हर पार्टी की है दलित वोटों पर नजर, नीतीश से 'जंग' में कहीं पस्त न हो जाए चिराग का राजनीतिक 'हौंसला'

एससी/एसटी समाज के लिए एनडीए सरकार की इस घोषणा से एनडीए को राजनीतिक फायदा मिलेगा। लेकिन जिस तरह से चिराग और नीतीश का झगड़ा दिख रहा है उसके बहुत खराब संकेत हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 10, 2020 5:54 AM IST

पटना। बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव जीतने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाता महत्वपूर्ण हो गए हैं। राज्य में एससी/एसटी वोट करीब 16 प्रतिशत से ज्यादा है। यही वजह है कि सभी पार्टियों और गठबंधन की रणनीति के केंद्र में ये वोटबैंक है। अंतिम समय तक इसी वोट बैंक को पाने के लिए पार्टियों और गठबंधनों की स्ट्रेटजी फाइनल नहीं हो पा रही है। हालांकि अभी चुनाव आयोग ने बिहारा के लिए शेड्यूल अनाउंस नहीं किया है। 

सभी पार्टियों के पास एससी/एसटी समाज से आने वाले बड़े चेहरे हैं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा का तो राजनीतिक आधार ही यही वोट हैं। दलित और महादलित समाज के वोटों की वजह से ही दोनों दल एनडीए के लिए महत्वपूर्ण हैं। एनडीए में इसी वोट बैंक पर वर्चस्व के लिए दोनों दलों में होड़ भी साफ देखी जा सकती है जो नीतीश-चिराग के झगड़े के रूप में सामने आ रही है। माना जा रहा है कि बिहार चुनाव का फैसला इसी वोट बैंक से होगा। नीतीश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की घोषणाओं में भी इसी वोट बैंक पर फिकास का ख्याल रखा जा रहा है। 

 

दलित नेता की कमी से लाए गए श्याम रजक 
एक समय बिहार में दलित वोटों पर कांग्रेस और आरजेडी का कब्जा था। मगर समय के साथ वोट का ये आधार दूसरे दलों में बिखरता चला गया। आरजेडी में चुनाव से पहले कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं था। मांझी के जाने के बाद संकट भी खड़ा होता नजर आया। मगर ललाऊ यादव की पार्टी ने नीतीश सरकार के मंत्री और सीनियर दलित नेता श्याम रजक को जेडीयू से तोड़कर आरजेडी में मिला लिया। पार्टी को एक बड़ा चेहरा मिल गया। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार दलित समाज के बीच कांग्रेस का चेहरा हैं। दलितों को रिझाने के लिए इस बार महागठबंधन में वामपंथी पार्टियों को भी शामिल किया जा रहा है। बताते चलें कि बिहार के कई इलाकों में दलित और महादलित समाज पर अभी भी वामपंथी पार्टियों का जबरदस्त प्रभाव है। 

तीन जातियों का दबदबा 
बिहार में कुल एससी मतदाताओं में करीब 70 प्रतिशत से ज्यादा रविदास, मुसहर और पासवान समाज से आते हैं। ये सबसे तगड़ा वोटबैंक है। पासवान समाज में रामविलास पासवान और मुसहर समाज में जीतन राम मांझी सबसे बड़े नेता हैं। दोनों नेता एनडीए में शामिल हैं। रविदास समाज का वोट भी जेडीयू, बीजेपी, बसपा और वामपंथी पार्टियों में बिखरा हुआ है। हत्या जैसी आपराधिक स्थिति का सामना करने वाले एससी/एसटी परिवार के किसी एक व्यक्ति को अनुकंपा पर सरकारी नौकरी देने की घोषणा हाल ही में नीतीश कुमार ने की थी। 

 

नीतीश की घोषणा से एनडीए आगे 
एससी/एसटी समाज के लिए एनडीए सरकार की इस घोषणा से एनडीए को राजनीतिक फायदा मिलेगा। लेकिन जिस तरह से चिराग और नीतीश का झगड़ा दिख रहा है उसके बहुत खराब संकेत हैं। चिराग बार-बार 143 सीटों पर खासतौर से जेडीयू के खिलाफ चुनाव में उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रहे हैं। हम और जेडीयू की ओर से भी एलजेपी के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर पलटवार करने की बातें सामने आ रही हैं। जाहिर तौर पर ये झगड़ा आगे भी जारी रहा तो एनडीए के दलों को एससी/एसटी समाज के निर्णायक वोटों का बंटवारा करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में चिराग को नुकसान भी उठाना पड़ा सकता है। बीजेपी को नुकसान का अंदेशा है। इसीलिए पार्टी मध्यस्थ की भूमिका में नीतीश और चिराग के विवाद का कोई समाधान खोजने की कोशिश में है। 

नीतीश-चिराग के झगड़े को छोड़ दिया जाए तो एससी/एसटी वोटों के लिहाजा से अभी तक एनडीए, महागठबंधन से काफी आगे नजर आ रहा है। आरजेडी तैयारियां कर रहा है, मगर काफी पीछे नजर आ रहा है। देखना होगा कि आरजेडी एससी/एसटी वोटों को हथियाने के लिए क्या उपाय करता है। क्योंकि एक्सपर्ट का ऐसा मानना है कि इस बार बिहार का फैसला यही वोट बैंक करने जा रहा है। 

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