महालक्ष्मी व्रत 28 सितंबर को, इस दिन की जाती है हाथी पर बैठीं मां लक्ष्मी की पूजा, ये है पूजा विधि

इस बार 28 सितंबर, मंगलवार को महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat 2021) का समापन होगा। ये व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है। इस तरह ये व्रत 16 दिनों तक किया जाता है।
 

उज्जैन. महालक्ष्मी व्रत (28 सितंबर) से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भी हैं। इस व्रत के अंतिम दिन हाथी पर विराजित मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए इसे हाथी अष्टमी या हाथी पूजन भी कहा जाता है। कई स्थानों पर सिर्फ हाथी की प्रतिमा की ही पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

इस विधि से करें महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat 2021)
इस दिन सुबह स्नानादि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। व्रत का संकल्प लेते समय ये मंत्र बोलें-
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा,
तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:

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अर्थात्- हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगी। मेरा यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो। मां लक्ष्मी से यह कहकर अपने हाथ की कलाई में डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों।

- इसके बाद एक मंडप बनाकर उसमें लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखें। माता की पूजन सामग्री में चंदन, पुष्प माला, अक्षत (चावल), दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा अन्य प्रकार की सामग्री रखी जाती है।
- पूजन के दौरान नए सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखें। इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा
व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा
अर्थात-  क्षीरसागर से प्रकट हुई लक्ष्मी, चंद्रमा की सहोदर, विष्णु वल्लभा मेरे द्वारा किए गए इस व्रत से संतुष्ट हों।
- इसके बाद देवी लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर सोलह प्रकार से पूजन करने के बाद देवी लक्ष्मी की आरती करें।
- व्रतधारी 4 ब्राह्मण और 16 ब्राह्मणियों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इसके पहले सिर्फ फलाहार कर सकते हैं। 
- इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है। सोलहवें दिन महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat 2021) का उद्यापन किया जाता है। अगर कोई व्रतधारी किसी कारणवश इस व्रत को सोलह दिनों तक न कर पाएं तो केवल तीन दिन तक भी इस व्रत को कर सकता है, जिसमें पहले, आठवें और सोलहवें दिन यह व्रत किया जाता है।

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