Mahashivratri 2022: शिव भक्त होते हैं अघोरी, क्यों रहते हैं श्मशान में? हैरान कर देने वाली हैं ये बातें

भगवान शिव को तंत्र-मंत्र का अधिष्ठाता कहा जाता है यानी इसका दुनिया को तंत्र-मंत्र का ज्ञान इन्होंने ही दिया है। और भी कई पंथ भगवान शिव को ही अपना सर्वस्व मानते हैं। अघोर पंथ भी इन्हीं में से एक है। हमारे समाज में अघोर पंथ को बहुत ही रहस्यमय तरीके से देखा जाता है।

उज्जैन. आमतौर पर अघोर पंथ को मानने वाले लोग दुनिया की नजरों से दूर सुनसान स्थान या किसी शमशान में रहना पसंद करते हैं। इनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरियों (Aghori) की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली होती है। इस बार 1 मार्च, मंगलवार को महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) है। चूंकि अघोरी भगवान शिव के भक्त होते हैं और इसलिए इस मौके पर हम आपको अघोरियों से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं, जो किसी को भी हैरान कर सकती हैं।  

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किसे कहते हैं अघोरी?
अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खा सकते हैं जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जा सकता है। अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों को खाते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। 

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श्मशान साधना का विशेष महत्व
अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विध्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं। उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं।  

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हठी स्वभाव के होते हैं अघोरी
अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो अपना किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं जैसे वो बहुत गुस्सा हो लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

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दुनिया से अलग रहना करते हैं पसंद
अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए होते हैं। वे अपने आप में मस्त रहने वाले, अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई सम्पर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं। अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनि जलती रहती है। 

करते हैं शिव, शव और श्मशान साधना
अघोरी मूलतः तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव शाधना, और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पाँव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।  

 

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