Pongal 2023: पोंगल के तीसरे दिन होता है जल्लीकट्टू, क्यों खास है परंपरा? जानें इससे जुड़ी खास बातें

Published : Jan 14, 2023, 02:13 PM IST
Pongal 2023: पोंगल के तीसरे दिन होता है जल्लीकट्टू, क्यों खास है परंपरा? जानें इससे जुड़ी खास बातें

सार

Pongal 2023: मकर संक्रांति का पर्व देश में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल कहते हैं। ये त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान जल्ली कट्टू खेल का आयोजन भी किया जाता है।  

उज्जैन. इस बार पोंगल (Pongal 2023) का त्योहार 15 जनवरी से शुरू होगा जो 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। इन 4 दिनों तक रोज अलग-अलग परंपराएं निभाई जाएंगी। जल्ली कट्टू भी इन परंपराओं में से एक है। ये एक खतरनाक परंपरा है, जिसमें खूंखार बैलों को लोगों द्वारा पकड़ा जाता है। इस खेल में कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं और कई की मौत भी हो जाती है। जल्लीकट्टू (jallikattu) की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। आगे जानिए जल्ली कट्टू से जुड़ी कुछ खास बातें…

पोंगल का अर्थ है उबलना (Meaning and Importance of Pongal)
साल की शुरूआत में जब फसल पक जाती है तो पोंगल का त्योहार मनाया जाता है। तमिल भाषा में पोंगल का अर्थ है ऊफान या उबलना। दक्षिण भारत में पोंगल से ही नए साल की शुरूआत मानी जाती है। पोंगल का त्योहार 4 दिन तक मनाया जाता है। तीसरे दिन जल्लीकट्टू खेल की शुरूआत होती है। इस खेल के अंतर्गत खतरनाक बैलों को  एक-एक कर छोड़ा जाता है जो इन बैलों पर काबू कर लेता है, उसे ही विजेता माना जाता है। जल्लीकट्टू शब्द कालीकट्टू से बना है। काली का अर्थ है सिक्का और कट्टू का अर्थ है बांधना। पहले से समय में बैलों के सींग पर सिक्कों की एक पोटली बांधी जाती है और जो व्यक्ति उस बैल को काबू में कर लेता था, उसे वो पोटली ईनाम में दी जाती थी। 

बैल को मानते हैं भगवान शिव का वाहन
दक्षिण भारत में बैल को भगवान शिव का वाहन मानते हैं। चूंकि इसका उपयोग खेती के कामों भी किया जाता है, इसलिए इसका यहां विशेष सम्मान किया जाता है। कई मौकों पर बैलों की पूजा की जाती है। इसके मरने पर शोक किया जाता है व अपने परिवार के सदस्यों की तरह अंतिम क्रिया की जाती है। गांव के लोगों को मृत्यु भोजन दिया जाता है। कुछ लोग तो बैल का मंदिर तक बनवा देते हैं।

ये है मान्यता
पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहते हैं। इसके पीछे एक कथा प्रचलित हैं, उसके अनुसार, भगवान शिव के वाहन का नाम मट्टू बैल है। एक बार शिवजी ने उसे धरती पर मनुष्यों को एक संदेश देने के लिए भेजा, लेकिन मट्टू बैल पूरी बात भूल गया और गलत बातें धरतीवासियों को बता दी। इससे शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने मट्टू को श्राप दे दिया कि वह अब धरती पर रहकर खेतों की जुताई करेगा। 


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