Jagannath Rath Yatra 2022: कौन करता है भगवान जगन्नाथ के रथ की रक्षा? ये हैं रथयात्रा से जुड़ी रोचक मान्यताएं

हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। अलग-अलग स्थानों पर भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न नामों से जाना जाता है। उड़ीसा (Orissa) के पुरी (Puri) में भगवान श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर हैं, जिसे जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के नाम से जाना जाता है।

Manish Meharele | Published : Jun 27, 2022 11:26 AM IST

उज्जैन. हर साल आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इसे देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त यहां आते हैं। इस बार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2022) 1 जुलाई से शुरू होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथ भी होते हैं। इन रथों को भक्त स्वयं खींचते हैं। लगभग 10 दिनों तक चलने  वाले धार्मिक आयोजन में लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। आगे जानिए इस रथयात्रा से जुड़ी खास बातें…

सोने की झाड़ू से साफ करते हैं यात्रा मार्ग
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के रथ बनाते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाता है। ये सभी रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं क्योंकि ये अन्य लकड़ियों से हल्की होती है। जिससे इन्हें आसानी से खींचा जा सकता है। इन तीनों रथों के नाम भी अलग-अलग हैं। रथ तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और सोने की झाड़ू से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता है।

ऐसा होता है भगवान जगन्नाथ का रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ को गरुड़ध्वज, नंदीघोष व कपिध्वज के नाम से जाना जाना जाता है। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है। भगवान जगन्नाथ के रथ के घोड़ों का नाम बलाहक, शंख, श्वेत व हरिदाश्व है। इनका रंग सफेद होता है। रथ के रक्षक पक्षीराज गरुड़ है। इस रथ पर हनुमानजी और नृसिंह का प्रतीक चिह्न व सुदर्शन स्तंभ भी होता है। ये रथ की रक्षा का प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और ये अन्य रथों से आकार में थोड़ा बड़ा भी होता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है।

रथ बनाने में नहीं किया जाता धातु का उपयोग
बलरामजी के रथ को तालध्वज कहते हैं, इस पर महादेव का चिह्न होता है। रथ के रक्षक वासुदेव व सारथि का नाम मतालि है। सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इनके रथ पर देवी दुर्गा का चिह्न होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथि अर्जुन होते हैं। इन तीनों रथों में कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है।


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