केरल (Kerala) का त्रिपुनिथुरा (Tripunithura) क्षेत्र के श्री पूर्णथ्रयेश मंदिर (Sri Poornathrayesh Temple) इस दिनों चर्चा में है। यहां भक्तों को उनके पापों के प्रायश्चित के लिए 12 ब्राह्मणों के पैर धोने की प्रथा का मामला सामने आया है। केरल हाईकोर्ट ने कोचीन देवस्वम बोर्ड को नोटिस भेजकर इस बारे में जानकारी मांगी है। हालांकि मंदिर समिति ने दावों का खंडन किया है।
उज्जैन. हाईकोर्ट बेंच के सामने मंदिर समिति के वकील ने दलील दी कि अनुष्ठान के तहत 12 ब्राह्मणों के पैर धोने का काम भक्तों ने नहीं बल्कि थंतरी (मुख्य पुजारी) ने किया था। हालांकि बोर्ड ने इस मामले में हलफनामा दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी को होगी। 1920 में ये मंदिर आग की भेंट चढ़ गया था। तब तत्कालीन राजा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
क्या है ये पूरा मामला?
कालकाझिचूट्टू नाम के इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों के पैर धोने, थंतरी या किसी अन्य पुजारी के आने पर उन्हें भोजन करवाना और फिर उनके जाने पर शॉल या दक्षिणा भेंट करना होता है। यह काम थंतरी या पुजारी करता है, भक्तों को इसे करने की अनुमति नहीं है। जब यह अनुष्ठान हुआ तो विवाद हो गया, इसके बाद मंत्री राधाकृष्णन ने कोचीन देवस्वम बोर्ड के अध्यक्ष वी. नंदकुमार से रिपोर्ट मांगी। उन्होंने कहा कि अनुष्ठान को समाप्त करने पर निर्णय लेने से पहले थंतरी और अन्य अधिकारियों के साथ चर्चा की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई सालों से कोचीन देवस्वम बोर्ड के तहत मंदिरों के चढ़ावे की रेट लिस्ट में यह अनुष्ठान शामिल था। मेहमानों का स्वागत करने की हमारी परंपरा है, जिस तरह एक दूल्हे के पैर धोना भी इसी तरह की रस्म है।
जानिए मंदिर से जुड़ी खास बातें…
1. श्री पूर्णथ्रयेश का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर पूर्ववर्ती कोच्चि राज्य के 8 राजमंदिरों में से एक है। मान्यता है कि ये मंदिर लगभग 5,000 वर्ष पुराना है। यहां संतानगोपाल मूर्ति के रूप में भगवान विष्णु का चित्र विद्यमान है जिसका अर्थ शिशुओं का रक्षक है। भगवान विष्णु का विशिष्ट नाम ‘पूर्णथ्रयीसा’तीन शब्दों का मिश्रण ह - पूर्ण यानी पूरा, थ्रय यानी तीन और ईश यानी ईश्वर या ज्ञान के देवता।
2. वर्ष 1920 में यह प्राचीन मंदिर दुर्घटनावश आग में जल कर नष्ट हो गया था। कोच्चि राज्य के तत्कालीन राजा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। एक दोमंजिला गोपुरम (विशाल मीनार) मंदिर की वर्तमान सुदृढ़ संरचना का हिस्सा है। मंदिर के निर्माण में सोने का प्रयोग भूतपूर्व कोच्चि राज्य के राजपरिवार की याद दिलाता है।
3. भव्य एवं परंपरागत वास्तुशिल्प के अतिरिक्त यह मंदिर विभिन्न उत्सवों के भव्य समारोह के लिए भी प्रसिद्ध है। श्री पूर्णथ्रयेश मंदिर में मूसरी उत्सवम, अथ चमयम, ओंबाथंति उत्सवम, वृश्चिगोत्सवम, शंकर नारायण विलक्कु, परा उत्सवम और उत्तरम विलक्कु जैसे प्रसिद्ध उत्सव मनाए जाते हैं।
4. सभी उत्सवों में वृश्चिगोत्सवम या वृश्चिक उत्सवम सबसे महत्वपूर्ण एवं वैभवशाली होता है। आठ दिन चलने वाला यह त्यौहार मलयालम माह वृश्चिगम में मनाया जाता है जो नवम्बर-दिसम्बर के बीच पड़ता है। इस उत्सव में प्रतिमा वाहन यात्रा में मंदिर के पाँच आराध्य हाथियों का प्रयोग किया जाता है।
5. इन हाथियों को स्वर्ण वस्त्र, घंटियों और कंठहारों से सजाया जाता है। इसके अतिरिक्त, शास्त्रसम्मत विधि के अनुसार एक ऊँचे मंच पर एक स्वर्ण पात्र स्थापित किया जाता है जिससे दानकर्ताओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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