Mahabharata: स्वर्ग जाने से पहले पांडवों ने धृतराष्ट्र पुत्र को सौंपी थी राज-पाठ की जिम्मेदारी, कौन था वो?

Mahabharata: महाभारत युद्ध में कौरवों और पाडंवों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में पांडवों ने राजा धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों का वध कर दिया। लेकिन एक पुत्र को जीवित छोड़ दिया। धृतराष्ट्र का वो पुत्र कौन-था, इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं।
 

उज्जैन. महाभारत (Mahabharata) हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा कि संसार का सारा ज्ञान इस ग्रंथ हैं और जो इस ग्रंथ में नहीं है, वो ज्ञान संसार में कहीं ओर नहीं है। महाभारत के अनुसार, जब कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में यु्दध हुआ तो उसमें दुर्योधन (Duryodhana), दु:शासन सहित गांधारी के सभी 100 पुत्र मारे गए, लेकिन धृतराष्ट्र का एक पुत्र बच गया। वो पुत्र कौन था और पांडवों ने उसे क्यों नहीं मारा, इसकी जानकारी इस प्रकार है…

ये था धृतराष्ट्र का वो पुत्र जो युद्ध के बाद भी जीवित रहा
अधिकांश लोग धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों दुर्योधन, दु:शासन आदि के बारे में ही जानते हैं, लेकिन धृतराष्ट्र का एक पुत्र और भी था, जिसकी माता गांधारी नहीं थी। महाभारत के अनुसार, जिस समय गांधारी गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र की सेवा के लिए दासी नियुक्त की गई थी। उस दासी के गर्भ से ही युयुत्सु (yuyutsu) का जन्म हुआ था। धृतराष्ट्र (Dhritarashtra) पुत्र होने के कारण वह भी राजकुमार था और वह दुर्योधन और उसके भाइयों की तरह अधर्मी और पापी नहीं था।

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पांडवों ने इसलिए नहीं किया युयुत्सु का वध
पांडवों ने कौरवों की पूरा सेना का नाश कर दिया, लेकिन युयुत्सु को छोड़ दिया, इसके पीछे भी एक वजह थी। महाभारत के अनुसार, जब कौरवों और पांडवों की सेना कुरुक्षेत्र में आमने-सामने खड़ी थी, तब युधिष्ठिर ने घोषणा की थी कि जो व्यक्ति मेरी सेना से निकलकर दुर्योधन की सेना में जाना चाहता था वो चला जाए और दुर्योधन की सेना से अगर कोई मेरी सेना में आना चाहे तो आ सकता है। उस समय युयुत्सु दुर्योधन की सेना त्याग कर पांडवों की ओर चला गया था। इसी कारण था कि युद्ध के बाद धृतराष्ट्र का यही एक पुत्र जीवित रहा।

युद्ध के बाद क्या हुआ युयुत्सु का?
युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने तो उन्होंने सभी भाइयों को अलग-अलग काम सौंपे। तब युयुत्सु को उन्होंने अपने पिता धृतराष्ट्र की सेवा के लिए नियुक्त किया था। जब धृतराष्ट्र और गांधारी वन में चले गए तो युधिष्ठिर ने उन्हें दूसरे कामों की जिम्मेदौरी सौंप दी। युयुत्सु राज्य के अन्य कार्य जब पाडंव स्वर्ग की यात्रा पर निकले तो उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया और युयुत्सु को उसका संरक्षक नियुक्त किया।


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