
Rupee vs Dollar: भारतीय रुपया बुधवार, 3 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले 90.13 तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड लो है। एक दिन पहले मंगलवार को रुपया 89.9475 पर था। डॉलर के मजबूत होते ही भारत के शेयर बाजार में भी दबाव दिखा, निफ्टी 26,000 के नीचे चला गया और सेंसेक्स के करीब 200 अंक उड़ गए। ट्रेड, FII सेलिंग और इंडिया-यूएस (India-US) ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता बढ़ी। इन सबने रुपए को कमजोर किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर ट्रेड डील में टैरिफ की शर्तें कड़ी हुईं, तो रुपए की यह कमजोरी और बढ़ भी सकती है। अगर यह ऐसा ही चला तो इसका असर आपकी जेब, मंथली बजट, खरीदारी और आपकी जिंदगी की कई चीजों पर देखने को मिल सकता है। जानिए इस तरह की गिरावट का आप पर कैसा असर पड़ सकता है...
रुपया जब भी डॉलर के मुकाबले टूटता है, विदेश जाने का पूरा खर्च बढ़ जाता है। फ्लाइट टिकट, होटल बुकिंग, टैक्सी, फूड हर चीज डॉलर में तय होती है। रुपए की कीमत कम होने से उसी होटल या टिकट के लिए आपको ज्यादा रुपए देने पड़ सकते हैं।
भारत कई इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स जैसे आईफोन, हाई-एंड लैपटॉप हो या स्मार्ट टीवी, डॉलर में इम्पोर्ट करता है। रुपए की गिरावट का मतलब है कि कंपनियां इनकी कीमतें बढ़ा सकती हैं, क्योंकि उन्हें पहले के मुकाबले ज्यादा रुपए देने पड़ सकते हैं।
कुकिंग ऑयल, दालों की कुछ वैरायटी और कई फूड आइटम्स हम बाहर से खरीदते हैं। ये सब डॉलर में ट्रेड होते हैं। रुपए की कमजोरी का सीधा असर आपके किचन पर पड़ता है।
भारत कच्चा तेल डॉलर में खरीदता है। रुपया कमजोर होगा तो सरकार पर तेल की कीमतें बढ़ाने का दबाव बढ़ता है, जिससे पेट्रोल-डीजल भी महंगे हो सकते हैं। हालांकि, सरकार इन चीजों को अपने हिसाब से मैनेज करती है और जरूरी नहीं कि हर बार ये चीजें महंगी ही हों।
विदेश में बढ़ रहे बच्चों की फीस भी इससे प्रभावित होती है। अमेरिका जैसे देशों में पढ़ रहे बच्चों को रुपया गिरते ही हर महीने भेजा जाने वाला पैसा कम पड़ सकता है। अगर पहले 1,000 डॉलर भेजने में 89,000 रुपए लगते थे, तो अब वही 90,000 से ज्यादा में पड़ेगा। सालाना खर्च लाखों में बढ़ सकता है।
रुपया टूटने से रेमिटेंस चार्ज (Remittance Charges) बढ़ सकता है और कंवर्जन रेट (Conversion Rate) आपके खिलाफ जाता है। इसका मतलब है कि भारत से भेजा गया पैसा पहले से थोड़ा महंगा लगेगा। परिवारों के लिए यह महीने का फिक्स बजट बिगाड़ सकता है।
भारत की कई इंडस्ट्री जैसे ऑटो पार्ट्स,फार्मा, मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग इंपोर्ट पर निर्भर है। जब डॉलर मजबूत होता है तो उनकी लागत बढ़ जाती है। इसका असर कुछ समय बाद ग्राहकों पर पड़ता है, क्योंकि कंपनियां बढ़ी हुई लागत को कीमतों में जोड़ देती हैं।
जब रुपए की गिरावट से इन्फ्लेशन बढ़ता है, तो RBI रेट भी बढ़ा सकता है। इससे होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन की EMI बढ़ने की संभावना बन जाती है। यह असर तुरंत नहीं होता, लेकिन कुछ महीनों में आपकी EMI बढ़ सकती है।
डॉलर मजबूत होता है तो गोल्ड आमतौर पर चढ़ता है। भारत में गोल्ड की कीमतें डॉलर और रुपए दोनों पर निर्भर करती हैं। इसलिए अगर डॉलर ज्यादा समय तक मजबूत रहा, तो सोना आसानी से नए रिकॉर्ड बना सकता है। जिन लोगों के पास गोल्ड SIP है, उनके लिए यह स्थिति फायदेमंद हो सकती है।
FIIs जब रुपए को कमजोर होता देखते हैं, तो भारतीय मार्केट से पैसा निकालने लगते हैं। इससे निफ्टी-सेंसेक्स टूटते हैं और छोटे निवेशकों की वैल्यू कम होती है। अगर आपका पोर्टफोलियो हर दिन गिरता दिख रहा है, तो यह उसी चेन रिएक्शन का हिस्सा है। हालांकि लंबी अवधि के निवेशकों के लिए यह खरीदारी का मौका भी माना जाता है।
स्टूडेंट्स और ट्रैवलर्स जो फॉरेक्स कार्ड (Forex Card) यूज करते हैं, उन्हें ज्यादा दरों पर डॉलर खरीदना पड़ेगा। अगर किसी ने हफ्ते भर पहले कार्ड लोड किया होता, तो वह आज की तुलना में कम पैसे देता। इसलिए अब जो भी ट्रैवल प्लान कर रहा है, उसे बार-बार रेट चेक करना चाहिए।
कार इंडस्ट्री कई पार्ट्स बाहर से मंगाती है। EV बैटरियां, चिप्स और कई इलेक्ट्रॉनिक सर्किट पूरी तरह इम्पोर्टेड होते हैं। रुपए के गिरते ही इसकी कीमतें बढ़ने लगती हैं और नई कार खरीदने वालों को ज्यादा पेमेंट करना पड़ सकता है।
जो व्यापारी इम्पोर्टेड सामान बेचते हैं, उनकी लागत बढ़ सकती है। अब वही सामान पहले की तुलना में ज्यादा महंगा पड़ रहा है, लेकिन ग्राहक पुरानी कीमत देना चाहते हैं। इस वजह से छोटे कारोबारियों का मुनाफा कम हो जाता है और बिजनेस चलाना मुश्किल होने लगता है।
अगर आपका कोई परिवार विदेश में रहता है और भारत पैसे भेजता है, तो इस वक्त भेजा गया हर डॉलर ज्यादा रुपए दे रहा है। यानी NRI फैमिली की इनकम बढ़ सकती है। रुपए की कमजोरी का यह कुछ गिने-चुने पॉजिटिव फैक्टर्स में से एक है।
रुपए की गिरावट धीरे-धीरे हर चीज को महंगा बनाती है। खाने-पीने का सामान, दूध, सब्जियां, स्कूल का खर्च, गैस, कपड़े सब पर इसका प्रभाव आता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दिए गए सभी असर सिर्फ अनुमान हैं। वास्तविक कीमतें, नीतियां, बाजार की चाल और आपके व्यक्तिगत खर्च समय, परिस्थितियों और सरकारी फैसलों के अनुसार अलग हो सकते हैं। यह आर्टिकल सिर्फ सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किसी भी प्रकार की वित्तीय सलाह (Financial Advice) नहीं है। किसी भी निवेश या खर्च से जुड़े निर्णय से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह जरूर लें।
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