shiv kumar subramaniam: एक जुमला था-'सबसे ऊंचे ओहदे के लिए किसी एक्टर को बुलाना है, तो शिव को बुलाओ'

जानेमाने एक्टर और लेखक शिवकुमार सुब्रमण्यम (Shiv Kumar Subramaniam) के निधन से उनके चाहने वाले, करीबी और फ्रेंड्स दु:खी हैं। उनके काफी पुराने दोस्त और पड़ोसी रहे हिंदी सिनेमा के चर्चित गीतकार विजय अकेला(Vijay Akela) ने उनसे जुड़ीं कुछ यादें शेयर की हैं।
 

बॉलीवुड डेस्क. सोमवार(11 अप्रैल) का दिन बॉलीवुड के लिए एक बुरी खबर लेकर आया। जानेमाने एक्टर और लेखक शिव सुब्रमण्यम (Shiv Subramaniam) के निधन के बाद बॉलीवुड ने एक और बेहतर अभिनेता-लेखक खो दिया। उनके काफी पुराने दोस्त और पड़ोसी रहे हिंदी सिनेमा के चर्चित गीतकार विजय अकेला(Vijay Akela) ने उनसे जुड़ीं कुछ यादें शेयर की हैं। बता दें कि विजय अकेला ने फिल्म 'कहो न प्यार है' के कालजयी गीत ‘इक पल का जीना / फिर तो है जाना’ जैसे कई फिल्मी गीत रचे हैं। पढ़िए विजय अकेला ने क्या कहा...

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बॉलीवुड के लोग कहते थे कि ऊंचे कद के किसी अभिनेता को बुलाना हो, तो शिव को बुलाओ
शिवकुमार सुब्रमण्यम से मेरी पहली मुलाक़ात तो फिल्म परिंदा-1989 ही के जरिए हुई थी-एक चौंकानेवाले एक्टर और एक पावरफुल स्क्रिप्ट राइटर (script writer) के तौर पर] मगर फिर उन्हीं दिनों BBC के रेडियो ड्रामा Tiger’sEye के ऑडियो कैसेट्स के जरिए भी एक अच्छी मिस्टर रेड्डी की आवाज़ के तौर पर हुई। इसके अलावा ‘द्रोह काल’ जैसी कई फ़िल्मों के सशक्त अभिनय के ज़रिए भी । शिव बहुत कुछ कर रहा था उन दिनों। मगर साक्षात मुलाक़ात हुई थी एक रोज मुंबई के सांताक्रूज कालिना में, जहां उन दिनों उनका क़याम( ठिकाना) था और मैं भी वहीं पास में मुम्बई विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रहा था।

इस शख़्स की सादगी और ठहराव मोहित करने वाली थी। सच कहूं, तो इसी सादगी और ठहराव से इसने बॉलीवुड को जीत रखा  था। इस चौड़े क़द काठी वाले अभिनेता ने अभिनय में कभी अमिताभ बच्चन के दोस्त का रोल, तो कभी अनिल कपूर के बराबरी का रुतबा रखनेवाला वाला रोल, कभी संजय दत्त के सीनियर पुलिस कमिश्नर का रोल, तो कभी शबाना आज़मी के सीनियर ऑफिसर का रोल बड़ी बहादुरी और ख़ुद्दारी से किया था। ‘सबसे ऊंचे ओहदे के लिए किसी एक्टर को बुलाना है, तो शिव को बुलाओ। वही जस्टिफाई करेगा ।’ एक जुमला था।

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मेरे पड़ोस में रहने आए थे शिवकुमार
पृथ्वी थियेटर में अकसर मिल जानेवाले इस शिव से शायद मेरी मुलाक़ात अभी ना मुक्कमल ही थी, तभी तो वक़्त ने एक दिन चुपके से शिव को मेरा सबसे नजदीकी पड़ोसी बना डाला था। उसी फ्लोर पर एक दम बराबर के फ्लैट में। शिव सपरिवार हमारी बिल्डिंग में रहने आया था। हमारी दोस्ती इतनी गहरी हुई कि मत पूछिए! हमारा और शिव का परिवार एक हो गया। मेरा बेटा हमारे घर से पहले इनके घर हो के आता। ज़िंदगी को मुस्कुराने के मौक़े मिलने लगे। हम सभी साथ-साथ पिकनिक पर जाते, होली-दीवाली-ईद मनाते, अपने-अपने बच्चे के साथ कभी कीचड़ में फुटबॉल खेलते पाए जाते, कभी बच्चों को क्रिकेट के लिए कोचेज के पास लाते-ले आते पाए जाते। अकसर ऐसे मौकों पर हमारी एक ही गाड़ी होती। वो हमारी किताब विमोचन(book release functions) में आने लगा और मैं उसके रंगमंच प्रोग्राम (theatrical performances) देखने जाने लगा। 

हम कितने नुकसान में आ गए किसको पता होगा?
दो महीने पहले शिव का बेटा जहान भी न जाने किस जहां में खो गया और आज शिव भी। हम किस और कितने नुकसान (loss) में आ गए किसको पता होगा ? 

खैर, तक़रीबन 7-8 साल हमारी बिल्डिंग में रहने के बाद एक दिन अपना घर बेच कर यमुना नगर शिफ्ट हो गया था वो। जहान को ब्रेन ट्यूमर हो गया था और वो हिम्मती बच्चा अकसर कोकिलाबेन में भर्ती (hospitalised) होने लगा था। 5-6 साल तक अथक संघर्ष किया था उसने मौत से। 

शिव बेसिकली एक लेखक था। अंग्रेज़ी भाषा और उसकी  संवेदनशीलता (sensibility) पर उसकी खासी पकड़ थी। वो अकसर अपने डायनिंग टेबल पर लिखते हुए ही पाया जाता। उसके फिल्म जगत के दोस्तों की फेहरिस्त बड़ी अनोखी थी, जिसपे  शिव ने अपनी व्यवहार कुशलता की बदौलत जीत हासिल की हुई थी। सभी शिव पर ज़िंदगी लुटाते थे, मगर देखिए आज इसने  ही अपनी ज़िंदगी लुटा दी।’ 

काश उसके डायरेक्शन की फिल्म रिलीज हो जाए
मुम्बई के बारिश के दिलकश मौसम को देखकर मुझे कई दफा हो जाने का मन करता है-मेरी इस संवेदना को सिर्फ शिव ने ही समझा था।  शिव ने एक फ़िल्म भी डायरेक्ट की थी, जो अब तक शायद प्रदर्शित नहीं हो पाई है। वो रिलीज हो जाए, इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी उसके प्रति?
 
शिव की तबीयत में एक रूढ़िमुक्त (Bohemianism) था। वो सड़क का आदमी था। आम आदमी और कलाकारों के दुःख दर्द को समझने वाला।  दिव्या (श्रीमती शिव )!  मुझमें इतना हौसला नहीं कि मैं तुमसे मिल पाऊं या अपनी संवेदना व्यक्त करूं ? मुझे कमबख्त ये ज़िंदगी समझ ही में नहीं आती।

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