1 वोट की कीमत; सबसे मुश्किल चुनाव, इन 13 मौकों पर बेहद कम मार्जिन से हुआ था हार-जीत का फैसला

लोकतंत्र में सरकार और सिस्टम का कंट्रोल जनता की वोट की शक्ति के जरिए होता है। जो यह सोचते हैं कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें 1962 से 2014 के बीच लोकसभा की इन सीटों के नतीजों को याद रखना चाहिए। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 14, 2020 11:14 AM IST / Updated: Apr 05 2023, 01:40 PM IST

नई दिल्ली। बिहार में 243 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव (Bihar Assembly Elections) की सरगर्मियां तेज हैं। हालांकि अभी शेड्यूल की घोषणा नहीं हुई है मगर बिहार के साथ ही साथ कुछ राज्यों में भी नवंबर के आखिर तक उपचुनाव होना तय है। चुनाव लोकतांत्रिक देशों में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधियों को हराने या जिताने का अधिकार पाते हैं। जनता के यही प्रतिनिधि सरकार बनाते और चलाते हैं। 

लोकतंत्र में सरकार और सिस्टम का कंट्रोल जनता की वोट की शक्ति के जरिए होता है। जो यह सोचते हैं कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता (One Vote Importance) उन्हें 1962 से 2014 के बीच लोकसभा की इन सीटों के नतीजों को याद रखना चाहिए। 

भारत के चुनावी इतिहास में ये वो 13 लोकसभा सीटें (Lowest Victory Margins In Lok Sabha Elections) हैं जब प्रत्याशियों की हार-जीत का अंतर बेहद मामूली था। कई जगह तो अंतर 10 वोट से भी कम रहा। समझा जा सकता है कि काउंटिंग के दौरान उम्मीदवारों की सांस तक अटक गई होगी। इसमें कई ज़्यादातर ईवीएम (EVM) से पहले के हैं। चूंकि बैलेट पेपर से गिनती में काफी समय लगता था। टफ़ेस्ट मुकाबलों में दोबारा गिनती करानी पड़ी। मतगणना करने वाले कर्मचारियों के पसीने छूट गए थे। 

लोकसभा में पहली बार कब हुआ था 9 वोट से हार-जीत का फैसला 
चुनाव आयोग (Election Commission of India) के पास लोकसभा की टफ़ेस्ट मार्जिन वाली सीटों का रिकॉर्ड है। इसके मुताबिक पहली बार 10 से भी कम वोट से हार-जीत का फैसला 1989 में हुआ था। तब कांग्रेस के उम्मीदवार के. रामकृष्ण ने आन्ध्रप्रदेश की अनाकपल्ली सीट महज 9 वोटों के अंतर से कब्जा किया था। 

 

9 साल बाद बिहार में भी रुक गई थी सांस
इसके 9 साल बाद दूसरी बार 10 वोटों से कम अंतर पर हार-जीत का फैसला 1998 में बिहार की एक लोकसभा सीट पर देखने को मिला था। उस वक्त बीजेपी के सोम मरांडी ने राजमहल की लोकसभा सीट मात्र 9 वोटों के अंतर से जीतने में कामयाबी पाई थी। इससे पहले 1996 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में भी क्लोज फाइट दिखी थी। तब कांग्रेस उम्मीदवार सत्यजीत सिंह गायकवाड़ ने बड़ौदा लोकसभा सीट महज 17 मतों से जीती थी। 

1962 से 2014 तक लोकसभा चुनाव की सबसे क्लोज फाइट  

सालनामलोकसभा सीटपार्टी राज्य जीत का अंतर
1962रिसंगआउटर मणिपुरसोशलिस्टमणिपुर42
1967एम रामकरनाल कांग्रेसहरियाणा203
1971एमएस शिवसामीत्रिचेंदरडीएमकेतमिलनाडु26
1977देसाई दजीबा बलवंतराव कोल्हापुरपी एंड डब्ल्यू पार्टीमहाराष्ट्र165
1980रामायण रायदेवरियाकांग्रेसउत्तर प्रदेश 77
1984 मेवा सिंह लुधियानाशिरोमणि अकाली दल पंजाब140
1989के रामकृष्ण अनाकपल्लीकांग्रेसआंध्र प्रदेश 9
1991 राम अवधअकबरपुर जनता दलउत्तर प्रदेश 156
1996सत्यजीत गायकवाडबड़ौदाकांग्रेस'गुजरात17
1998 सोम मराण्डीराजमहलबीजेपीबिहार9
1999 प्यारेलाल शंकवार'घाटमपुरबीएसपीउत्तर प्रदेश105
2004पी पुकुनिकोया  लक्षद्वीप जनतदल यूनाइटेडलक्षद्वीप71
2014थुपस्तान चेवांगलद्दाखबीजेपीजम्मू कश्मीर36

सोर्स : भारत चुनाव आयोग 


बिहार के अलावा कई जगह उपचुनाव (Byelection) हो रहे हैं। ऐसे में यह सोचना कि एक वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता, आपके पसंदीदा उम्मीदवार और पार्टी दोनों के लिए मुश्किल साबित हो सकता है। अच्छा यह होगा कि अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें। 

Share this article
click me!