आज (25 मई, मंगलवार) वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इसे नृसिंह चतुर्दशी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर सृष्टि को हिरण्यकश्यपु के आंतक से मुक्ति दिलाई थी।
उज्जैन. नृसिंह चतुर्दशी के दिन प्रमुख नृसिंह मंदिरों में भक्त दर्शन करने आते हैं। वैसे तो देश में अनेक नृसिंह मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित नृसिंह बदरी मंदिर का विशेष महत्व है।
1 हजार साल पुराना है ये मंदिर
आम दिनों में इस मंदिर में लोगों का सालभर आना-जाना लगा ही रहता है। वहीं ठंड के मौसम में भगवान बदरीनाथ भी इसी मंदिर में विराजते हैं। यहीं उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि जोशीमठ में नृसिंह भगवान के दर्शन किए बिना बदरीनाथ धाम की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। यह मंदिर करीब 1 हजार साल से ज्यादा पुराना मंदिर है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं।
शालिग्राम पत्थर से बनी है भगवान नृसिंह की मूर्ति
मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है। इस मूर्ति का निर्माण आठवीं शताब्दी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीड के शासनकाल के दौरान किया गया और कुछ लोगों का मानना है कि मूर्ति स्वयं-प्रकट हो गई। मूर्ति करीब 10 इंच की है और भगवान नृसिंह एक कमल पर विराजमान हैं | भगवान नृसिंह के साथ इस मंदिर में बद्रीनारायण, उद्धव और कुबेर की मूर्तियां भी मौजूद है। मंदिर में भगवान नृसिंह के दाएं ओर भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी और गरुड़ की मूर्तियां स्थापित हैं और बाई ओर कालिका माता की प्रतिमा है ।
मंदिर स्थापना को लेकर मिलते हैं कई मत
राजतरंगिणी ग्रंथ के मुताबिक 8वीं सदी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीड द्वारा अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान प्राचीन नृसिंह मंदिर का निर्माण उग्र नृसिंह की पूजा के लिये हुआ जो भगवान विष्णु का अवतार है। इसके अलावा पांडवों से जुड़ी मान्यता भी है कि उन्होंने स्वर्गरोहिणी यात्रा के दौरान इस मंदिर की नींव रखी थी। वहीं, एक अन्य मत के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की क्योंकि वे नृसिंह भगवान को अपना ईष्ट मानते थे।
मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी भी स्थित है
इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी भी स्थित है। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में कहा गया है कि जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा तो विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। केदारखंड के सनतकुमार संहिता में
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