Shraddh Paksha 2022: श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध हैं ये 5 तीर्थ, यहां पिंडदान करने से पितरों को मिलता है मोक्ष

Shraddh Paksha 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है। इन 15 दिनों में प्रतिदिन लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण आदि करते हैं। इस बार श्राद्ध पक्ष 25 सितंबर, रविवार तक हैं।
 

उज्जैन. भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष (Shraddh Paksha 2022) कहलाता है। इस बार ये समय 10 से 25 सितंबर तक है। ऐसी मान्यता है कि किसी तीर्थ स्थान पर पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हमारे देश में कई ऐसे स्थान हैं जहां रोज हजारों लोग पूर्वजों का श्राद्ध करने पहुंचते हैं। इन सभी तीर्थों से अलग-अलग मान्यता और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। श्राद्ध पक्ष के दौरान तो यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है। श्राद्ध पक्ष के मौके पर हम आपको कुछ प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों के बारे में बता रहे हैं। इनकी जानकारी इस प्रकार है…


महाराष्ट्र में है मेघंकर तीर्थ (Meghankar tirth)
मेघंकर (Meghankar) तीर्थ महाराष्ट्र (Maharashtra) के पास बसे खामगांव से लगभग 75 किमी दूरी पर है। इस तीर्थ का वर्णन ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण आदि धर्म ग्रंथों में आता है। मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी के यज्ञ में प्रणीता पात्र (यज्ञ के दौरान उपयोग में आने वाला बर्तन) से इस नदी की उत्पत्ति हुई थी। यह नदी यहां पश्चिम वाहिनी होने के कारण और भी पुण्यपद मानी जाती है। यहां श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। नदी के तट पर भगवान विष्णु का एक प्राचीन मंदिर है। भगवान की मूर्ति लगभग 11 फुट की शिला की बनी हुई है। यहां मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से पूर्णिमा तक मेला लगता है।

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गुजरात का पिंडारक तीर्थ (Pindarak Tirth)
पिण्डारक या पिण्डतारक गुजरात (Gujarat) में द्वारिका (Dwarka) से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर है। यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं। वे पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरते रहते हैं। यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव और ब्रह्माजी के मंदिर हैं। साथ ही श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी है। कहा जाता है कि यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था। महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव सभी तीर्थों में अपने मृत बांधवों का श्राद्ध करने आए थे। पांडव यहां आए तो उन्होंने लोहे का एक पिण्ड बनाया और जब वह पिंड भी जल पर तैर गया तब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ कि उनके बंधु-बांधव मुक्त हो गये हैं। 

हरिद्वार में है नारायणी शिला मंदिर (Narayani Shila Mandir)
हरिद्वार में स्थित नारायणी मंदिर का श्राद्ध कर्म के लिए विशेष महत्व है। पितृ दोष से पीड़ित लोग भी यहां पूजा करते हैं। जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनके लिए इस मंदिर में पितृ दान, मोक्ष, जप, यज्ञ और श्राद्ध अनुष्ठान भी किए जाते हैं। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की आधी शिला की मूर्ति स्थापित है। यहाँ मंदिर में आसपास के क्षेत्र से हजारों छोटे-बड़े टीले हैं जिनको देखने लोग यहाँ आते हैं। ये टीले पिंड दान के लिए बनाये गए हैं।

गुजरात का सिद्धपुर भी है खास (Siddhpur, Gujrat)
गुजरात के पाटन जिले में स्थित सिद्धपुर एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां सिर्फ मातृ श्राद्ध का प्रावधान है। सिद्धपुर में सबसे महत्वपूर्ण स्थल बिंदु सरोवर है। श्राद्ध पक्ष में यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है। पौराणिक काल में भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया था। उनकी माता का नाम देवहुति और पिता का कर्दम था। मान्यता है कि बिंदु सरोवर के तट पर माता की मृत्यु के बाद कपिल मुनि ने उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था। इसके बाद से यह स्थान मातृ मोक्ष स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

गया में बालू से करते हैं पिंडदान (Gaya, Bihar)
बिहार का गया क्षेत्र श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। गया में बालू से पिंडदान किया जाता है जिसका वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन है। इसके मुताबिक, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए गया आए थे। गया बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतात्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है। फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। 


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