महाराष्ट्र में राजनीति का आरोप तो बिहार में क्रेडिट लेने की होड़, CBI जांच पर क्या सोचते हैं एक्सपर्ट?

महाराष्ट्र में एनडीए विरोधी दलों की राय बिहार के एनडीए विरोधी दलों से बिल्कुल अलग है। महाराष्ट्र के विपक्ष में जहां फैसले का विरोध दिख रहा है वहीं बिहार में विपक्षी दल सीबीआई जांच की क्रेडिट लेने की होड़ में दिखते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 19, 2020 2:14 PM IST / Updated: Aug 20 2020, 11:01 AM IST

मुंबई/पटना। सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीबीआई जांच की हरी झंडी के बाद दिवंगत एक्टर के समर्थकों में जबर्दस्त खुशी है। संदिग्ध बताए जा रहे केस में सीबीआई की सीधी एंट्री का बिहार की सत्ता में काबिज जेडीयू, बीजेपी और लोक जनशक्ति पार्टी ने जोरदार स्वागत किया है। राज्य में विपक्ष ने भी सीबीआई से न्याय की उम्मीद की है। हालांकि सीबीआई के औचित्य और उसकी भूमिका को लेकर सवाल भी हो रहे हैं। इन्हीं सवालों को लेकर हमने कुछ एक्सपर्ट्स की बात और कुछ की सोशल मीडिया पर आई प्रतिक्रियाओं को समझने की कोशिश की है। 

कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रही शिवसेना ने खुलकर केंद्र सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। मगर आगामी बिहार चुनाव की वजह से महाराष्ट्र में एनडीए विरोधी दलों की राय बिहार के एनडीए विरोधी दलों से बिल्कुल अलग है। महाराष्ट्र के विपक्ष में जहां फैसले का विरोध दिख रहा है वहीं बिहार में विपक्षी दल सीबीआई जांच की क्रेडिट लेने की होड़ में दिखते हैं। पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का ट्वीट इसे साफ भी कर देता है।  

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नीतीश नहीं हमने की थी सबसे पहले मांग 
एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, "सबसे पहले सुशांत केस में हमने सड़क से लेकर सदन तक सीबीआई जांच की मांग की थी और उसी का परिणाम था कि 40 दिनों से सोई बिहार सरकार को कुंभकर्णी नींद से जागना पड़ा था। आशा है एक तय समय सीमा के अंदर न्याय मिलेगा।" मजेदार यह है कि पटना में सुशांत के पिता द्वारा नामजद एफआईआर के तुरंत बाद नीतीश कुमार की सरकार ने केंद्र से सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर दी थी। हालांकि रिया ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिस पर आज फैसला आया है। 

जनभावना का दबाव 
दरअसल, सुशांत को लेकर जिस तरह की जनभावना दिख रही है उसमें विपक्ष को बिहार चुनाव के दौरान अपने अभियान को लेकर डर है। महाराष्ट्र में भी विपक्ष की एक आशंका सीएम उद्धव ठाकरे की सरकार को लेकर है। अंतर्विरोध भी है। दरअसल, जिन परिस्थितियों में उद्धव की सरकार बनी थी उसे लेकर लगातार चर्चा रही कि बीजेपी कभी भी राज्य में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार गिरा सकती है। अब सवाल है कि क्या सच में मामले में सीबीआई के आ जाने से दोनों राज्यों की राजनीति प्रभावित होने जा रही है, क्या बिहार की राजनीति पर सीधे-सीधे इसका असर पड़ने वाला है, और सबसे बड़ा सवाल यह भी आ रहा है कि क्या वाकई सीबीआई मामले में "दूध का दूध और पानी का पानी" कर देगा?

महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर होगा?
मामले में सीबीआई जांच और महाराष्ट्र सरकार के भविष्य को लेकर लोकमत समाचार के पूर्व संपादक विष्णु पांडे ने कहा, "कोई विशेष फर्क नहीं अब नैतिकता के आधार पर कोई सरकार इस्तीफा देगी यह सोचना मूर्खों के स्वर्ग में रहना है। एक और बात यह है कि ठाकरे सरकार नैतिक आधारों को बुरी तरह पैरों तले कुचलकर सत्तासीन हुई है इसलिए उनसे ऐसी कोई उम्मीद रखना बेमानी है।" हालांकि वो जोड़ते हैं, "अपने अंदरुनी विवादों के चलते सरकार (महाराष्ट्र) गिर जाए तो वो अलग बात होगी।" महाराष्ट्र की राजनीति में सुशांत केस बीजेपी के लिए उतना ही बड़ा मुद्दा है जितना बिहार में। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, नारायण राणे से लेकर राज्य के दिग्गज बीजेपी नेता सीधे-सीधे पुलिस पर कंट्रोल और सरकार की भूमिका को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। उद्धव सरकार के अंदर भी मतभेद हैं। यह उस वक्त देखने को मिला था जब शरद पवार ने केंद्र सरकार की भूमिका की आलोचना की। हालांकि उनके पोते ने मामले में उनसे बिल्कुल अलग राय रखी थी। 

 

बिहार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा 
इंडिया टुडे के पूर्व संपादक दिलीप मंडल दावा करते हैं, "सुशांत केस में बीजेपी की नजर बिहार चुनाव पर नहीं, महाराष्ट्र सरकार पर है। शिवसैनिकों के हाथ से सत्ता छीनकर फिर से पेशवाई लाने का इरादा है। न भूलें कि सीबीआई PMO के अधीन है।" अपनी बात को पुख्ता करते हुए वो यह भी कहते हैं, "सुशांत केस की वजह से बिहार में एक भी वोटर अपना वोट डालने का निर्णय नहीं बदलने वाला है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ने सीबीआई जांच की मांग की थी। इसे लेकर कोई राजनीति बिहार में नहीं हो सकती। सुशांत मामले में पक्ष और विपक्ष वहां एक ही राय रखता है। निशाना महाराष्ट्र है।" 

सुशांत केस बिहार में भावुक मुद्दा 
हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व पत्रकार और एक्टिविस्ट संजीव चंदन की राय अलग है। उन्होंने कहा, "राजनीतिक दलों को हमेशा विश्वास होता है कि वे अपनी चुनावी नैया भावनात्मक मुद्दों पर पार कर लेंगे। उन्हें सफलताएं भी मिली हैं। इस बार बिहारी अस्मिता को सुशांत के नाम पर जगाया जा रहा है। सुशांत का केस बिहार में बड़ा मुद्दा बन गया है।" वैसे इस बात को खारिज करने की फिलहाल वजह नहीं है कि सुशांत के बहाने दोनों राज्यों में पक्ष या विपक्ष राजनीति नहीं कर रहे हैं। 

क्या सीबीआई से मिलेगा न्याय? 
सुसाइड केस में मुंबई पुलिस जांच कर रही थी। आरोप लगे कि सुशांत की हत्या हुई जिसके पीछे एक गहरी साजिश है। मुंबई पुलिस ठीक तरह से जांच नहीं कर रही। बीजेपी नेताओं ने यह आरोप भी लगाए कि उद्धव सरकार केस में बड़े लोगों को बचाने का काम कर रही है। बार-बार एक मंत्री का जिक्र भी किया जा रहा है। बिहार पुलिस के आने के बाद, विवाद और गहरा गया। अब जबकि केस में सीबीआई की एंट्री हो गई है लोग केंद्रीय एजेंसी के रवैये पर भी सवाल उठाने लगे हैं। वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान तिवारी ने पुराने ट्रैक रिकॉर्ड पर सवाल उठाते हुए कहा, "सीबीआई की जांच के अदालतों में औधे मुंह गिरने और अभि‍योजन के बदतर रिकॉर्ड को भी याद रखने की जरूरत है। कुछ महीने बाद हमें इसकी जरूरत पड़ेगी।" 

 

सीबीआई का सक्सेस रेट खराब 
विष्णु पांडे भी सीबीआई के सक्सेस रेट पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने कहा, "सीबीआई की रिपोर्ट के बाद केस फाइल होने, सुनवाई और फैसले में कितना समय लगेगा यह भी अनिश्चित है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीबीआई द्वारा अदालतों में फाइल मुकदमों का सक्सेस रेट क्या है? खुद सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को तोता कह चुका है।" हाई प्रोफाइल आरुषि मर्डर केस में सीबीआई की खूब किरकिरी हुई है। करप्शन और दूसरे कई आपराधिक केसों में सीबीआई खुलासा तक करने में नाकाम रही जिसमें ज़्यादातर मामले करप्शन के थे। इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि 2014 से 2017 के बीच करपशन के सिर्फ 68 प्रतिशत मामलों में ही केंद्रीय एजेंसी सबूत जुटाने में सफल रही। इसमें भी कितने मामलों में फैसला आया यह सोचने वाली बात है। 

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