G20 Summit 2023 : क्या है कोणार्क चक्र का इतिहास, जहां पीएम मोदी ने किया विदेशी नेताओं का स्वागत

कोणार्क चक्र में 24 तीलियां हैं। भारत के राष्ट्रीय झंडे यानी तिरंगा में भी इसी 24 तीलियों वाले चक्र को लिया गया है। यह नितरंत आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहता है।

 

बिजनेस डेस्क : G20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit 2023) दिल्ली के प्रगित मैदान में बने 'भारत मंडपम' में चल रहा है। इस समिट में शामिल होने आए सभी विदेशी नेताओं और संगठन प्रमुखों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने जोरदार स्वागत किया। इस दौरान पीएम मोदी जहां विदेशी नेताओं के साथ तस्वीर खिंचा रहे थे, वहां का बैकग्राउंड काफी खास रहा। तस्वीर के पीछे एक बड़ा सा पहिया लगा है। बताया गया है कि यह ओडिशा का कोणार्क चक्र (Konark Chakra) है। जी20 में इसका प्रदर्शन काफी अहम है। आइए जानते हैं इसके मायने...

कोणार्क चक्र का इतिहास

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कोणार्क चक्र का इतिहास (Konark Chakra History) काफी पुराना है। इतिहासकारों के मुताबिक, 13वीं सदी में राजा नरसिंहदेव-प्रथम का जब शासन चल रहा था, उसी दौरान इस चक्र को बनाया गया था। इस चक्र में 24 तीलियां हैं। भारत के राष्ट्रीय झंडे यानी तिरंगा में भी इसी 24 तीलियों वाले चक्र को लिया गया है। यह नितरंत आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहता है।

जी20 में कोणार्क चक्र का अहमियत

विश्लेषकों और जानकारों ने बताया कि कोणार्क चक्र भारत के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और स्थापत्य उत्कृष्टता का प्रतीक है। कोणार्क चक्र निरंतर आगे बढ़ते समय की गति, कालचक्र के साथ-साथ ही प्रगति और लगातार परिवर्तन को दर्शाता है। लोकतंत्र के पहिये के एक शक्तिशाली प्रतीक के तौर पर कोणार्क चक्र काम करता है। यह लोकतांत्रिक आदर्शों के लचीलेपन और समाज की प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता को भी दिखाता है।

नए संसद भवन में भी कोणार्क चक्र

कोणार्क मंदिर के विशाल चक्र की प्रतीक कांसे की प्रतिमूर्ति को नए संसद भवन में भी स्थापित किया गया है। द्वार के दाईं ओर इसे स्थापित किया गया है। कोणार्क मंदिर के इस विशाल चक्र को ओडिशा के उत्कल के तौर पर भी जाना जाता है।

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