
दरभंगा। मात्र 15 साल की उम्र में दरभंगा की ज्योति ने महिला को अबला समझने वाले समाज के सामने एक बड़ी मिसाल पेश की है। ज्योति की हिम्मत को देख गांववाले कह रहे हैं कि उसने साबित कर दिया कि बेटियां बोझ या बेटों से कम नहीं बल्कि उनसे आगे है। दरअसल, दरभंगा के कमतौल थाना क्षेत्र के सिरहुल्ली निवासली मोहन पासवान गुड़गांव में ई-रिक्शा चलाने का काम किया करते थे। लेकिन लॉकडाउन लगने से पहले उनका एक्सीडेंट हो गया। जिसके बाद से उनका काम बंद हो गया। 24 मार्च से जब लॉकडाउन लगा तो उनकी परेशानी और बढ़ गई।
शुरू में पिता ने किया विरोध, बाद में मानी बात
नाबालिग बेटी और बीमार बाप, अपने गांव से कोसों दूर, जैसे-तैसे दिन बीता रहे थे। इस बीच ई-रिक्शा वाले ने, मकान मालिक ने पैसे की डिमांड कर दी। ऐसे में इन लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई। 3 मई को जब लॉकडाउन में हल्की छूट मिली तो इन लोगों ने घर आने की कोशिश की। लेकिन इनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो प्रति व्यक्ति तीन से चार हजार रुपए खर्च कर घर पहुंच पाते। ऐसे में ज्योति ने साइकिल से ही बीमार पिता को लेकर घर लौटने का विचार किया। शुरुआत में तो में पिता ने बेटी की जिद को गलत बताकर विरोध किया।
सात दिन में 1144 किलोमीटर का सफर
लेकिन बाद में उन्होंने मजबूरी में बेटी की जिद को मान ली। इसके बाद ज्योति अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठाकर गुड़गांव से घर से निकली। अभी ये लोग दरभंगा पहुंच चुके हैं। इन्हें गांव के पुस्तकालय में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटर में रखा गया है।
मोहन ने बताया कि सात दिनों में इन लोगों ने गुड़गांव से दरभंगा तक का 1144 किलोमीटर का सफर पूरा किया। इस दौरान ज्योति रोज 100 से 150 किलोमीटर साइकिल चला रही थी। बीच-बीच में जब थक जाती तो साइकिल रोककर सड़क किनारे थोड़ी देर आराम करती और फिर चल पड़ती।
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