बोरोलीन से Parle-G तक, आजादी से पहले लॉन्च हुए इन प्रोडक्ट्स का अब भी है जलवा

भारत को 1947 में आजादी मिली, लेकिन बिजनेस के मामले में आजादी से पहले लॉन्च किए गए कई कई भारतीय उत्पाद आज भी फल-फूल रहे हैं। इन प्रोडक्ट्स में बोरोलीन से लेकर पारले जी और रुह-अफजा तक कई ब्रांड शामिल हैं। 

भारत को 1947 में आजादी मिली, लेकिन बिजनेस के मामले में आजादी से पहले लॉन्च किए गए कई कई भारतीय उत्पाद आज भी फल-फूल रहे हैं। इन प्रोडक्ट्स में से एक है बोरोलीन। ग्रामीण क्षेत्रों में इस क्रीम को हाथीवाली क्रीम के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा सके हाथी वाले लोगो की वजह से है। हरे रंग की ट्यूब में आने वाली बोरोलीन (Boroline) को आजादी से पहले ब्रिटिश उत्पादों का मुकाबला करने के लिए एक स्वदेशी व्यवसायी ने लॉन्च किया था।

94 साल पहले लॉन्च हुई थी Boroline

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प्रतिस्पर्धी कॉस्मेटिक वर्ल्ड में बोरोलीन ने अपने अस्तित्व के 94 सालों के बाद भी अब तक अपना वजूद बनाए रखा है। इसे 1920 में एक बंगाली बिजनेसमैन गुरुमोहन दत्ता ने कोलकाता में लॉन्च किया था। बोरोलीन एक एंटीसेप्टिक क्रीम है, जिसमें बोरिक एसिड, एस्ट्रिंजेंट, सनस्क्रीन जिंक ऑक्साइड और इमोलिएंट लैनोलिन का इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग कटने, फटे होंठों, खुरदरी त्वचा और इन्फेक्शन के इलाज में किया जाता है।

रूह-अफजा

इसी तरह आजादी से पहले का एक और ब्रांड रुह-अफजा है। ये गर्मी से राहत पाने के लिए एक हर्बल वाले शर्बत के रूप में शुरू किया गया था। लेकिन बाद में ये इतना पॉपुलर हुआ कि घर-घर इसकी पहचान बन गई। रूह अफ़ज़ा की शुरुआत 1907 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद द्वारा की गई थी और इसे पुरानी दिल्ली से लॉन्च किया गया था। वर्तमान में, रूह अफ़ज़ा का निर्माण मजीद और उनके बेटों द्वारा स्थापित कंपनियों, हमदर्द लेबोरेटरीज इंडिया द्वारा किया जाता है।

एयर-इंडिया

टाटा ग्रुप के स्वामित्व वाले ब्रांड, एयर इंडिया ने पिछले साल ही राष्ट्र की सेवा में 90 साल पूरे किए हैं। इसकी शुरुआत 1932 में जेआरडी टाटा ने की थी। शुरुआत में इसका नाम टाटा एयरलाइंस था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। जनवरी 2022 में, टाटा समूह ने एयर इंडिया का पुनः अधिग्रहण कर लिया।

मैसूर सैंडल सोप

मैसूर सैंडल साबुन भी भारत का एक मशहूर ब्रांड है, जो आजादी के बाद से अब तक पॉपुलर है। अंडाकार शेप के साथ हरे और लाल बॉक्स की पैकेजिंग में आने वाले इस साबुन की शुरुआत 1916 में हुई। इसे मैसूर के राजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ ने बेंगलुरु में एक साबुन फैक्ट्री की स्थापना के साथ लॉन्च किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मैसूर सैंडल साबुन दुनिया का एकमात्र साबुन है, जो 100% शुद्ध चंदन के तेल के साथ-साथ अन्य प्राकृतिक आवश्यक तेलों जैसे वेटिवर और पाम गुलाब से बना है।

पारले-जी

पुरानी यादों से भरा एक और ब्रांड है पारले-जी। एक युवा लड़की की तस्वीर वाली चमकीली पीली प्लास्टिक पैकेजिंग वाला ये बिस्किट ब्रांड आज भी उतना ही पॉपुलर है, जितना की आजादी के पहले था। पारले हाउस की स्थापना 1928 में मोहनलाल दयाल ने की थी। हालांकि, पहला पारले-जी बिस्किट (तब पारले ग्लूको कहा जाता था) 1938 में बनाया गया था।

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