1 वोट की कीमत; दांव पर थी सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा, जब राज्यसभा चुनाव के लिए देर रात TV देखते रहे लोग

2017 में राज्यसभा के इतिहास में गुजरात की तीन सीटों के लिए हुआ चुनाव कई मायनों में यादगार रहा। राज्यसभा का ऐसा पहला चुनाव था जिसको लेकर जबरदस्त चर्चा रही। देररात तक गहमागहमी रही। मुकाबला इतना दिलचस्प था कि हर कोई नतीजों को जानना चाहता था।

Asianet News Hindi | Published : Sep 16, 2020 2:08 PM IST / Updated: Sep 16 2020, 08:12 PM IST

नई दिल्ली। बिहार में 243 विधानसभा सीटों के चुनाव (Bihar Assembly Elections) की जबरदस्त हलचल है। हालांकि चुनाव आयोग (Election Commission Of India) ने अभी तारीखों का ऐलान नहीं किया है मगर राज्य के साथ ही कई अन्य जगहों पर भी नवंबर के आखिर तक उपचुनाव हो जाना तय है। चुनाव, लोकतांत्रिक देशों में ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधियों को हराने या जिताने का अधिकार पाते हैं। जनता के यही प्रतिनिधि सरकार बनाते और चलाते हैं। कई लोग सवाल करते हैं कि उनके अकेले वोट न देने से क्या फर्क पड़ जाएगा, ऐसे लोगों को तीन साल पहले राज्यसभा में अहमद पटेल (Ahmed Patel) के जीतने की कहानी को याद करना चाहिए। 

राज्यसभा के इतिहास का सबसे दिलचस्प चुनाव 
संभवत: पहली बार 2017 में राज्यसभा के इतिहास में गुजरात (Gujrat Rajya Sabha Election 2017) की तीन सीटों के लिए हुआ चुनाव कई मायनों में यादगार रहा। राज्यसभा का ऐसा पहला चुनाव था जिसको लेकर जबरदस्त चर्चा रही। देररात तक गहमागहमी रही। मुकाबला इतना दिलचस्प था कि हर कोई नतीजों को जानना चाहता था। मीडिया ने गुजरात में राज्यसभा चुनाव को लगातार लाइव किया। लोग नतीजों के लिए देररात तक टीवी के आगे बने रहे। यह सब सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के मैदान में होने की वजह से थी। 

चुनाव में सोनिया और पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर थी। ताकतवर बीजेपी (BJP) किसी भी सूरत में पटेल को राज्यसभा में जाने से रोकने के लिए लगा हुआ था। राज्यसभा चुनाव में पटेल के अलावा बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smruti Irani) भी उम्मीदवार थीं। पटेल के खिलाफ बीजेपी ने बलवंत सिंह राजपूत (Balwant Singh Rajput) को उतारा था। 

पटेल की जीत पर था संशय 
दिल्ली से लेकर गुजरात तक दिनभर राज्यसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां अपने चरम पर थीं। शाह और ईरानी की जीत पक्की थी। बीजेपी की कोशिश थी कि कांग्रेस के बागियों के जरिए पटेल को हरा दिया जाए। रणनीतियों को देखकर ऐसा लग भी रहा था। शंकर सिंह वाघेला (Shankar Singh Vaghela) जैसे दिग्गज नेता भी कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में आ गए थे। वाघेला ने गुजरात कांग्रेस के चाणक्य समझे जाने वाले और पांचवी बार किस्मत आजमा रहे पटेल की हार का पहले ही ऐलान कर दिया था। दरअसल कांग्रेस के बागियों की वजह से लगा भी था कि पटेल की हार निश्चित है। 

बागियों की गलती से पटेल को मिली जीत 
राज्यसभा में कुल विधायकों की संख्या 176 थी। इस संख्याबल के आधार पर उम्मीदवारों को जीतने के लिए 45-45 वोट की जरूरत थी। लेकिन कांग्रेस के दो बागी विधायकों राघवभाई पटेल और भोलाभाई गोहिल ने वोट दिया और कथित तौर पर अपने मतदान को गैरअधिकृत एजेंट के सामने उजागर कर दिया। कांग्रेस ने चुनाव आयोग में नियमों का हवाला देते हुए इसकी शिकायत की। गुजरात से दिल्ली तक दिनभर राजनीतिक वाद-विवाद के बाद आयोग ने बागी विधायकों का वोट रद्द कर दिया। अब सदन में विधायकों की कुल संख्या 174 हो गई और एक उम्मीदवार को जीत के लिए सिर्फ 44 मतों की जरूरत थी। 

इस तरह बची थी पटेल की प्रतिष्ठा 
गुजरात राज्यसभा चुनाव के नतीजे चुनाव आयोग के हस्तक्षेप के बाद देररात घोषित हुए। पटेल को 44 वोट मिले थे। बलवंत सिंह को मात्र 38 वोट मिले। बागी विधायकों का वोट रद्द हो जाने के बाद पटेल जीत गए। शाह और ईरानी ने भी 46-46 वोट हासिल कर जीत दर्ज की। ये बात समझी जा सकती है कि अगर बागी विधायकों ने मतपत्र नहीं दिखाए होते तो शायद पटेल को संख्याबल की वजह से चुनाव हारना पड़ता। लेकिन वो बागियों की गलती की वजह से प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब हुए। हालांकि बाद में बलवंत सिंह राजपूत ने पटेल की जीत को गुजरात हाईकोर्ट में चैलेंज भी किया। 

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