Life Management: पूरा खजाना देने के बाद भी फकीर का भिक्षा पात्र नहीं भर पाया राजा…कारण भी बहुत अनोखा था

हर इंसान की कुछ न कुछ चाहत होती है, किसी को पैसे की तो किसी को पद की। ये इच्छाएं अगर पूरी हो जाएं तो दूसरी इच्छाएं मन में जन्म ले लेती हैं। इस तरह एक के बाद एक नई-नई इच्छाएं मन में बनी ही रहती है क्योंकि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।

उज्जैन. अगर हम संतुष्टि भरा जीवन जीना चाहते हैं तो जो है, जैसा है उसी में सुख का अनुभव करना होगा। नहीं तो जीवन भर इच्छाओं के पीछे भागते ही निकल जाएगी। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है इच्छाओं की पूर्ति कर पाना नामुमकिन होता है।

जब फकीर ना बर्तन न भर पाया राजा
किसी राज्य में एक राजा था। दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था। एक दिन राजा सुबह-सुबह दान देने के लिए बाहर आया। मांगने वालों की भारी भीड़ थी। किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा, ''जो भी चाहते हो, मांग लो।'' 
उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा, ''बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।'' 
सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था। वह तो जादुई था। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया! 
सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला, ''न भर सकें तो कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा! ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके।'' 
सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा। तब उस सम्राट ने पूछा, ''भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?'' 
वह फकीर हंसने लगा और बोला, ''कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के मन से बनाया गया है। क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का मन कभी भी भरा नहीं जा सकता? धन से, पद से, ज्ञान से- किसी से भी भरो, वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। 
इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है। मन की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों? क्योंकि, मन तो परमात्मा को पाने के लिए बना है।
शांति चाहते हो ? 
संतृप्ति चाहते हो ? 
मन को जीतना चाहते हो ? 
"तो अपने संकल्प को कहने दो कि परमात्मा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए"।

लाइफ मैनेजमेंट
कथा का सार यही है कि हमारे पास कितनी भी धन-दौलत क्यों न हो, लेकिन हमारी भूख और लालच कभी खत्म नहीं होता। अगर हम संतुष्ट चाहते हैं तो जितना मिले, उसी में संतुष्टि का अनुभव करें और परमात्मा का स्मरण करते रहें।

 

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