एक वोट की कीमत: 5 साल पहले लालू-नीतीश की घेरेबंदी में फंस गई थी BJP, बेशकीमती हो गए थे वोट

नीतीश-लालू की जोड़ी ने चुनाव में बिहार की अस्मिता का मुद्दा बनाया था। दोनों नेताओं की जुगलबंदी ने बीजेपी के सूरमाओं को परेशान कर दिया था। चुनाव से पहले बेहद मजबूत नजर आ रही बीजेपी बिहार में घिर चुकी थी। लेकिन... 

Asianet News Hindi | Published : Oct 5, 2020 1:37 PM IST / Updated: Oct 15 2020, 10:17 AM IST

नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

इसका साफ प्रमाण 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार (2015 Bihar Polls) की चनपटिया (Chanpatia) विधानसभा सीट पर भी देखने को मिली थी। उस वक्त बीजेपी (BJP) और जेडीयू (JDU) उम्मीदवारों के बीच दिलचस्प जंग हुई थी। दरअसल, पांच साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एनडीए से अलग हो गए थे। उन्होंने लालू यादव (Lalu Yadav) की आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congress) के साथ महागठबंधन (Mahagathbandhan) बनाया था। सामने पुरानी सहयोगी बीजेपी और उसके सहयोगी दल थे। 

लालू-नीतीश की घेरेबंदी में फंस गई थी बीजेपी 
नीतीश-लालू की जोड़ी ने चुनाव में बिहार की अस्मिता का मुद्दा बनाया था। दोनों नेताओं की जुगलबंदी ने बीजेपी के सूरमाओं को परेशान कर दिया था। चुनाव से पहले बेहद मजबूत नजर आ रही बीजेपी बिहार में घिर चुकी थी। लालू-नीतीश की जोड़ी से निपटने के लिए बीजेपी का कोई हथकंडा काम नहीं आ रहा था। चुनाव के नतीजों में भी इसका साफ असर दिखा। तब महागठबंधन ने 243 विधानसभा सीटों में एकतरफा जीत हासिल करते हुए 178 सीटें जीत ली। 

 

यहां फूट गया था महागठबंधन का गुब्बारा  
लेकिन इसमें से एक सीट ऐसी थी जहां लालू-नीतीश की जोड़ी काम न आई। हालांकि यहां का मुक़ाबला बहुत दिलचस्प था। सीट थी चनपटिया। एनडीए (NDA) के खाते में चनपटिया की सीट बीजेपी को मिली थी। पार्टी ने यहां से प्रकाश राय (Prakash Rai) को प्रत्याशी बनाया था। महागठबंधन के खाते से ये सीट जेडीयू को मिली थी। नीतीश ने यहां एनएन शाही (AN Shahi) को मैदान में उतारा था। दोनों उम्मीदवारों ने यहां जबरदस्त लड़ाई लड़ी। मतगणना में कांटे की टक्कर दिख रही थी। हर घंटे में नतीजे इधर से उधर जाते दिख रहे थे। आखिरकार वो मौका भी आया जब आखिरी राउंड में बीजेपी के प्रकाश राय ने सिर्फ 464 वोट से जीत हासिल की। 

चनपटिया के नतीजे हमेशा रखें याद 
प्रकाश को 61304 जबकि एएन शाही को 60840 वोट मिले। नतीजों के बाद शाही के हिस्से सिर्फ एक-एक वोट का अफसोस रह गया। हालांकि ये बाद की बात है कि सत्ता में खींचतान और मतभेदों के चलते नीतीश कुमार एनडीए में चले गए और आरजेडी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। एक वोट की क्या अहमियत होती है उसे चनपटिया के नतीजों से समझा जा सकता है। इसलिए विधानसभा चुनाव में हर मतदाता का दायित्व है कि अपने पसंद के उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए मताधिकार का प्रयोग करे।

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