Mahashivratri 2022:पाकिस्तान में है शिवजी के आंसुओं से बना कुंड, यहीं पांडवों ने काटा था वनवास

भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं। ऐसा ही एक मंदिर पाकिस्तान में भी है। इसे कटासराज मंदिर (Katasraj Temple Pakistan) कहा जाता है। कटासराज मंदिर पाकिस्तान के चकवाल गांव से लगभग 40 कि.मी. की दूरी पर कटस नामक स्थान में एक पहाड़ी पर है।

उज्जैन.  पाकिस्तान के कटासराज से कई मान्यताएं जुड़ीं हैं, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मान्यता के अनुसार, जब देवी पार्वती सती हुई तो भगवान शिव की आँखों से दो आंसू टपके। एक आंसू कटास पर टपका जहाँ आज भी अमृत कुण्ड (Amrit Kund Katasraj) के रूप में है दूसरा आंसू अजमेर राजस्थान में टपका और यहाँ पर पुष्करराज (Pushkar Shrine Ajmer) तीर्थ स्थान है। महाभारत (Mahabharata) काल से भी इस स्थान का महत्व जुड़ा है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) के मौके पर हम आपको इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बता रहे हैं…

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ऐसा है मंदिर का स्वरूप
मंदिर का वर्तमान स्वरुप छठी से नौवी शताब्दी के बीच के राजाओं द्वारा दिया गया था। तब से लेकर अब तक यह मंदिर वैसे ही खड़ा हैं किंतु मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा इस पर आक्रमण करने व पाकिस्तान के अलग होने पर इस मंदिर पर ध्यान ना देने के कारण आज के समय में यह मंदिर क्षतिग्रस्त हालत में हैं।  यहां के सतघरा मंदिरों के समूह में सिर्फ चार मंदिरों के अवशेष बचे हैं जिसमें भगवान शिव, राम और हनुमान के मंदिर हैं।  उप-मंदिरों की ऊंचाई स्तंभों की छोटी पंक्तियों के साथ कंगनी की एक श्रृंखला के रूप में प्रतीत होती है, जो एक रिब्ड गुंबद द्वारा ताज पहनाया जाता है। सात मंदिरों को कश्मीरी मंदिरों के समान एक स्थापत्य शैली में बनाया गया था। 

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ये है मंदिर और कुंड से जुड़ी कथा
अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ कुंड में जब सती ने आत्मदाह किया था, तो उनके वियोग में भगवान शिव ने अपनी सुध-बुध खो दी थी।  उनके आंसुओं से दो कुंड बने, उसमें से एक कुंड का नाम है पाकिस्तान स्थित कटासराज मंदिर का अमृत कुंड। कहा जाता है कि यहां के सात मंदिरों का निर्माण पांडवों ने महाभारत काल में किया था। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान लगभग 4 साल यहां बिताए थे। पांडवों ने अपने रहने के लिए सात भवनों का निर्माण किया था। वहीं भवन अब सात मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान को लेकर यह भी मान्यता है कि इसी कुंड के तट पर युधिष्ठिर और यक्ष का संवाद हुआ था।

 

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