जब BJP ने लालू के किले में लगा दी थी सेंध, 10 साल पहले सिर्फ 465 वोटों से पहली बार जीती थी ये सीट

बिहपुर विधानसभा सीट भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। ये बिहार की ऐसी विधानसभा सीट भी है जहां 70 के दशक में कांग्रेस के बाद सीपीआई का मजबूत आधार था। कांग्रेस और सीपीआई ने चार-चार बार इस सीट को जीता है। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 31, 2020 12:36 PM IST

भागलपुर/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

बिहपुर विधानसभा सीट भागलपुर जिले में है। यह भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। ये बिहार की ऐसी विधानसभा सीट है जहां 70 के दशक में कांग्रेस के बाद सीपीआई का मजबूत आधार था। इस सीट पर चार बार कांग्रेस, चार बार सीपीआई और 1995 से अब तक सिर्फ एक बार छोड़ दिया जाए तो लालू यादव की पार्टी का कब्जा रहा है। जनसंघ और जनता पार्टी ने भी एक बार यहां जीत हासिल की है। बीजेपी ने एक बार 2010 में ये सीट जीती थी। वो चुनाव बहुत दिलचस्प हुआ था और किसी तरह बीजेपी आरजेडी को हराने में कामयाब हुई थी। 

लालू का गढ़ है बिहपुर विधानसभा 
2010 में बीजेपी ने कुमार शैलेंद्र को मैदान में उतारा था जबकि आरजेडी के टिकट पर शैलेश कुमार मैदान में थे। कांग्रेस ने अशोक कुमार, सीपीआई ने रेणु चौधरी और अहम निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बिंदेश्वरी मैदान में थे। उस चुनाव में यहां कुल 12 प्रत्याशी थे। हालांकि यहां बीजेपी और आरजेडी के बीच सीधा मुक़ाबला था। 2010 के चुनाव को छोड़ दें तो 1995 से 2015 तक लालू यादव की पार्टी का ये गढ़ है। भले ही चुनाव में 12 प्रत्याशी मैदान में थे और बिहार में लालू के खिलाफ राजनीतिक माहौल नजर आ रहा था, बावजूद बिहपुर के नतीजों को लेकर राजनीतिक जानकार आश्वस्त थे कि आरजेडी इसे किसी तरह जीत लेगी। 

नजदीकी लड़ाई में फंस गई थी आरजेडी 
कैम्पेन का दौर बहुत जुझारू था। जेडीयू-बीजेपी का गठजोड़ किसी भी सूरत में बिहपुर के मिथक को तोड़ना चाहती थी। उस चुनाव में एनडीए नेताओं ने भागलपुर में खासतौर पर बिहपुर को लेकर कैम्पेन की योजनाएं बनाई और तमाम दिग्गज यहां जनता से वोट मांगने पहुंचे। मतगणना के शुरुआती रुझान लोगों की उम्मीद से अलग नजर आने लगे। आरजेडी और बीजेपी प्रत्याशियों के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं दिख रहा था। दोनों में से कोई भी ज्यादा देर तक बढ़त भी नहीं बना रहा था। बिहपुर का मुक़ाबला नजदीकी लड़ाई में आ गया और अब इसके नतीजों में न सिर्फ भागलपुर बल्कि पूरे बिहार की नजरें टिक गई थीं। 

बीजेपी ने जीत लिया लालू का गढ़ 
मतगणना का आखिरी राउंड जब खत्म हुआ बीजेपी ने महज 465 वोट से लालू के मजबूत किले में सेंध लगा दी। बीजेपी प्रत्याशी कुमार शैलेंद्र को 48, 027 वोट मिले जबकि आरजेडी के शैलेश कुमार 47, 562 वोट मिले। कांग्रेस, सीपीआई समेत अन्य 9 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 2010 में बिहपुर में पहली बार बीजेपी ने मात्र 465 वोट से जीत हासिल की थी। हालांकि 2015 के अगले चुनाव में आरजेडी ने दोबारा इस सीट पर कब्जा जमा लिया। 2010 के चुनाव में लोगों ने देखा कि कैसे मात्र कुछ वोटों से किसी प्रत्याशी की किस्मत पलट जाती है। लोकतंत्र में जो ये समझते हैं कि मतदाता के पास क्या अधिकार हैं उन्हें वोट की शक्ति के लिए बिहपुर के इन नतीजों को याद रखना चाहिए।

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