Life Management: 7 दिन बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी...इस एक बात ने गुस्सैल नेचर वाले शख्स की बदल दी जिंदगी

मध्यकालीन संतों में तुकारामजी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है। 17वीं शताब्दी के भारतीय महापुरुषों में अग्रणी संत तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र में पुणे के पास देहू गांव में हुआ था। महाराष्ट्र के जनमानस पर आज भी संत तुकाराम की अमिट छाप है।

उज्जैन. संत कबीर की तरह तुकारामजी ने भी गृहस्थ रूप में संत जीवन जीने का उत्कृष्ट उदाहरण समाज के सामने रखा। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज में हम आपको बता रहे हैं कि संत तुकाराम ने अपने एक गुस्सैल शिष्य को समझाने के लिए क्या युक्ति अपनाई, जिससे उस शिष्य का स्वभाव ही बदल गया और वह सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार करने लगा। आगे जानिए संत तुकाराम से जुड़ा ये प्रसंग…

संत तुकाराम ने ऐसे बदला शिष्य का स्वभाव
संत तुकाराम घर-परिवार की जिम्मेदारियों और जीवन के उतार-चढ़ावों के बीच भी पूरी तरह से शांत, संतुलित और प्रसन्न रहते थे। परिस्थितियां कितनी भी विकट हों और दूसरों के व्यवहार में कितना भी उतार-चढ़ाव आ जाए, मगर तुकारामजी धैर्य, संयम शांति के मार्ग से कभी डिगते नहीं थे। उनके अनेक शिष्य थे।
उन्हीं शिष्यों में से एक जरा गुस्सैल स्वभाव का था। वह जब कभी गांव में जाता, लोगों तक गुरु की शिक्षा फैलाता। लेकिन, वह लोगों की गलतियों और दोषों पर क्रोधित हो जाता था। बुराइयां और लोगों की खामियां देखकर तुरंत उत्तेजित हो जाना उसका स्वभाव था। उसे तुकारामजी के संयम को देखकर हैरानी होती थी। 
एक बार उसने पूछ ही लिया, ‘‘गुरुदेव, विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी आप इस तरह शांत और संयमित कैसे रह लेते हैं। कृपा कर हमें भी इसका रहस्य बताएं”।
तुकारामजी ने दुखी होते हुआ कहा, ‘‘इसका उत्तर तुम्हें मिल जाएगा बेटा, किंतु इस वक्त मैं जो देख पा रहा हूं वह जानना तुम्हारे लिए अधिक जरूरी है। 
शिष्य ने पूछा, “क्या गुरुदेव”?
संत तुकाराम ने दुखी होते हुए कहा, “7 दिन बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी”। 
गुरु के मुंह से ऐसी बात सुनकर शिष्य सन्न रह गया। कोई और कहता तो शायद उसे विश्वास न होता, लेकिन स्वयं संत तुकाराम के मुंह से निकली इस बात पर वह कैसे नहीं भरोसा करता। अंतिम समय पास जानकर शिष्य ने घर जाकर एक नई जिंदगी शुरू की। अब वह सबके साथ प्रेम से रहता। पिछले व्यवहारों के लिए वह अपने परिवार और मित्रों से क्षमा मांगकर उनके साथ प्रेम और विनम्रता से पेश आता। 
सारा दिन ईश्वर का ध्यान करता और लोगों से उनके दुःख में काम आने वाली बातें बताता। वह चाहता सबका मन हल्का हो और उसकी वजह से किसी का मन न दुखे। अब उसके स्वभाव में क्रोध और आवेश का कोई चिह्न नहीं बचा। इस तरह वह अपने अंदर-बाहर पूरी तरह शांति और प्रेम से लबालब भर गया।
सातवे दिन वह गुरु तुकारामजी से मिलने गया और उनके चरणों में झुककर बोला, ‘‘गुरुदेव, आशीर्वाद दें। अब इस शरीर से आपका दर्शन न कर पाउंगा”। तुकारामजी ने उसे सिर पर प्यार से हाथ फेरा और उसे कंधों से पकड़कर उठाते हुए बोले, ‘‘बेटा शतायु होओ। मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
गुरु के मुख से ऐसा आशीर्वाद सुनकर शिष्य को बड़ा अचरज हुआ। तब संत तुकारामजी ने उससे पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ इन 7 दिनों को तुमने कैसे बिताया? कितने लोगों की गलतियों पर तुम क्रोधित हुए? कितनों से तुम्हारा झगड़ा हुआ”?
शिष्य ने कहा, “इन दिनों में मैंने किसी से विवाद नहीं किया, सभी से प्रेम पूर्वक मिला और ईश्वर की आराधना में समय बिताया।”
तुकारामजी मुस्कुराए और बोले, ‘‘बेटा तुमने पूछा था न कि मेरे शांत व्यवहार का क्या रहस्य है? यही तो है, जो आज तुम समझ पाए हो। हमेशा सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करो, किसी भी नकारात्मक और व्यर्थ की बातों पर ध्यान मत दो। ईश्वर की आराधना करो और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो।
शिष्य संत तुकाराम की बात समझ गया और इसके बाद उसके स्वभाव में भी हमेशा के लिए परिवर्तन आ गया। 

लाइफ मैनेजमेंट
हमारे आस-पास ऐसी बहुत-सी गतिविधियां होती हैं जो हमें अपने लक्ष्य से भटका सकती हैं। उन पर ध्यान मत दो। अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य पर निशाना साधो और ईश्वर के प्रति आस्था मन में रखो। इन सभी बातों का ध्यान रखने पर आप निश्चिक ही अपने व्यवहार में परिवर्तन ला सकते हो और अपना लक्ष्य भी पा सकते हो।

 

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