पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से फेमस एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर यूपी के कुशीनगर निवासी जैनुल अबेदीन ने गजब का रॉकेट बनाया। वे मात्र 19 साल की उम्र में ही कंपनी के मालिक बने।
Jainul Abedin Success Story. कभी कंपीटीटिव एग्जाम में यह सवाल पूछा जाए कि दुनिया का 7वां स्टार्टअप किसने शुरू किया तो आप यह स्टोरी पढ़ लीजिए और पूरी जानकारी ले लीजिए। क्योंकि हम उस नौजवान की बात कर रहे हैं जिसने दुनिया का 7वां स्टार्टअप शुरू किया। इस युवक का नाम जैनुल अबेदीन है और ये पूर्व प्रेसीडेंट एपीजे अब्दुल कलाम साहब से प्रेरित हैं। जैनुल ने मात्र 19 साल की उम्र में ही अपनी कंपनी लांच कर दी थी और प्रोडक्ट भी ऐसा बनाया कि कोई इसकी कॉपी नहीं कर सकता।
कौन हैं जैनुल अबेदीन
जैनुल अबेदीन कुशीनगर के रहने वाले हैं और गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज डिग्री कॉलेज से इन्होंने फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया है। इनकी काबिलियत यह है कि इस नौजवान ने एब्योम स्पेसटेक एंड डिफेंस कंपनी बनाई, वह भी सिर्फ 19 साल की उम्र में। आपको यह भी जानकर हैरानी होगी कि यह देश का पहला रियूजेबल यानि कि दोबारा उपयोग में लाया जा सकने वाला रॉकेट है। इसका प्रक्षेपण के लिए कई बार प्रयोग किया जा सकता है। अभी तक आपको इतना ही पता होगा कि किसी भी रॉकेट का उपयोग सिर्फ 1 बार ही हो सकता है लेकिन इस नौजवान ने तो कमाल ही कर दिया।
जैनुल अबेदीन का सफर
कुशीनगर में पैदाइश हुई और इनके पिता कोलकाता में काम करते थे। जैनुल की शुरूआती शिक्षा दीक्षा वहीं कोलकाता में ही हुई है। 10वीं क्लास में उनके पिता की नौकरी छूटी और वे कुशीनगर लौट आए। यहीं से उन्होंने 12वीं पास की। वे हमेशा से स्पेस रिसर्च जैसी चीजों में रुचि रखते थे। यही कारण था कि ग्रेजुएशन से पहले ही वे अपने काम में जुट गए। गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज कॉलेज में दाखिला लेने के बाद से ही जैनुल ने रॉकेट साइंस की रिसर्च शुरू कर दी। जैनुल ने बताया कि भारत 1960 से ही रॉकेट लांच कर रहा है लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ 1 बार ही किया जा सकता है।
सरकार की यह पॉलिसी बनी जैनुल का सहारा
पहली रियूजेबल रॉकेट लांच करने वाले जैनुल ने बताया कि केंद्र सरकार की भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र से उन्हें बड़ी मदद मिली। इस संगठन का मकसद कुछ नहीं बल्कि प्राइवेट इनोवेशंस को बढ़ावा देना है। जब यह जानकारी जैनुल को मिली तो उन्होंने कांटैक्ट किया और वहां से मदद के बाद जैनुल के सपनों को मानों पंख लग गए। यहीं से एक 19 साल के युवा की ऊंची उड़ान शुरू हो गई और आज भी उनकी कंपनी दुनिया भर के रॉकेट साइंटिस्ट के लिए एक उदाहरण के तौर पर काम कर रही है।
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