
भागलपुर. बिहार के विश्वप्रसिद्ध कावड़ श्रावणी मेले की तैयारियां चल रहीं हैं। श्रावणी मेले में इस बार पुलिस के जवान भगवा रंग के वेश में दिखेंगे और कांवड़ियाें में घुल-मिलकर श्रद्धालुओं की निगरानी करेंगे।
बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में 17 जुलाई से शुरू हो रहे विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला में इस बार सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था देखने को मिलेगी। कांवड़िया क्षेत्र में लॉ एंड आर्डर व्यवस्थित रखने के उद्देश्य से इस बार यह विशेष रणनीति बनाई गई है। पुलिस कांवड़ियाें के वेश में ही मेला क्षेत्र में गश्त करेगी। सुल्तानगंज घाट और कांवड़ मार्ग में भगवा रंग के वस्त्र में महिला व पुरुष पुलिसकर्मियों तैनात रहेंगे और नक्सलियों, लुटेरों, मनचलों, उचक्कों, चोरों सहित संदिग्धों पर नजर रखेंगे और कांवड़ियों की सुरक्षा का भी ध्यान देंगे ।
मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से पत्नी सीता और तीनों भाइयों के साथ सुल्तानगंज से जल भरकर भगवान शिव को अर्पित किया था। तभी से शिवभक्त यहां जलाभिषेक करते हैं। पुराणों के अनुसार इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। शिवभक्त रावण को पहला कांवड़िया माना जाता है।
कांवड़िया मार्ग में होती रहती हैं वारदात
हर वर्ष भागलपुर-सुल्तानगंज-तारापुर मार्ग, भागलपुर-बांका मार्ग व अकबरनगर-शाहकुंड-असरगंज मार्ग पर कांवड़ियों के साथ लूटपाट, छिनैती , छेड़खानी जैसी घटनाएं होती रहती हैं। कई बार कांवड़ियों के वेश में होने के कारण अपराधियों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इस बार सुरक्षा के अच्छे इंतज़ाम किए गए हैं।
कावड़ियों की सुरक्षा हमारा दायित्व :सुरक्षा पुलिस
इस बार सुरक्षा को देखते हुए जवानों को कावड़ियों का ध्यान रखने के लिए मोबाइल गश्त के लिए भी रखा जाएगा। सुरक्षा के लिए मुख्यालय से अतिरिक्त फोर्स की मांग की गई है। बाइक गश्ती करने वाले जवानों की 24 घंटे में तीन पालियों में ड्यूटी लगाई जाएगी। रात में पुलिस जवान विशेष रूप से चौकस रहेंगे। भागलपुर-सुल्तानगंज-तारापुर मार्ग, भागलपुर-जगदीशपुर-बांका मार्ग, भागलपुर-अकबरनगर-शाहकुंड-असरगंज मार्ग में इनकी तैनाती होगी।
कावड़ यात्रा की महिमा है बहुत पुरानी
श्रावणी मेले के दौरान कांवड़िये अपने कंधे पर कांवड़ रखकर सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर जाते हैं ,और बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं। कांवड़ को लेकर चलने में कई नियमों का पालन करना पड़ता है। पवित्रता का काफी ध्यान रखना पड़ता है। कांवड़ यात्रा की महिमा बहुत पुरानी है। पुराणों क अनुसार, रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवान राम ने राज्याभिषेक के बाद पत्नी सीता और तीनों भाईओं सहित सुल्तानगंज से जल भरकर शिव को अर्पित किया था। तभी से शिवभक्त यहां जलाभिषेक करते हैं।
कांवड़ यात्राएं भी तीन तरह की होती है। एक वो जो रुक-रुक कर,आराम कर के चलते हैं। दूसरे वो जो डांडी कांवड़ लेकर आते हैं ,यानी दंड-प्रणाम देते हुए पहुंचते हैं। तीसरा और सबसे कठिन डाक कांवड़। ये बिना रुके बिना, खाए पिए दौड़कर या तेज चाल में चलकर जाते हैं।
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