सार

हिंदू धर्म में पूजा पाठ से संबंधित बहुत सारे नियम बताए गए हैं। प्रत्येक देवी-देवताओं के लिए अलग मंत्र, अलग फूल, फल व प्रसाद अर्पित किए जाने का प्रावधान है। इन सभी चीजों का अपना एक विशिष्ट महत्व माना गया है।

उज्जैन. ज्यादातर लोग अपने घरों में जमीन पर बैठकर ही पूजन कर लेते हैं लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह सही नहीं माना जाता है। इसीलिए कभी भी जमीन पर बैठकर पूजन नहीं करना चाहिए। ईश्वर की आराधना करते समय आसन के प्रयोग का भी अपना एक अलग महत्व होता है।  अतः इससे जुड़े नियमों को ध्यान में रखना भी बहुत आवश्यक होता है। आगे जानिए पूजा के आसन से जुड़ी किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है…

किस पूजा के लिए कैसा होना चाहिए आसन?
कंबल या ऊनी आसन पर बैठकर पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। लाल रंग के कंबल का आसन, लक्ष्मी जी, हनुमान जी और मां दुर्गा की आराधना के लिए उत्तम रहता है। तो वहीं मंत्र सिद्धि आदि के लिए कुशा का बना आसन सही रहता है लेकिन श्राद्ध कर्म आदि करते समय कुशा के आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

आसन क्यों जरूरी?
किसी भी पूजा या मंत्र जाप करते समय आसन आवश्यक रूप से होना चाहिए। मान्यता के अनुसार जब हम कोई शुभ कार्य करते हैं तो हमारे शरीर में एनर्जी का लेवल बढ़ने लगता है। आसन पर न बैठने की स्थिति में ये एनर्जी जमीन द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। आसन हमारे शरीर और जमीन के बीच कुचालक का काम करता है और वह एनर्जी जमीन में नहीं जा पाती।  

जानिए आसन से जुड़े ये नियम
1.
पूजा करते समय कभी भी दूसरे व्यक्ति का आसन प्रयोग नहीं करना चाहिए।
2. पूजा करने के बाद आसन को ऐसे ही न छोड़ें, और इधर-उधर न पड़े रहने दें, इससे आसन का निरादर होता है।
3. आसन को साफ हाथों से ही उठाएं और सही से तय करने के बाद उचित स्थान पर ही रखें।
4. पूजा के आसन का प्रयोग अलग से किसी कार्य जैसे भोजन करना आदि को करते समय न करें।
5. पूजा करने के पश्चात भी आसन से सीधे न हटें बल्कि आचमन से थोड़ा सा जल भूमि पर अर्पित करें और धरती पर प्रणाम करें।
6. अब अपने आराध्य देव या देवी का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करने के बाद आसन को उठाकर सही प्रकार से रखें।

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