1 वोट की कीमत; सिर्फ 9 वोट से BJP ने पहली बार जीती थी ये सीट, यहां बेअसर रहा PM मोदी का मैजिक

पहली बार 10 से कम वोट से हार-जीत का फैसला 1989 में आंध्रप्रदेश की अनाकपल्ली सीट पर और दूसरी बार 1998 में तत्कालीन बिहार की राजमहल लोकसभा सीट पर देखने को मिला था। 

नई दिल्ली। बिहार में 243 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव (Bihar Assembly Elections) की सरगर्मियां तेज हैं। हालांकि अभी शेड्यूल की घोषणा नहीं हुई है मगर बिहार के साथ ही साथ कुछ राज्यों में भी नवंबर के आखिर तक उपचुनाव होना तय है। चुनाव लोकतांत्रिक देशों में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधियों को हराने या जिताने का अधिकार पाते हैं। जनता के यही प्रतिनिधि सरकार बनाते और चलाते हैं। लोकतंत्र में सरकार और सिस्टम का कंट्रोल जनता को वोट की शक्ति के जरिए मिलता है। जो यह सोचते हैं कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता (One Vote Importance) उन्हें राजमहल लोकसभा सीट पर 1998 के चुनाव (Rajmahal Lok Sabha constituency Result 1998) का इतिहास याद कर लेना चाहिए। 

लोकसभा के इतिहास में दो बार ही ऐसे मौके आएं जब हार-जीत का फैसला 10 वोटों से भी कम अंतर पर हुआ था। पहली बार 10 से कम वोट से हार-जीत का फैसला 1989 में आंध्रप्रदेश की अनाकपल्ली सीट पर और दूसरी बार 1998 में तत्कालीन बिहार की राजमहल लोकसभा सीट पर देखने को मिला था। राजमहल सीट बिहार के बंटवारे के बाद अब झारखंड (Jharkhand) में है। ये उस वक्त बिहार की और अब झारखंड की अनुसूचित जनजाति बाहुल्य सीट है। 

Latest Videos

हमेशा रहा क्षेत्रीय दलों का दबदबा 
राजमहल लोकसभा सीट पर हमेशा से अनुसूचित जाति के मतदाताओं का दबदबा रहा। स्थानीय संरचना और मुद्दों की वजह से यहां शुरू से ही राष्ट्रीय दलों का वैसा दबदबा नहीं रहा जिस तरह उत्तर भारत की दूसरी सीटों पर दिखी है। 1962 से 1971 तक झारखंड पार्टी (Jharkhand Party) और 1989 से यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दबदबा रहा है। बीच में राष्ट्रीय दलों का। यहां से सात बार दो क्षेत्रीय दलों ने और 9 बार जनता पार्टी, कांग्रेस (CONGRESS) और बीजेपी (BJP) ने प्रतिनिधित्व किया। 

 

आखिरी वक्त तक नहीं हो पा रहा था फैसला 
लेकिन राजमहल के इतिहास में सबसे दिलचस्प और सांस रोक देने वाला चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari) के नेतृत्व में 1998 में हुआ था। उस चुनाव में बीजेपी ने सोम मरांडी (Som Marandi) को मैदान में उतारा था। जबकि कांग्रेस ने थॉमस हसदा को उम्मीदवार बनाया था। राजमहल का वो पूरा चुनाव ही दिलचस्प था। दोनों उम्मीदवारों के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला। कैम्पेन, वोटिंग और आखिरी दौर की मतगणना तक यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि राजमहल कौन जीतेगा? हर पल नतीजे पेंडुलम की तरह इधर से उधर हो जाते थे। देर रात तक गिनती चलती रही। रीकाउंटिंग भी करानी पड़ी। आखिर में बीजेपी के सोम मरांडी को विजेता घोषित किया गया। वो भी सिर्फ 9 वोटों से। 

मोदी लहर में भी बीजेपी नहीं जीत पाई ये सीट 
सोम मरांडी को 1,98,889 वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 1,98, 880 वोट मिले। मात्र 9 वोट से बीजेपी पहली बार राजमहल की सीट जीतने में कामयाबी पाई। कांग्रेस उम्मीदवार अगर 9 या 10 वोट और पा जाता तो शायद राजमहल का इतिहास दूसरा होता। पहली जीत के 10 साल बाद झारखंड बनने के बाद 2009 में बीजेपी ने ये सीट दोबारा जीती। 2014 और 2019 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की जबरदस्त लहर के बावजूद बीजेपी यहां कोई करिश्मा नहीं कर पाई। चुनाव में हर एक वोट की कीमत होती है। 1998 में राजमहल का नतीजा बताता है कि कांग्रेस उम्मीदवार के लिए एक-एक वोट की क्या कीमत रही। 

Share this article
click me!

Latest Videos

फर्स्ट टाइम तिरुपति बालाजी के दरबार पहुंचे Arvind Kejriwal, बताया क्या मांगी खास मन्नत
उज्जैन में हरि-हर मिलन: शिव बोले विष्णु से ‘संभालो अपनी सृष्टि-मैं चला श्मशान’
पनवेल में ISKCON में हुआ ऐसा स्वागत, खुद को रोक नहीं पाए PM Modi
SDM थप्पड़कांड के बाद हर तरफ बवाल, ठप हो गया राजस्थान और नरेश मीणा को घसीटते हुए ले गई पुलिस
Dehradun Car Accident CCTV Video: हादसे से पहले कैमरे में कैद हुई इनोवा | ONGC Chowk