मुजफ्फरपुर आश्रयगृह मामला: सजा की अवधि पर सुनवाई 4 फरवरी तक टली

दिल्ली की एक अदालत ने मुजफ्फरपुर आश्रयगृह मामले में अनेक नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न और उनपर शारीरिक हमले के दोषी ब्रजेश ठाकुर तथा 18 अन्य दोषियों की सजा की अवधि पर सुनवाई मंगलवार को एक सप्ताह के लिए टाल दी।

Asianet News Hindi | Published : Jan 29, 2020 6:11 AM IST / Updated: Feb 11 2020, 04:12 PM IST

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने मुजफ्फरपुर आश्रयगृह मामले में अनेक नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न और उनपर शारीरिक हमले के दोषी ब्रजेश ठाकुर तथा 18 अन्य दोषियों की सजा की अवधि पर सुनवाई मंगलवार को एक सप्ताह के लिए टाल दी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुदेश कुमार ने सुनवाई चार फरवरी तक टाल दी क्योंकि मुकदमे पर सुनवाई करने वाले न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ छुट्टी पर थे। अदालत ने आश्रयगृह के संचालक ठाकुर को 20 जनवरी को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून की धारा छह और भादंसं के तहत बलात्कार तथा सामूहिक बलात्कार की धाराओं के अंतर्गत कई अपराधों में दोषी ठहराया था।

Latest Videos

बच्चों के साथ क्रूरता का भी दोषी 
इसने 1,546 पृष्ठ के अपने फैसले में ठाकुर को भादंसं की धाराओं-120-बी (आपराधिक साजिश), 324 (घातक हथियारों से नुकसान पहुंचाना), 323 (जानबूझकर नुकसान पहुंचाना), पॉक्सो कानून की धारा 21 (अपराध की सूचना आयोग को न देना) और किशोर न्याय कानून की धारा 75 (बच्चे के साथ क्रूरता) के तहत भी दोषी पाया था।

अदालत ने हालांकि, विक्की नाम के आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। महिला आरोपियों में से एक मुजफ्फरपुर की बाल संरक्षण इकाई की पूर्व सहायक निदेशक, रोजी रानी को पॉक्सो कानून के तहत धारा 21 (1) (अपराध होने की जानकारी देने में विफल रहने) के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया।

इस वजह से अदालत से मिल गई थी जमानत 
चूंकि इस अपराध के लिए अधिकतम सजा छह महीने थी जो वह पहले ही काट चुकी है, इसलिए उसे अदालत ने जमानत दे दी। मुजफ्फरपुर बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व प्रमुख दिलीप कुमार वर्मा, जिला बाल संरक्षण इकाई के बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन, सीडब्ल्यूसी के सदस्य विकास कुमार और अन्य आरोपी विजय कुमार तिवारी, गुड्डू पटेल, किशन कुमार और रामानुज ठाकुर को पॉक्सो कानून के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न, और भादंसं एवं पॉक्सो कानून के तहत आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, चोट पहुंचाने, बलात्कार के लिए उकसाने और किशोर न्याय कानून की धारा 75 के तहत दोषी ठहराया गया था।

दो लोगों - रमाशंकर सिंह और डॉ. अश्विनी को आपराधिक षड्यंत्र तथा बलात्कार के लिए उकसाने के अपराधों का दोषी पाया गया। रमा को भादंसं की धारा 323, किशोर न्याय कानून की धारा 75 और पॉक्सो कानून की धारा 21 के तहत भी दोषी ठहराया गया था।

महिला आरोपी भी दोषी 
महिला आरोपियों - शाइस्ता प्रवीण, इंदु कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, किरण कुमारी को आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार के लिए उकसाने, बच्चों के साथ क्रूरता और अपराध होने की रिपोर्ट करने में विफल रहने का दोषी पाया गया।

ठाकुर की तरफ से पेश हुए वकील पी के दुबे और निशांक मट्टू ने संवाददाताओं से कहा था कि वे इस फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देंगे। दिलीप के वकील वकील ज्ञानेंद्र मिश्रा ने कहा था कि आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और वह फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देंगे।

आश्रयगृह में यौन उत्पीड़न 
अदालत ने सीबीआई की तरफ से पेश किए 69 गवाहों के बयान दर्ज किए थे। सीबीआई का पक्ष लोक अभियोजक अमित जिंदल ने रखा। इसने 44 लड़कियों के बयान दर्ज किए जिनका आश्रयगृह में यौन उत्पीड़न किया गया और शारीरिक हमला किया गया। इनमें से करीब 13 मानसिक रूप से कमजोर थीं।

कुछ आरोपियों की तरफ से पेश हुए वकील धीरज कुमार ने कहा था कि अदालत ने बचाव पक्ष के 20 गवाहों को सुना। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक इस मामले में सुनवाई प्रतिदिन चली और यह छह माह के भीतर पूरी कर ली गई। अदालत ने 30 मार्च, 2019 को ठाकुर समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे।

अदालत ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न, नाबालिगों को नशा देने, आपराधिक धमकी समेत अन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाया था। ठाकुर और उसके आश्रयगृह के कर्मचारियों के साथ ही बिहार के समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, ड्यूटी में लापरवाही और लड़कियों के उत्पीड़न की जानकारी देने में विफल रहने के आरोप तय किए गए थे।

अदालत ने 30 सितंबर, 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में बिहार की समाज कल्याण मंत्री एवं तत्कालीन जद (यू) नेता मंजू वर्मा को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था जब उनके पति के ठाकुर के साथ संबंध होने के आरोप सामने आए थे।

पिछले साल ट्रांसफर हुआ था केस 
मंजू वर्मा ने आठ अगस्त, 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर इस मामले को सात फरवरी, 2019 को बिहार के मुजफ्फरपुर की स्थानीय अदालत से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की पॉक्सो अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।

यह मामला टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा 26 मई, 2018 को बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने के बाद सामने आया था। यह रिपोर्ट उसी साल फरवरी में टिस ने बिहार समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी।

(ये खबर पीटीआई/भाषा की है। एशियानेट न्यूज हिन्दी ने सिर्फ हेडिंग में बदलाव किया है।) 

Share this article
click me!

Latest Videos

सुल्तानपुर डकैती के गुनहगारों का हिसाब कर रही STF, अब तक 11 के खिलाफ हुआ एक्शन
राहुल ने बताई विपक्ष की पावर कहा- पहले जैसे नहीं रहे मोदी #Shorts
Garib Rath Express Train: ट्रेन में भाग खड़े हुए पैसेंजर, Shocking Video आया सामने
कहीं आपके घी में तो नहीं है जानवरों की चर्बी, ऐसे करें चेक । Adulteration in Ghee
New York में Hanumankind, आदित्य गढ़वी और देवी श्री की जोरदार Performance, PM Modi ने लगाया गले