पिता और बेटा गधे पर बैठकर जा रहे थे, लोगों ने कहा ’कितने निर्दयी है, दोनों पैदल चलने लगे…फिर क्या हुआ?

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। ये बात वर्तमान समय में एकदम सटीक बैठती है। लोग अक्सर दूसरों की गलती निकालने की कोशिश करते हैं और कई बार बिना वजह ही दूसरे के काम में टांग अड़ाते हैं।

उज्जैन. अच्छा काम करने के बाद भी लोग उसमें कुछ न कुछ बुराई निकाल ही देते हैं। इसलिए लोगों की बात सुनें, लेकिन करना क्या है ये स्वयं तय करें।  Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि लोगों की बात में आकर कोई निर्णय न लें।  

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जब लोगों के कहने में आ गया बूढ़ा आदमी 

एक बार एक बूढ़ा और उसका बेटा गधे को साथ लेकर बाजार जा रहे थे। रास्ते में खड़े कुछ लोग हंसने लगे। एक व्यक्ति बोला ”भला इस गधे को बिना बोझ लादे ले जाने से क्या लाभ? अरे तुम दोनों में से एक इस पर बैठ क्यों नहीं जाता?“ अरे हां!“ बूढ़ा आदमी बोला ”आप ठीक कहते हैं।” 
यह कह कर बूढ़े ने अपने बेटे को गधे पर बिठा दिया और चल दिया। कुछ देर बाद जब वे एक गाँव के पास से गुजरे तो कुछ गाँव वाले उन्हें देखकर बोले ”अरे! यह देखो। यह कामचोर लड़का तो आराम से गधे पर बैठा है और बूढ़ा पिता उसके पीछे पैदल चल रहा है। 
अब बूढ़ा आदमी बेटे को गधे से उतार कर स्वयं गधे पर बैठ गया। अभी वे कुछ और आगे बढ़े थे कि एक कुएं के किनारे खड़ी कुछ स्त्रियां चिल्ला उठीं ”अरे! इस बूढ़े को तो देखो। कैसे मजे से गधे पर बैठा है और बच्चे को पैदल दौड़ा रहा है। बच्चे को भी गधे पर क्यों नहीं बिठा लेता।” 
यह सुनकर बूढ़े ने बच्चे को भी गधे पर अपने पीछे बैठा लिया और आगे बढ़ा। बूढ़े ने सोचा, “चलो अब तो कम से कम कोई नहीं टोकेगा। मगर जैसे ही वे अभी थोड़ी दूर ही आगे बढ़े रास्ते पर खड़े एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया और बोला ” यह गधा आपका ही है?“ 
बूढ़ा बोला “हां, है तो मेरा ही। 
“भला कौन सोच सकता है कि इस बेचारे गधे पर आप लोग इतना बोझ लादते होंगे।” यह कहकर वह व्यक्ति हंसता हुआ आगे बढ़ गया। 
अब बूढ़ा व्यक्ति गुस्से से बड़बड़ाने लगा- ‘समझ में नहीं आता कि करूं तो क्या करूं। गधे पर बोझ नहीं लादता तो लोग घूर कर देखते हैं। यदि हम में से कोई एक गधे पर बैठ कर यात्रा करता है तो बैठने वाले को धिक्कारते हैं। अगर हम बाप-बेटे दोनों गधे पर बैठ जाते हैं तो भी लोग हमारा उपहास करते हैं। आखिरकर दोनों पिता-पुत्र गधे से उतरे और शेष मार्ग पैदल ही तय किया।

निष्कर्ष ये है कि…
लोगों का काम है कहना। वे आपको छोटी-छोटी बातों पर टोकेंगे, रोकेंगे, लेकिन करना क्या है या आप स्वयं तय करें। लोगों की बातों पर आकर कोई निर्णय न लें, नहीं तो कुछ तय नहीं कर पाएंगे।

 

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