हर तीसरा उम्मीदवार करोड़पति, विकास के मुद्दों पर जातीय गणित भारी; नक्सल इलाकों में चुनौती है चुनाव

पहले फेज में 71 सीटों पर करीब एक दर्जन से ज्यादा छोटे-बड़े दल मैदान में हैं। अलग-अलग पार्टियों के करीब 1,064 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 114 महिला प्रत्याशी हैं।

पटना। पहले फेज की वोटिंग के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती 28 अक्तूबर से शुरू हो जाएगी। 243 विधानसभा सीटों के लिए इस बार पांच छोटे-बड़े गठबंधन मैदान में हैं। मुख्य मुक़ाबला सत्ता में काबिज एनडीए और महागठबंधन के बीच है। एनडीए में जेडीयू, बीजेपी, वीआईपी और हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा जबकि महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई एमएल, सीपीआई और सीपीएम शामिल है। इस बार चिराग पासवान की एलजेपी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है और अकेले चुनाव लड़ रही है। 

बिहार में इस बार तीन फेज में चुनाव हो रहे हैं। नतीजे अगले महीने 10 नवंबर को आएंगे। पहले फेज की 71 विधानसभा सीटें 16 जिलों- भागलपुर, बांका, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, पटना, भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतास, अरवल, औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई और जहानाबाद की हैं। 16 जिलों के कुल 2,14,84,787 वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 1,12,76,396 पुरुष मतदाताओं के साथ 1,01,29,101 फ़ीमेल और 599 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। करीब 78,691 सर्विस वोटर्स भी हैं। चुनाव आयोग ने 31,380 बूथ बनाए हैं। पहले फेज में 35 सीटें नक्सल प्रभावित इलाकों की हैं। चुनाव आयोग ने यहां सुरक्षा के खास इंतजाम किए हैं। 

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पहले फेज में आरएलएसपी के सबसे ज्यादा उम्मीदवार 
पहले फेज में 71 सीटों पर करीब एक दर्जन से ज्यादा छोटे-बड़े दल मैदान में हैं। अलग-अलग पार्टियों के करीब 1,064 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 114 महिला प्रत्याशी हैं। ADR की रिपोर्ट के मुताबिक 375 प्रत्याशियों की चल-अचल संपत्ति एक करोड़ या उससे ज्यादा है। यानी पहले फेज में हर तीसरा उम्मीदवार करोड़पति है। बिहार के बड़े दलों की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी सबसे ज्यादा यानी 43सीटों पर मैदान में है। आरएलएसपी के बाद आरजेडी 42, एलजेपी के 42, उम्मीदवार, जेडीयू के 35, बीजेपी के 29, बीएसपी 27, कांग्रेस के 21, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के 6,  वीआईपी का 1 उम्मीदवार मैदान में है। 8 सीटों पर महागठबंधन की ओर से कम्युनिस्ट उम्मीदवार प्रत्याशी हैं। 

2015 में सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं आरजेडी को   
पहले फेज की 71 सीटों पर 2015 के चुनावी नतीजें देखें तो यहां सबसे ज्यादा 25 विधायक आरजेडी के टिकट पर जीते थे। इसके बाद जेडीयू के 21 और कांग्रेस के 8 उम्मीदवार जीते थे। बीजेपी को सिर्फ 14 सीटें मिली थीं। एक सीट सीपीआई और एक निर्दलीय ने जीता था। बताते चलें कि 2015 में महागठबंधन में आरजेडी-कांग्रेस के साथ जेडीयू भी शामिल थी। तब कम्युनिस्ट पार्टियां महागठबंधन का हिस्सा नहीं थीं और अकेले मैदान में थीं। 
  
पहले चरण के टॉप तीन धनकुबेर प्रत्याशी  
पहले चरण के सबसे अमीर प्रत्याशियों में मोकामा के मौजूदा विधायक और आरजेडी प्रत्याशी अनंत सिंह टॉप पर हैं। अनंत ने 68 करोड़ की चल-अचल संपत्ति का खुलासा किया है। बरबीघा से कांग्रेस प्रत्याशी गजानन्द शाही दूसरे सबसे अमीर प्रत्याशी हैं। शाही ने 61 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया है। गया जिले की अत्री सीट से लड़ रही जेडीयू प्रत्याशी मनोरमा देवी 53 करोड़ की संपत्ति के साथ तीसरे नंबर पर हैं। 

पहले फेज में 319 दागी, टॉप पर अनंत सिंह 
पहले फेज में 319 उम्मीदवार दागी हैं। संपत्ति के अलावा आपराधिक मामलों में भी अनंत सिंह पहले फेज में सबपर भारी हैं। अनंत पर 38 मामले दर्ज हैं। इनमें 7 हत्या के, 11 हत्या का प्रयास करने के, 4 अपहरण और दूसरे मामले शामिल हैं। अनंत सिंह फिलहाल UAPA एक्ट के तहत जेल में बंद हैं। अनंत के बाद लिस्ट में सुधीर कुमार वर्मा दूसरे नंबर पर हैं। सुधीर, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी से गरुआ विधानसभा सीट पर प्रत्याशी हैं। इनके ऊपर 37 मामले दर्ज हैं। लिस्ट में तीसरे नंबर पर मनोज मंजिल हैं। कुल 30 मामले दर्ज हैं। मनोज सीपीआई एमएल के टिकट पर भोजपुर की अगिआंव विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 

पहले फेज में निर्णायक होंगे दलित वोट 
पहले फेज में जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उनमें तमाम बहुत ही संवेदनशील इलाके हैं। यहां कई जगहों पर खूनी नरसंहार हुए हैं। यहां सवर्ण और अति पिछड़ावर्ग, दलितों के बीच संघर्ष होता रहा है। चुनाव में भी यही मुद्दा है। सवर्ण, कुर्मी समाज एनडीए का थोक वोट बैंक है। मुसहर जातियों का वोट भी एनडीए को मिलने की संभावना है। लेकिन एलजेपी की वजह से महादलित वोटों का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। जबकि यादव-मुस्लिम महागठबंधन का वोट बैंक है। महागठबंधन को इस बार कम्युनिस्ट पार्टियों के आने से बढ़त मिल सकती है। कम्युनिस्ट पार्टियों की नक्सल प्रभावित इलाकों के महादलित मतों में अच्छी पकड़ है। कुल मिलाकर पहले फेज में निर्णायक महादलित जातियां हैं। जिसके पक्ष में जाएंगी उसका पलड़ा भारी रहेगा। 

चुनावी मुद्दे : विकास पर भारी है जातीय गणित 
सभी पार्टियों ने घोषणापत्र में विकास को प्रमुखता दी है। मगर 71 सीटों पर चुनाव में विकास के मुद्दों पर जातीय गणित ही ज्यादा भारी है। अगड़ा-पिछड़ा के बीच वर्चस्व और जातीय संघर्ष इन इलाकों इतिहास रहा है जो अभी भी राजनीतिक रूप से कमजोर नहीं पड़ा है। सिंचाई, शिक्षा, स्वस्थ्य के साथ गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और अपराध के मुद्दों पर भले ही वोट मांगे जा रहे हैं, मगर हकीकत में यहां का चुनावी खेल जातीय गणित में ही उलझा हुआ है। 

नक्सल इलाकों में समय से पहले खत्म होगा चुनाव
मतदान सुबह 7 बजे शुरू होगा जो शाम को 6 बजे तक चलेगा। पहले फेज में 71 में से 35 सीटें नक्सल प्रभावित हैं। नक्सल प्रभावित 26 सीटों पर चुनाव दोपहर 4 बजे तक, अन्य 4 सीटों पर पांच बजे तक और बाकी पांच विधानसभा सीटों में दोपहर 3 बजे तक मतदान खत्म कर दिया जाएगा। हर बूथ पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों की तैनाती की गई है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निष्पक्ष चुनाव के लिए अलग से भी इंतजाम किए गए हैं। हेलिकॉप्टर के जरिए एयरपेट्रोलिंग की व्यवस्था की गई है। नक्सल इलाकों में कोम्बिंग ऑपरेशन भी लॉन्च हुआ है। इसके अलावा सभी बूथों पर कोरोना की वजह से खास सतर्कता बरती जाएगी। गाइडलाइन के मुताबिक सोशल डिस्टेन्शिंग, मास्क, ग्लब्ज, पीपीई किट, सैनिटाइजेशन की भी व्यवस्था की गई है। कोरोना के मरीज भी आखिर में वोट डाल सकते हैं। 

पूर्व मुख्यमंत्री समेत दांव पर कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा 
पहले फेज के दिग्गजों में नीतीश कैबिनेट के कई मंत्री शामिल हैं। इनमें प्रमुख हैं- शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा, कृषि मंत्री प्रेम कुमार, ग्रामीण कार्य मंत्री शैलेश कुमार,विज्ञान एवं प्रावैधिकी मंत्री जय कुमार सिंह, राजस्व मंत्री रामनारायण मंडल, श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा, खनन मंत्री बृजकिशोर बिंद। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, शूटर श्रेयसी सिंह, अनंत सिंह, राजेंद्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया और भगवान सिंह कुशवाहा भी पहले फेज के दिग्गज उम्मीदवारों में शामिल हैं। 

पीएम समेत दिग्गज नेताओं ने की मीटिंग 
पहले फेज के लिए पीएम नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने सभाएं की हैं। मोदी ने तीन रैलियां की हैं। तेजस्वी यादव ने सबसे ज्यादा करीब 75 सभाएं की हैं। तेजस्वी के बाद नीतीश कुमार ने भी सबसे ज्यादा जनसभाएं की हैं। जनसभाओं की संख्या करीब 60 से ज्यादा है। 

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