रतन टाटा के अंतिम दर्शन को पहुंचा उनका लाडला, देखकर नम हुईं आंखें

Published : Oct 10, 2024, 05:23 PM ISTUpdated : Oct 10, 2024, 05:27 PM IST
रतन टाटा के अंतिम दर्शन को पहुंचा उनका लाडला, देखकर नम हुईं आंखें

सार

रतन टाटा के अंतिम दर्शन के लिए उनके पालतू कुत्ते गोवा को विशेष व्यवस्था के साथ लाया गया। गोवा को गोवा से रेस्क्यू कर रतन टाटा मुंबई लाए थे, जिसके बाद से वो उनके साथ ही रहता था।

मुंबई. रतन टाटा ने कुत्तों के लिए अस्पताल बनवाया था। यहां आवारा कुत्तों से लेकर सभी कुत्तों का इलाज किया जाता है। अगर किसी भी कुत्ते को खून की जरूरत होती, तो रतन टाटा खुद अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते थे। इस तरह उन्होंने कई कुत्तों की जान बचाई है, देखभाल की है। रतन टाटा के घर में भी कुछ कुत्ते हैं। लेकिन मालिक के बिना अनाथ हो गए हैं। रतन टाटा के लाडले कुत्ते गोवा ने अब रतन टाटा के अंतिम दर्शन किए हैं।

रतन टाटा के बॉम्बे हाउस में रहने वाले गोवा को रिश्तेदार और कर्मचारी मुंबई के नेशनल सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स सेंटर ले गए। यहां रतन टाटा के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। गोवा को इसी सेंटर में लाकर अंतिम दर्शन के लिए व्यवस्था की गई। 

 

मालिक को खो चुके लाडले कुत्ते का रोना अवर्णनीय है। यह दृश्य मन को झकझोर देने वाला है। अंतिम दर्शन करने वाला गोवा अपने मालिक को खोने के गम में डूबा हुआ है। अब तक कई गणमान्य व्यक्ति रतन टाटा के अंतिम दर्शन कर चुके हैं। इस बीच रतन टाटा के पालतू कुत्ते के लिए विशेष अंतिम दर्शन की व्यवस्था की गई।  

 

 

रतन टाटा ने इस कुत्ते का नाम गोवा क्यों रखा?
रतन टाटा का कुत्तों के प्रति प्रेम, देखभाल, परवाह कुछ ज्यादा ही थी। काले रंग के गोवा को रतन टाटा ने कुछ साल पहले गोवा से रेस्क्यू किया था। घायल आवारा कुत्ते को रेस्क्यू कर मुंबई लाए रतन टाटा ने उसकी देखभाल की थी। गोवा से इस कुत्ते को रेस्क्यू कर लाने के कारण इसका नाम गोवा रखा गया था।

रतन टाटा के असिस्टेंट के रूप में पहचाने जाने वाले शांतनु नायडू को भी कुत्तों से बेहद लगाव था। यही कारण है कि रतन टाटा शांतनु नायडू को बहुत पसंद करते थे। टाटा कंपनी में कार्यरत शांतनु नायडू ने आवारा कुत्तों के एक्सीडेंट रोकने के लिए एक छोटी सी कंपनी शुरू की और रेडियो कॉलर का उत्पादन शुरू किया। इस दौरान कंपनी को आर्थिक मदद की जरूरत थी। यह जानकारी मिलते ही रतन टाटा ने सीधे पूरी फंडिंग कर दी। इतना ही नहीं उन्हें अपना असिस्टेंट भी नियुक्त कर लिया। इसके बाद शांतनु नायडू और रतन टाटा की दोस्ती कितनी गहरी थी, यह तो दुनिया ने देखा।

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