लगातार जीत रहे थे, 2005 में भी पहले जीती सीट, 7 महीने के अंदर चुनाव हुए और कुछ वोटों से चली गई विधायकी

2005 में फरवरी और अक्तूबर में दो बार चुनाव हुए थे। कुछ ही महीनों के अंदर ही हुए दो चुनाव के नतीजे बिल्कुल अलग थे। यहां से रामधनी सिंह ने लगातार चार बार चुनाव जीता था।

Asianet News Hindi | Published : Oct 22, 2020 10:30 AM IST

नई दिल्ली/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

15 साल पहले 2005 में बक्सर लोकसभा में आने वाली दिनारा विधानसभा सीट (Dinara Vidhan Sabha constituency) पर भी वोटों की अहमियत समझ में आई थी। 2005 में फरवरी और अक्तूबर में दो बार चुनाव हुए थे। यहां से रामधनी सिंह ने लगातार चार बार जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव जीता था। लेकिन 2005 में कुछ ही महीनों के अंदर ही हुए दो चुनाव के नतीजे बिल्कुल अलग थे। यहां अक्तूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में रामधनी सिंह एनडीए उम्मीदवार के रूप में जेडीयू के टिकट पर मैदान में थे। उनके सामने बसपा के टिकट पर सीता सुंदरी देवी और एलजेपी के टिकट पर अशोक कुमार थे। 

बसपा के उम्मीदवार ने दे दी पटखनी 
लगातार चुनाव जीत रहे रामधनी सिंह की विजय को लेकर ज़्यादातर लोगों में संशय नहीं था। मगर वोटिंग के बाद जब मतगणना शुरू हुई तो पहले के सारे अनुमान ध्वस्त होते नजर आए। रामधनी सिंह को बसपा उम्मीदवार सीता सुंदरी देवी के हाथों जूझना पड़ा। एक-एक कर मतगणना के राउंड खत्म हो रहे थे और जेडीयू-बसपा प्रत्याशियों के बीच की लड़ाई कुछ मतों के अंतर में फंसती दिखने लगी। आखिरी राउंड की मतगणना के बाद रामधनी सिंह की हार हुई। सीता सुंदरी देवी ने रामधनी सिंह को सिर्फ 884 मतों से हरा दिया। बसपा उम्मीदवार सीता को 41, 938 वोट मिले थे जबकि जेडीयू के रामधनी सिंह को 41054 वोट मिले थे। एलजेपी कैंडिडेट 14,239 वोट मिले। 

कुछ वोटों से टूट गया जीत का सिलसिला 
दिलचस्प यह है कि दिनारा सीट पर 2005 में कुछ ही महीने पहले फरवरी में हुए चुनाव के नतीजे अलग थे। तब भी रामधनी जेडीयू प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। हालांकि उनके सामने बसपा प्रत्याशी के रूप में अरुण कुमार थे। तब रामधनी सिंह ने करीब ढाई हजार से ज्यादा मतों से ये सीट जीत ली थी। नवंबर 2005 में दिनारा के नतीजों ने दिखाया था कि जनता अगर चाहे तो किसी को भी महज कुछ वोटों से आसमान से जमीन पर लाकर पटक सकती है। 

दिनारा अब जेडीयू का गढ़ 
रामधनी सिंह जो 1990 से लगातार 4 बार यहां जनता दल और बाद में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर जीतते रहे उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2005 में दिनारा के नतीजे बताते हैं कि चुनाव प्रक्रिया में लोगों के वोटों की क्या कीमत है। हालांकि 2010 के बाद से जेडीयू ने प्रत्याशी बदलकर दिनारा की सीट फिर से कब्जे में ले ली। 2010 और 2015 में यहां से जय कुमार सिंह जेडीयू के विधायक हैं। जयकुमार इस बार भी किस्मत आजमा रहे हैं। उनके सामने बीजेपी के बागी राजेन्द्र सिंह एलजेपी के टिकट पर मैदान में हैं। 

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