ढाई हजार साल पुराना है राजस्थान का ये देवी मंदिर, इससे जुड़ी हैं कई पौराणिक कथाएं

हमारे देश में देवी के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इनमें से कुछ बहुत प्राचीन हैं। ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान (Rajasthan) के नागौर (Nagaur) समेत जयपुर (Jaipur) और अजमेर (Ajmer) 3 जिलों की सीमा के बीच सांभर झील में स्थित है। ये शाकंभरी माता (Shakambari Mata Temple) का मंदिर है। 

Asianet News Hindi | / Updated: Oct 07 2021, 07:15 AM IST

उज्जैन. शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) का पर्व आज (7 अक्टूबर, गुरुवार) से शुरू हो चुका है। 14 अक्टूबर तक देवी मंदिरों में रोज भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। वैसे तो हमारे देश में देवी के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इनमें से कुछ बहुत प्राचीन हैं। ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान (Rajasthan) के नागौर (Nagaur) समेत जयपुर (Jaipur) और अजमेर (Ajmer) 3 जिलों की सीमा के बीच सांभर झील में स्थित है। ये शाकंभरी माता (Shakambari Mata Temple) का मंदिर है। नावां शहर से झील के बीच से होकर यहां पहुंचा जा सकता है। हालांकि मंदिर पहुंचने के लिए मूल रूप से सड़क मार्ग रास्ता जयपुर जिले के सांभर शहर से होकर निकलता है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 847 में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। हालांकि लोग इसे करीब 2500 साल पुराना और कुछ लोग महाभारत काल का भी बताते हैं।

स्वयंभू है माता की प्रतिमा
सांभर झील के जिस स्थान पर मंदिर बना हुआ है, उसके ठीक पीछे एक छोटी पहाड़ी भी है। यह स्थान कुछ वर्षों पहले तक जंगल की तरह था और यह जगह घाटी देवी की बनी कहलाती थी। पूरे भारत में शाकंभरी देवी का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यहीं है, जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वत: प्रकट हुई थी। शाकंभरी माताजी के देशभर में 3 शक्तिपीठ है। जिनमें उदयपुरवाटी स्थित सकराय माता मंदिर और उत्तरप्रदेश में सहारनपुर के अलावा सांभर झील का यह मंदिर प्रमुख है। मां शाकंभरी के मंदिर में चैत्र और शारदीय दोनों नवरात्रों के समय मेला लगता है। यहां देश के कई हिस्सों से भक्त मां के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इसके अतिरिक्त हिंदी कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को यहां भव्य मेले का आयोजन होता है।

इस मंदिर से जुड़ी हैं ये पौराणिक कथाएं
1. महाभारत, शिव पुराण और मार्कण्डेय पुराण जैसे ग्रंथों में माता शाकंभरी का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, माता ने इस स्थान पर जहां बारिश भी नहीं होती थी वहां तपस्या की थी। इस तपस्या के दौरान माता ने केवल माह में एक बार शाक यानी वनस्पति का सेवन किया था। इस स्थान पर शाक की उत्पत्ति माता के तप के कारण हुई थी। शाक पर आधारित तपस्या के कारण शाकंभरी नाम पड़ा। इस तपस्या के बाद भू-गर्भ में बहुमूल्य धातुओं की प्रधानता हो गई। समृद्धि के साथ ही यहां इस प्राकृतिक संपदा को लेकर झगड़े शुरू हो गए। तब माता ने यहां बहुमूल्य संपदा को नमक में बदल दिया।

2. श्री शाकंभरी महामाया कथा के अनुसार इस क्षेत्र के चांदी की खान बनने की किवदंती भी है। मान्यताओं के अनुसार मां शाकंभरी ने पृथ्वीराज चौहान को वरदान दिया था कि वह बिना पीछे मुड़े जितनी दूर अपना घोड़ा दौड़ाएंगे, उतनी दूर चांदी की खान बन जाएगी। पृथ्वीराज ने घोड़ा दौड़ाने के बाद मन में विचार किया कि कौन ये चांदी की खान रखने देगा, इसके पीछे लोग लड़ेंगे। न जाने कितने निर्दोषों की जान जाएगी। यह सोच चौहान पीछे मुड़ गए और चांदी की खान नमक की झील में तब्दील हो गई।

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