
पटना। कोरोना के दौरान मतदान को लेकर चुनाव आयोग ने एक गाइडलाइन राजनीतिक दलों के साथ साझा किया है। मोटे तौर पर महामारी के बीच बिहार में चुनाव किस तरह से होगा इसकी एक झलक है। अभी आयोग ने तारीखों का ऐलान तो नहीं किया है मगर तय है कि चुनाव समय पर ही होगा। जाहिर सी बात है बिहार का राजनीतिक पारा और नेताओं का जोश हाई है। पिछले तीन महीनों में क्या-क्या बड़ा हुआ इसकी जानकारी हम दे रहे हैं।
शुरू है अंदर-बाहर का खेल
चुनाव में बेहतर भूमिका के लिए कई नेता दलबदल कर रहे हैं। जुलाई में आरजेडी के 5 एमएलसी जेडीयू में शामिल हो गए। अगस्त में अब तक 6 मौजूदा विधायक पार्टी छोड़कर नीतीश कुमार की जेडीयू में आ चुके हैं। आना-जाना दोतरफा है। जून में जेडीयू के एमएलसी जावेद इकबाल अंसारी आरजेडी में शामिल हो गए। अगस्त में नीतीश कुमार कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री श्याम रजक ने आरजेडी का दामन थामा। तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय ने आरजेडी छोड़ जेडीयू की शरण ली।
मौके की तलाश में छोटी पार्टियां
पप्पू यादव और यशवंत सिन्हा जैसे छोटे खिलाड़ी अभी भी नीतीश विरोधी मोर्चे में अपना कोई ऑप्शन ही तलाश रहे हैं। पूर्व सांसद अरुण कुमार ने भारतीय सबलोग पार्टी लॉन्च की थी। यशवंत सिन्हा इसी के राष्ट्रीय संयोजक हैं। वैसे पप्पू यादव कथित रूप से लोजपा को लेकर तीसरा मोर्चा भी बनाने की फिराक में हैं।
मोलभाव ही शुरू है
मोलभाव का दौर भी शुरू है। गठबंधनों में शामिल दल बड़ी भूमिका तलाश रहे हैं। एनडीए में शामिल लोजपा नेता और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। वो बड़ी भूमिका चाहते थे। कहा तो यह भी गया कि वो खुद को सीएम के दावेदार के रूप में पेश कर रहे थे। लेकिन बीजेपी प्रेसिडेंट ने साफ कर दिया कि एनडीए का चेहरा नीतीश ही होंगे। उनको जवाब मिल गया है बाकी उनकी मर्जी।
एक आया दूसरा नाराज हो गया
उधर, चिराग को काबू में करने के लिए नीतीश महागठबंधन खेमे से हिंदुस्तान अवामी मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को "लूट" कर ले आए। पिछले हफ्ते आरजेडी पर आरोप लगाते हुए मांझी ने महागठबंधन छोड़ने का ऐलान किया था। नीतीश के साथ वर्चुअल सभाओं में शामिल हो चुके हैं। एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और मांझी को लेकर सीट बंटवारे पर अंतिम चर्चा चल रही है।
लालू नहीं हैं तो हर कोई बनना चाहता है तेजस्वी का बॉस
जाति और धर्म बिहार के चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा रहे हैं। इस बार भी होंगे। सभी पार्टियां इसी के आसपास अपनी रणनीति बना रही हैं। आरजेडी का आधार मुस्लिम, यादव वोट के साथ पिछड़े हैं। कुछ बाहुबली नेताओं के जरिए पिछले तीन महीनों से सवर्ण मतों को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं। पर कोशिश में आरजेडी के वफादार रघुवंश प्रसाद सिंह ही नाराज हो बैठे। वैसे RLSP के उपेंद्र कुशवाहा, VIP के मुकेश साहनी और कांग्रेस के जरिए नीतीश को पटखनी देने की योजनाएं बना रहे हैं, बस सहयोगी अंतिम समय तक साथ रहे। कोई मांझी जैसा काम न कर जाए। लालू सीन से बाहर हैं ऐसे में हर कोई तेजस्वी का बॉस बनता दिख रहा है। तेजप्रताप को संभालने का मुश्किल काम अलग है।
नीतीश का नया हथियार जीतनराम मांझी
सीएम नीतीश कुमार इस बार भी अपराजेय बने रहना चाहते हैं। उन्होंने पिछला चुनाव बीजेपी के खिलाफ लालू यादव के साथ लड़ा और जीते भी। नीतीश की ताकत अतिपिछड़ी जातियां और महादलित हैं। महादलितों के बीच मांझी के जरिए पैठ मजबूत करना चाहते थे, लेकिन अपने ही श्याम रजक को दुश्मन बना बैठे। रजक अब आरजेडी के सिपाही हैं। राममंदिर, जम्मू कश्मीर में धारा 370 और मोदी सरकार के काम के आधार पर बीजेपी अभियान शुरू कर चुकी है। एनडीए के सहयोगी उसके सोसल इंजीनियरिंग की गणित साध रहे हैं।
बसपा, सपा ने पत्ते साफ नहीं किए हैं। लेकिन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद ने ताल ठोकने का ऐलान कर दिया है। तेजस्वी को इनकी मौजूदगी से परेशान होना चाहिए।
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