
RBI MPC Meeting 2025: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) के फैसलों से पहले हर तरफ सुनने को मिल रहा है कि 'RBI रेपो रेट बढ़ा सकता है या घटा सकता है या जस का तस रख सकता है।' इसके साथ ही रिवर्स रेपो रेट की भी चर्चा हो रही है।, लेकिन क्या आम निवेशक, फैमिली मैन या वुमन या छोटे कारोबारी इन टर्म को समझ पाते हैं, क्या वे जानते हैं कि इसका उनकी लाइफ और जेब पर क्या असर होगा? रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट सिर्फ बैंकिंग शब्द नहीं हैं, बल्कि आपकी EMI, सेविंग और इन्वेस्टमेंट पर सीधा असर डालते हैं। इनकी सही समझ आपको सही समय पर लोन लेने, निवेश करने और अपनी फाइनेंसियल प्लानिंग सुधारने में मदद करती है। तो चलिए इन्हें आसान भाषा में समझते हैं...
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को शॉर्ट-टर्म लोन देती है। जब बैंक को कैश की जरूरत होती है, तो वे RBI से पैसे उधार लेते हैं और उस पर जो ब्याज वे RBI को चुकाते हैं, वही रेपो रेट कहलाता है।
ब्याज दर कम होने पर बैंक सस्ते लोन देती हैं। इसका मतलब, होम लोन, पर्सनल लोन या बिजनेस लोन की EMI घट सकती है। मतलब रेपो रेट में कटौती आपके लिए फायदेमंद होता है, इससे आपको कम ब्याज चुकाना पड़ता है।
जब रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता है, जो बैंक महंगे लोन देते हैं। इससे EMI बढ़ती है और लोग कम कर्ज लेते हैं, जिससे बाजार में पैसा कम घूमता है। रेपो रेट बदलने का मुख्य मकसद महंगाई को कंट्रोल करना और आर्थिक विकास को बैलेंस रखना है।
रिवर्स रेपो रेट वह दर है, जिस पर RBI बैंकों से पैसा उधार लेती है। सरल शब्दों में, जब बैंक के पास अतिरिक्त कैश होता है और वे उसे RBI के पास जमा करती हैं, तो RBI उन्हें ब्याज देती है।
बैंक ज्यादा पैसा RBI को जमा करेंगी। इसका मतलब बाजार में नकदी कम होगी, महंगाई पर नियंत्रण मिलेगा। रिवर्स रेपो रेट घटने से बैंक कम जमा करेंगी, बाजार में पैसा ज्यादा घूमेगा। निवेश और खर्च बढ़ सकता है। कुल मिलाकर रेपो रेट बाजार में पैसा देने और लेने का पैमाना है, जबकि रिवर्स रेपो रेट पैसा लेने के बजाय जमा करने का पैमाना होता है।
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