बांग्लादेश के इस प्राचीन शिव मंदिर में सालों से धधक रही है प्राकृतिक अग्नि, कोई समझ नहीं पाया इसका रहस्य

धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव की पूजा अनादिकाल से की जा रही है। जब इस दुनिया में कई देशों का अस्तित्व ही नहीं था, उस समय से हिंदू धर्म दुनिया के कोने-कोने में फैला है। इसका प्रमाण आज भी शिव मंदिरों के रूप में अलग-अलग देशों में देखा जा सकता है।
 

उज्जैन. महादेव के सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में प्रसिद्ध मंदिर हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान (Pakistan), बांग्लादेश (Bangladesh) और अफगानिस्तान (Afghanistan) में भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर है। इन देशों में स्थित कई मंदिर तो इतने चमत्कारिक हैं कि वैज्ञानिक भी आज तक इनका रहस्य सुलझा नहीं पाए हैं। ऐसा ही एक प्राचीन और चमत्कारी शिव मंदिर बांग्लादेश में भी है। इस बार 1 मार्च को महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) है। इस मौके पर हम आपको बांग्लादेश के इस शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं।
 

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इस मंदिर में जल रही प्राकृतिक ज्वाला
- बांग्लादेश में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो अपने चमत्कार के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन और पूजा करने के लिए आते हैं। इसकी एक वजह मंदिर के प्रति लोगों की आस्था है और दूसरा यहां की जलती ज्वाला। इस मंदिर का नाम अग्निकुंड महादेव (Agnikund Mahadev Temple) है। 
- अग्निकुंड महादेव मंदिर बांग्लादेश के चिट्टागांव में स्थित है। यह मंदिर दुनिया के लिए आश्चर्य का केंद्र है। कहा जाता है यहां मंदिर में मौजूद अग्निकुंड में आग की ज्वाला सालों से जलती चली आ रही है। 
- आज तक इसे कोई बुझा नहीं सका है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि अभी तक कोई भी पुरातत्वविद इस आग के स्रोत की खोज नहीं कर पाया है। 
- दूर-दूर से लोग इस मंदिर में धधकती ज्वाला को देखने और शिव मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। इस ज्वाला के कारण ही इस मंदिर का नाम अग्निकुंड महादेव रखा गया है। 
- इस दिव्य ज्वाला का स्रोत आज तक कोई पता नहीं कर पाया है। न ही इसमें ईंधन पड़ता है, फिर भी ज्वाला का अखंड रूप से जलना चमत्कार ही है। वैज्ञानिक भी आज तक इसके रहस्य के बारे में जान नहीं पाए हैं।

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क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि?
महाशिवरात्रि भगवान शिव से संबंधित सबसे प्रमुख त्योहार है। ये पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार, इस तिथि पर भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे और विष्णु और ब्रह्माजी की परीक्षा ली थी।, वहीं कुछ स्थानों पर इसे शिव-पार्वती के विवाह से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।


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