाती है।

Asianet News Hindi | Published : Jul 12, 2021 3:46 AM IST / Updated: Jul 12 2021, 11:32 AM IST

उज्जैन. वैसे तो हमारे देश में तंत्र-मंत्र के लिए प्रसिद्ध अनेक मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में असम में स्थित कामाख्या मंदिर का विशेष महत्व है। गुप्त नवरात्रि में यहां साधकों की भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से तंत्र साधक यहां देवी को प्रसन्न करने आते हैं। इस मंदिर से जुड़़ी कई परंपराएं और मान्यताएं हैं। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

यहां गिरा था देवी का योनि भाग
असम के गुवाहाटी में नीलांचल पर्वत पर स्थित है कामाख्या शक्तिपीठ। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का योनि भाग गिरा था। इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। यह पीठ माता के सभी पीठों में से माहापीठ माना जाता है। यह स्थान तंत्र साधना के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

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ये हैं यहां की विशेष परंपरा
इस जगह पर माता के योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं। इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है। तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है। यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

खुदाई में निकला है ये मंदिर
कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए। युद्ध में विश्वसिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए। वहां पर उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया। यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई। खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला। राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था। जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया।

कैसे जाएं?
- कामाख्या मंदिर के सबसे नजदीक गुवाहाटी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी महज 20 किलोमीटर है। इस एयरपोर्ट के लिए नई दिल्ली, मुंबई और चेन्नई से नियमित फ्लाइट मिल जाती हैं।
- गुवाहाटी रेलवे स्टेशन देश के सभी हिस्सों से कनेक्ट है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से ऑटो/बस के जरिए मंदिर पहुंचा जा सकता है।
- गुवाहाटी सड़क मार्ग भी देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। निजी वाहन द्वारा भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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