समय पर चुनाव होंगे या नहीं, क्या बिहार के लिए बड़ा मुद्दा है सुशांत सिंह राजपूत का सुसाइड केस?

भाजपा की चुप्पी, सुशांत सिंह राजपूत के संदिग्ध सुसाइड केस में केंद्रीय एजेंसियों की तेजी और सीएम नीतीश कुमार का रुख चुनाव के समय पर होने का ही साफ संकेत माना जा रहा है। 
 

पटना। इस साल नवंबर के आखिर तक बिहार विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। नियमों के मुताबिक नई विधानसभा का गठन करने के लिए समय पर चुनाव कराना जरूरी है। उधर, चुनाव कराने न कराने की डिबेट भी शुरू हो गई है। तेजस्वी यादव समेत समूचा विपक्ष और एनडीए में शामिल लोजपा ने कोरोना की वजह से गठबंधन से बिल्कुल अलग राय रखी और चुनाव न कराने की मांग की है। सभी दलों ने इसी हफ्ते आयोग को चुनाव के लिए सपने सुझाव सौंपे हैं। 

चुनाव टलने का एक मतलब राज्य में प्रेसिडेंट रूल का लगना भी है जिसकी मांग लोजपा ने की है। कोरोना वायरस की महामारी के बीच राज्य में चुनाव होगा या नहीं इस पर सस्पेंस बना हुआ है। वजह कोरोना वायरस और बाढ़ से बिहार की खराब हालत बताई जा रही है। अटकलों के बीच बीजेपी चुप है। मगर सुशांत सिंह राजपूत के संदिग्ध सुसाइड केस में केंद्रीय एजेंसियों की तेजी और सीएम नीतीश कुमार का रुख चुनाव के समय पर होने का ही साफ संकेत माना जा रहा है। 

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(नीतीश कुमार के साथ रामविलास पासवान) 

जेडीयू के प्रदेश प्रवक्ता एडवोकेट निखिल मंडल ने एशियानेटन्यूज से कहा, "चुनाव कराने न कराने का फैसला आयोग का है। राजनीतिक दलों से चुनाव के लिए सुझाव मांगा जाता है जिसे सभी ने दाखिल भी कर दिया है। अब राज्य में चुनाव कैसे और कब कराना है इसका फैसला उन्हें (चुनाव आयोग को) लेना है।" उन्होंने कहा, "जहां तक कोरोना की बात है रोज एक लाख सैंपल टेस्ट हो रहे हैं। मृत्यु दर एक प्रतिशत से कम है और रिकवरी रेट बढ़ा है।"

"दूसरों की तैयारियों पर हम कुछ नहीं कह सकते मगर हम काम के आधार पर चुनाव में जाएंगे और सांगठनिक रूप से हमारी स्ट्रैटजी भी बूथ स्तर के लिए बिल्कुल तैयार है।" 

बीजेपी चुप मगर सक्रियता से कयास 
उन्होंने कहा, "कोरोना एक सच्चाई है और आयोग की माने तो वो इसे लेकर पूरी तरह से तैयार है। जहां तक राज्य में बाढ़ की बात है तो ये समस्या केवल इसी साल की नहीं है। इससे निपटने के लिए हम हर साल लगातार काम करते हैं।" लोजपा नेता चिराग पासवान और उनके पिता केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने खुलकर महामारी के बीच चुनाव का विरोध कर रहे हैं। जबकि एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी बीजेपी सांगठनिक स्तर पर तैयारियां तो शुरू कर चुकी है, मगर अभी तक पार्टी ने चुनाव कराने न कराने को लेकर कोई बड़ा बयान नहीं दिया है। कुछ लोग यह तर्क भी दे रहे हैं कि बीजेपी प्रेसिडेंट रूल में चुनाव चाहती है ताकि उसे फायदा मिले। 

(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार)

मगर केंद्र में सर्वेसर्वा और राज्य की सत्ता में बराबर की भागीदार पार्टी के लिए ये तर्क सटीक नहीं है। जानकारों का मानना भी है कि बाद में चुनाव की बजाय मौजूदा स्थितियां बीजेपी के लिए भी ज्यादा फायदेमंद हैं। सीमा पर चीन से विवाद, सुशांत केस, राम मंदिर शिलान्यास के बाद बना मूड सही समय है। 

क्या बिहारी अस्मिता के लिए सुशांत केस चुनावी मुद्दा? 
कहने की जरूरत नहीं कि सुशांत केस एनडीए बनाम यूपीए के रूप में राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है। इसे कुछ लोग समय पर चुनाव कराने का संकेत भी मान रहे हैं। सीनियर जर्नलिस्ट संजीव चंदन ने कहा, "राजनीतिक दल हमेशा से भावनात्मक मुद्दों पर चुनावी वैतरणी पार करते रहे हैं। उन्हें सफलताएं भी मिली हैं। इस बार सुशांत के नाम पर बिहारी अस्मिता को जगाया जा रहा है।" याद रहे पिछली बार 2015 के चुनाव में लालू यादव के साथ नीतीश कुमार के महागठबंधन ने भी "बिहारी अस्मिता" के नारे से ही मजबूत दिख रही बीजेपी को पछाड़ दिया था। ये बाद की बात है कि नीतीश महागठबंधन छोड़कर पुराने सहयोगी के साथ वापस आ गए।

सुशांत केस में 'यूपीए' की राजनीति 
जेडीयू प्रवक्ता इस बात को पूरी तरह से खारिज करते हैं। निखिल मंडल ने कहा, "यह महज संयोग है कि चुनाव से पहले सुशांत का दुखद मामला सामने आया। सिर्फ महाराष्ट्र सरकार और उसमें शामिल दलों के रवैये की वजह से ये मामला राजनीतिक दिखता है। जांच के लिए मुंबई पहुंचे आईपीएस विनय तिवारी को लेकर जो हुआ पूरे देश ने उसे देखा। उनके साथ कई और पैसेंजर मुंबई पहुंचे थे। पर क्वारेंटीन किसे किया गया? सरकार ने केस में सीबीआई जांच की तब सिफ़ारिश की जब सुशांत के पिता केके सिंह ने न्याय की गुहार लगाई। क्या चुनाव हो रहा है तो सुशांत के परिवार को न्याय नहीं मिलना चाहिए।"  

 

सुशांत मुद्दा, लेकिन... 
संजीव चंदन ने कहा, "चुनाव की वजह से बिहार में राजपूत वोटों से ज्यादा मायने हो गया है सुशांत का इस समय। बिहारी अस्मिता के रूप में। जिस तरह का मूड सोशल मीडिया में दिखा रहा है अगर ये मुद्दा चला तो अस्पताल-शिक्षा जैसे ठोस मुद्दे पीछे जाएंगे। नेताओं का भावुक आधार पर चुनाव जीतने का यकीन भी मजबूत होगा। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं।" 

वैसे यह सोशल मीडिया पर यह साफ दिख रहा है कि 'बीइंग बिहारी' सुशांत केस में राज्य का हर वर्ग खुलकर न्याय की मांग कर रहा है। राज्य के लोगों में सुशांत केस एक मुद्दा बन चुका है। अब यह राजनीतिक दलों के लिए कितना बड़ा मुद्दा है, सितंबर तक चुनाव को लेकर आयोग की घोषणा से साफ हो जाएगा। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ कांग्रेस और एनसीपी है। बिहार में तेजस्वी के महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल रहने की ही संभावना है जिसका मुक़ाबला एनडीए से होगा। सुशांत के बहाने एनडीए, महागठबंधन को घेरने की कोशिश जरूर करेगा। समय पर चुनाव का एक मतलब यह भी माना जा सकता है कि 'सुसाइड केस राजनीतिक मुद्दा' बनेगा। कैसे? यह देखने वाली बात होगी। 

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