दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक भारत (India world's third largest oil importer) ने वित्त वर्ष 2021 में कच्चे तेल के आयात (Crude Oil Imports) पर 62.71 अरब डॉलर, वित्त वर्ष 2020 में 101.4 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2019 में 111.9 अरब डॉलर खर्च किए थे।
बिजनेस डेस्क। रूस द्वारा युक्रेन पर आक्रमण (Russia- Ukraine War) शुरू करने के एक दिन बाद शुक्रवार को वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों (Crude Oil Prices) में शुरुआती कारोबार में 2.2 फीसदी की वृद्धि हुई। कीमतों में बढ़ोतरी भारत के लिए चिंता वाली बात है, क्योंकि देश तेल की 85 फीसदी और प्राकृतिक गैस (Natural Gas) की 55 फीसदी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक भारत (India world's third largest oil importer) ने वित्त वर्ष 2021 में कच्चे तेल के आयात (Crude Oil Imports) पर 62.71 अरब डॉलर, वित्त वर्ष 2020 में 101.4 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2019 में 111.9 अरब डॉलर खर्च किए थे।
बढ़ेगा भारत का Import Bill
ग्लोबल मार्केट में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 2 फीसदी से ज्यादा तेजी के साथ 101.30 डॉलर प्रति बैरल पर और वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट 2.12 फीसदी के इजाफे के साथ 94.93 डॉलर प्रति बैरल हो गईं। कच्चे तेल की कीमतों में यह लगातार उछाल, देश के इंपोर्ट बिल और करंट अकाउंट डेफिसिट को नुकसान पहुंचाते हैं। जिसकी वजह से आम आदमी को पेट्रोल और डीजल की कीमत में महंगाई का सामना करना पड़ता है।
भारत में जल्द बढ़नी शुरू हो सकती है Fuel Prices
राष्ट्रीय राजधानी में पेट्रोल की कीमत 95.41 रुपए प्रति लीटर थी, जबकि डीजल की कीमत 86.67 रुपये प्रति लीटर हैं। करीब तीन महीनों से इन कीमतों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। इसका कारण देश के पांच राज्यों में चल रहे असेंबली इलेक्शन हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि चुनाव खत्म होने के बाद फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी फिर से शुरू होने का अनुमान है।
Crude Oil में 10 फीसदी का इजाफे से होता है 15 मिलियन डॉलर का नुकसान
एक रिसर्च नोट में एसएंडपी ग्लोबल प्लैट्स ने कहा है कि कच्चे तेल की कीमतों में हर 10 फीसदी का इजाफा होल सेल प्राइस इंडेक्स में 0.9 फीसदी से लेकर 1 फीसदी और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 0.4 फीसदी से लेकर 0.6 फीसदी का इजाफा होता है। तेल की कीमतों में 10 फीसदी की वृद्धि से भारत के चालू खाते के घाटे में लगभग 15 बिलियन डॉलर या इसके सकल घरेलू उत्पाद का 0.4 फीसदी का इजाफा होता है। जिसकी वजह से रुपए में गिरावट देखने को मिली है।
7 महीने की ऊंचाई पर Retail Inflation
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, फूड और मैन्युफेक्चर्ड गुड्स की कीमत के कारण जनवरी में रिटेल इंफ्लेशन सात महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई और जून के बाद पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक के 6 फीसदी के अपर टॉलरेंस बैंड को तोड़ दिया। हालांकि, मेन्युफेक्चर्ड फूड प्रोडक्ट्स और कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में नरमी के कारण नवंबर में उच्च स्तर को छूने के बाद जनवरी में होलसेल इंफ्लेशन जनवरी में तीन महीने के निचले स्तर पर आ गई थी।
महंगाई रहेगी ऊंची
अर्थशास्त्रियों के अनुसार रूस-युक्रेन की वजह से पैदा हुए जियो पॉलिटिकल टेंशन और प्रतिकूल आधार के कारण कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण महंगाई इस तिमाही ऊंची रहने की उम्मीद है। मुद्रास्फीति में अंतिम वृद्धि के साथ, यह महामारी प्रभावित इकोनॉमी के लिए विकास की संभावनाएं हैं। ब्रिकवर्क रेटिंग्स की शुक्रवार को एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 22 में जीडीपी की वृद्धि दर लगभग 8.3 फीसदी रहने की संभावना है, जो इसके पिछले अनुमान 8.5 फीसदी से लेकर 9 फीसदी को संशोधित करती है।
Economic Recovery और कमजोर कर देगा
एसएंडपी ग्लोबल प्लैट्स एनालिटिक्स में तेल बाजारों के सलाहकार लिम जित यांग के अनुसार तेल की ऊंची कीमतें मांग को कम कर देंगी और अगर वे वृद्धि जारी रखती हैं तो आर्थिक सुधार और कमजोर कर देगा। ब्रिकवर्क ने कहा कि जनवरी में देश में आई कोविड की तीसरी लहर के साथ-साथ सेमीकंडक्टर की कमी और कोयले की कमी, बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल और इनपुट की कीमतों ने भी समस्या को बढ़ा दिया है।
Second World War के बाद यूरोप के देश पर सबसे बड़ा हमला
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद सप्लाई स्ट्रेस को ट्रिगर किया और गुरुवार को, ब्रेंट क्रूड ने 2014 के बाद पहली बार 105 डॉलर प्रति बैरल की लाइन को क्रॉस कर गया। रूस ने जमीन, आसमान और पानी के माध्यम से युक्रेन पर चौतरफा हमला किया। जोकि सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यूरोप में किसी अन्य राज्य द्वारा किया गया सबसे बड़ा हमला है। आक्रमण के जवाब में, अमेरिका ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। यूरोप और ब्रिटेन ने भी रूस में प्रतिबंध लगाने की बात कही है।
इन प्रतिबंधों से हो सकती है ऑयल सप्लाई हो सकती है प्रभावित
रूस का कच्चे तेल का निर्यात लगभग 4-5 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) है। भारत चीन, यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ देश से कच्चे तेल के प्रमुख खरीदारों में से एक है। जैसे-जैसे हर दिन चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था पर बाहरी कारकों के प्रभाव को रोकने के लिए अपने पांव पर खड़ी हो गई है। इस सप्ताह की शुरुआत में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि रूस-यूक्रेन तनाव और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से देश की वित्तीय स्थिरता को खतरा है और सरकार स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रही है।