नियम: शिवपुराण की कथा करवाने या सुनने से पहले ध्यान रखें ये 12 बातें

भगवान शंकर से संबंधित अनेक धर्मग्रंथ प्रचलित हैं, लेकिन शिवपुराण उन सभी में सबसे अधिक प्रामाणिक माना गया है।

उज्जैन. शिवपुराण की कथा करने व सुनने वालों के लिए अनेक नियम बनाए गए हैं, जिनका वर्णन शिवपुराण में ही मिलता है। श्रावण महीने के पवित्र महीने में हम आपको बता रहे हैं शिवपुराण से जुड़ी कुछ खास बातें-

7 भाग हैं शिवपुराण के
शिवपुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं। इसमें सात संहिताएं हैं जो क्रमश: इस प्रकार हैं- 1. विद्येश्वर संहिता, 2. रुद्र संहिता, 3. शतरुद्र संहिता, 4. कोटिरुद्र संहिता, 5. उमा संहिता, 6. कैलाश संहिता, 7. वायवीय संहिता। इनमें से रुद्र संहिता के पांच खंड हैं तथा वायवीय संहिता के दो खंड।

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शिवपुराण की कथा करवाने व सुनने संबंधी नियम इस प्रकार हैं-
1.
सबसे पहले किसी योग्य ज्योतिष को बुलाकर कथा प्रारंभ के लिए मुहूर्त निर्धारित करें तथा कथा वाचन के लिए विद्वान पंडित का चयन करें। इसके बाद अपने रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों को कथा के संबंध में सूचित करें ताकि वे भी धर्म लाभ ले सकें।
2. कथा करवाने के लिए उत्तम स्थान चुनें, वहां केले के खम्भों से एक ऊंचा कथा मंडप तैयार करवाएं। उसे सब ओर से फल-पुष्प आदि से सजाएं। भगवान शंकर के लिए दिव्य आसन का निर्माण करवाएं तथा एक ऐसा ही दिव्य आसन कथावाचक (कथा सुनाने वाला) के लिए भी बनवाएं।
3. श्रोताओं (कथा सुनने वाले) के बैठने के लिए भी उचित प्रबंध होना चाहिए। सूर्योदय से आरंभ करके साढ़े तीन पहर तक कथावाचक को शिवपुराण कथा बोलनी चाहिए। मध्याह्नकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिए, ताकि श्रोता आवश्यक कार्य कर सकें।
4. कथा में आनी वाली परेशानियों को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद भगवान शंकर व शिवपुराण का पूजन भी अवश्य करें। इस प्रकार मन शुद्ध कर शिवपुराण कथा का प्रारंभ करना चाहिए।
5. जो संत, महात्मा अथवा योग्य ब्राह्मण शिवपुराण की कथा करता है, उसे कथा प्रारंभ के दिन से एक दिन पहले ही व्रत ग्रहण करने के लिए क्षौर कर्म (बाल कटवाना या नाखून काटना) कर लेना चाहिए। कथा शुरू होने से लेकर समापन तक क्षौर कर्म नहीं करना चाहिए।
6. जो लोग दीक्षा से रहित हैं, उन्हें कथा सुनने का अधिकार नहीं है। कथा सुनने की इच्छा रखने वाले को पहले वक्ता (कथा कहने वाले) से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
7. जो लोग नियमपूर्वक कथा सुनें, उनको ब्रह्मचर्य से रहना, भूमि पर सोना, पत्तल में खाना और प्रतिदिन कथा समाप्त होने पर ही भोजन करना चाहिए। शक्ति व श्रद्धा हो तो पुराण की समाप्ति तक उपवास करके शुद्धता पूर्वक भक्तिभाव से शिवपुराण की कथा सुनें।
8. जल्दी न पचने वाला भोजन, दाल, जला अन्न, सेम, मसूर, भावदूषित तथा बासी अन्न को खाकर कभी शिवपुराण की कथा नहीं सुननी चाहिए। जिसने कथा का व्रत ले रखा हो, उसे प्याज, लहसुन, हींग, गाजर, मादक वस्तु आदि का त्याग कर देना चाहिए।
9. कथा का व्रत लेने वाले को काम, क्रोध आदि 6 विकारों को, ब्राह्मणों की निंदा को तथा पतिव्रता और साधु-संतों की निंदा को भी त्याग देना चाहिए।
10. दरिद्र, क्षय का रोगी, पापी, भाग्यहीन तथा संतान रहित पुरूष को भी यह कथा सुननी चाहिए।
11. शिवपुराण की कथा का समापन होने पर उत्सव मनाना चाहिए। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ पुराण की भी पूजा करना चाहिए। साथ ही कथा कहने वाले महापुरुष की भी पूजा कर उन्हें दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। कथा सुनने आए ब्राह्मणों का यथोचित सत्कार कर उन्हें भी दान-दक्षिणा देना चाहिए।
12. कथा सुनने संबंधी व्रत की पूर्णता की सिद्धि के लिए 11 ब्राह्मणों को मधु (शहद) मिश्रित खीर का भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें।

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