Mahabharata: द्रौपदी के कारण न हो भाइयों में विवाद, इसलिए पांडवों ने बनाया था ये खास नियम

Published : Sep 19, 2022, 04:04 PM IST
Mahabharata: द्रौपदी के कारण न हो भाइयों में विवाद, इसलिए पांडवों ने बनाया था ये खास नियम

सार

Mahabharata: महाभारत हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की है और लेखन स्वयं भगवान श्रीगणेश ने। इस ग्रंथ में कई रोचक और प्रेरणादाई बातों का सार है।  

उज्जैन. महाभारत के अनुसार, जब द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था, उस समय अर्जुन ने शर्त पूरी कर द्रौपदी से विवाद किया। बाद में कुंती के कहे अनुसार, द्रौपदी पांचों भाइयों की पत्नी बनी। जब ऐसा हुआ तो एक दिन नारद मुनि पांडवों से मिलने आए और उन्होंने दो राक्षसों की कथा सुनाई और बताया कि कैसे एक स्त्री की वजह से दो पराक्रमी राक्षस मारे गए। साथ ही ये भी कहा कि ऐसा तुम लोगों के साथ न हो, इसके लिए तुम्हें कुछ विचार करना चाहिए। 

नारदजी ने सुनाई पांडवों को कथा
किसी समय सुंद और उपसुंद नाम के दो पराक्रमी राक्षस भाई थे। उन्होंने तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। जब ब्रह्माजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने कहा कि “हमारी मृत्यु एक-दूसरे के हाथों ही हो, किसी दूसरे व्यक्ति के हाथों हम न मारे जाएं।” ब्रह्माजी से वरदान पाकर ये दोनों ऋषि-मुनियों और देवताओं पर अत्याचार करने लगे। 
अंत में सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान वाली बात बताई और कहां कि अगर वे दोनों किसी बात पर एक-दूसरे से युद्ध को तैयार हो गए तो इनकी मृत्यु निश्चित है। तब देवताओं के आग्रह पर विश्वकर्मा ने एक सुंदर स्त्री की रचना की, उसका नाम तिलोत्तमा रखा। देवताओं ने उसे सुंद-उपसुंद के पास भेजा।
तिलोत्तमा के सौंदर्य को देखकर दोनों भाई उस पर मोहित हो गए। दोनों उसे पाने के लिए लालायित हो उठे। तब तिलोत्तमा ने कहा कि “तुम दोनों युद्ध करो, जो जीतेगा, मैं उसी की पत्नी बनूंगी। तिलोत्तमा को पाने के लिए सुंद- उपसुंद में भंयकर युद्ध होने लगा। अंत में दोनों एक-दूसरे के हाथों मारे गए।

कथा सुनने के बाद पांडवों ने बनाया ये नियम
नारद मुनि से ये कथा सुनने के बाद पांडवों ने ये नियम बनाया कि एक-एक साल द्रौपदी हर भाई के महल में निवास करेगी और इस दौरान कोई दूसरा भाई उसके महल में प्रवेश नहीं करेगा और यदि कोई ऐसा करेगा तो उसे 12 साल के लिए वनवास पर जाना होगा। एक बार किसी कारणवश अर्जुन ने ये नियम तोड़ा था जिसके चलते उन्हें 12 वर्ष के लिए वनवास पर जाना पड़ा।


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