एक वोट की कीमत; 1 वोट से जर्मन नहीं बन पाई थी अमेरिका की भाषा, इस तरह अंग्रेजी से मिली थी मात

यह सोचना कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें अमेरिका की आधिकारिक भाषा की कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए। ये संभव था कि आज जर्मन अमेरिका की भाषा होती।  

नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों में उपचुनाव होने वाले हैं। चुनाव लोकतांत्रिक देशों में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधि और सरकारों को हराने या जिताने का अधिकार पाते हैं। लोकतंत्र में सरकार और सिस्टम का कंट्रोल वोट की शक्ति से होता है। यह सोचना कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें अमेरिका की आधिकारिक भाषा की कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए। ये संभव था कि आज हम और आप जिस माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं उसकी भाषा अमेरिकन इंग्लिश की बजाय जर्मन होती।  

आप सोच रहे होंगे कि जर्मन और अमेरिका का भला दूर-दूर तक क्या रिश्ता है? बहुत गहरा रिश्ता है इसमें एक वोट की अहमियत उभर कर सामने आती है। वैसे पूरे अमेरिका में कोई एक भाषा यूनिवर्सल नहीं है। इंग्लिश भी अमेरिका की भाषा नहीं है। अंग्रेजी जिस तरह भारत में पहुंची, अमेरिका में भी वैसे ही घुसपैठ हुई थी। "क्योरा" पर भाषा को लेकर कुछ ज्ञानियों की डिबेट में एक और मजेदार चीज का पता चला। वह यह कि अंग्रेजी यूके यानी ब्रिटेन की भी अपनी मातृभाषा नहीं है जिसकी वजह से दुनियाभर में इसका प्रसार हुआ। 

Latest Videos

अमेरिका में ऐसे पहुंची अंग्रेजी 
एक तरह से अंग्रेजी बनते-बनते बन गई। ब्रिटिश कॉलोनी या उपनिवेश की वजह से। अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा कभी ब्रिटिश उपनिवेश था। क्योरा पर कुछ ने दावा किया कि आज जो अंग्रेजी है उसका विकास उपनिवेश की वजह से हुआ। अमेरिका में भी। वैसे भाषा का विकास लिंगविस्टिक यानी भाषा विज्ञान का मसला है। लेकिन अमेरिका में 200 साल से ज्यादा पहले प्रस्ताव पर वोटिंग में "एक वोट" से जर्मन की जगह अंग्रेजी को स्थान मिला जो बाद में अमेरिकन अंग्रेजी बनी। दरअसल, तब अमेरिका में सिर्फ 9 प्रतिशत लोग जर्मनी बोलने वाले थे। हालांकि अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या ज्यादा थी। मगर कई प्रभावशाली लोग जर्मन के पक्ष में थे। इनमें फ़्रेडरिक मुलेनबर्ग और उनका परिवार भी शामिल था। 

 

और जर्मन आधिकारिक भाषा बनते-बनते रह गई  
प्रभावशाली लोगों ने ज़ोर दिया कि अमेरिका में जर्मन को आधिकारिक भाषा का स्टेटस दिया जाए। 13 जनवरी 1795 को एक और प्रस्ताव में जर्मन को ऑफिशियल स्टेटस न देने की मांग हुई। भाषा विज्ञानी डेनिस बेरोन के मुताबिक जर्मन और अंग्रेजी के पक्ष में जोरदार बहस हुई। प्रस्ताव वोटिंग तक पहुंचा और एक वोट से अंग्रेजी, जर्मन पर भारी पड़ गई। वैसे अमेरिका के मूल निवासियों की जो भाषा (नवजाओ, दकोता, केरीज़, अपाचे जैसी दर्जनों भाषाएं) आदि है उसका नाम भी ज़्यादातर लोग नहीं जानते हैं। और इन्हें बोलने वालों की संख्या आज कुछ हजारों में हैं। 

भारतीय भाषाओं का स्थान तीसरा 
अमेरिका की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है और आज की तारीख में वहां दुनियाभर की कई दर्जन भाषाएं बोली जाती हैं। अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। अमेरिका की आधिकारिक भाषा भी वही है। इसके बाद 41 मिलियन से ज्यादा लोग स्पैनिश बोलते हैं। फिर मंदारिन यानी चीन की भाषा (3.5 मिलियन) और भारतीय भाषाओं (करीब ढाई मिलियन से ज्यादा) को बोला जाता है। भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा हिंदी फिर गुजराती बोली जाती है। 

सोचिए कि उस वक्त अगर एक वोट से जर्मन आधिकारिक भाषा बनती तो आज की तारीख में अंग्रेजी की जगह शायद जर्मन दुनियाभर की भाषा होती। क्योंकि कंप्यूटर और आधुनिक तकनीक का सबसे ज्यादा विकास अमेरिका में ही हुआ। तब एक वोट से अंग्रेजी अमेरिका की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाती तो शायद अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प जर्मन में प्रेसिडेंशियल कैम्पेन चला रहे होते। 

(बिहार चुनाव की और दिलचस्प खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

Share this article
click me!

Latest Videos

पहले गई सीरिया की सत्ता, अब पत्नी छोड़ रही Bashar Al Assad का साथ, जानें क्यों है नाराज । Syria News
Devendra Fadnavis के लिए आया नया सिरदर्द! अब यहां भिड़ गए Eknath Shinde और Ajit Pawar
कड़ाके की ठंड के बीच शिमला में बर्फबारी, झूमने को मजबूर हो गए सैलानी #Shorts
LIVE 🔴: बाबा साहेब का अपमान नहीं होगा सहन , गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ बर्खास्तगी की उठी मांग'
राजस्थान में बोरवेल में गिरी 3 साल की मासूम, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी । Kotputli Borewell News । Chetna